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बुलंदशहरः अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी वहां की खासियत और ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह जानकारी आपको जरूर अच्छी लगेगी. यूपी में आज भी ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप जानते भी नहीं होंगे. इनमें मुगलकालीन किस्से भी शामिल हैं. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं. यूपी के जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अलग विशेषता है, जो सभी जिलों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है.
इसी क्रम में आज हम बुलंदशहर जिले के बारे में बात करेंगे. बुलंदशहर का खुर्जा सिरेमिक उत्पादों के लिए जाना जाता है. यहां सिरेमिक का कारोबार सदियों पुराना है. खुर्जा के उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी अपना जादू बिखेरते हैं. आज जानेंगे इस शहर और यहां के उद्योग से जुड़ी हर एक दिलचस्प बात...
सिरेमिक उत्पादों के लिए जाना जाता है खुर्जा
खुद में इतिहास को संजोए है यूपी का बुलंदशहर जिला. यहां से 17 किमी दूरी पर बसा है खुर्जा, जिसने दुनिया के कोने-कोने में अपने बने उत्पादों के जरिए अपनी एक अलग पहचान है. यह नगर अपने बेहतरीन सिरेमिक यानी चीनी मिट्टी के उत्पादों के लिए जाना जाता है. खुर्जा को 'द सिरेमिक सिटी' की पहचान मिली है.
कलाकृति को ऐसे मिला नया रूप
तैमूर वंश से जुड़ा है खुर्जा का इतिहास. जानकारों के मुताबिक, 600 साल पहले उज्बेकिस्तान के शासक तैमूर लंग ने दिल्ली पर हमला किया था. उस समय उसकी फौज में शामिल कुछ हुनरमंद हस्तशिल्प लोग भारत में ही रह गए. उन लोगों ने खुर्जा की कलाकृति को एक नए रूप में पेश किया. एक अन्य किवदंती के अनुसार, मुगल साम्राज्य के दौरान कुम्हारों को इस क्षेत्र में ले जाया गया था.
देश-विदेश में है इसकी पहचान
जानकारी के मुताबिक, 1980-1985 के समय में यहां करीब 850 पॉटरी हुआ करती थी, लेकिन अब चीनी मिट्टी के बर्तन और साज-सज्जा के उत्पाद बनाने वाले करीब 500 कारखाने हैं. यहां बने चीनी मिट्टी के उत्पाद यूएस, यूके और जर्मनी में भी डिमांड में है. क्योंकि चीनी मिट्टी के क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने में भारत पहले स्थान पर है, जबकि चीन का स्थान दूसरे नंबर पर आता है.
खुर्जा में चीनी मिट्टी के बर्तन, फूलदान, सजावटी वस्तुएं, बिजली के फ्यूज सर्किट, इन्सुलेटर, कारों में इस्तेमाल होने वाले कई कलपुर्जे बनाए जाते हैं. जिसके कारण देश-विदेश में इस कस्बे की अपनी एक अलग पहचान है.
मिट्टी को ऐसे दिया जाता है आकार
चीनी मिट्टी के बर्तन को बनाने के लिए गीली मिट्टी को एक आकार दिया जाता है. फिर उन्हें एक भट्ठी में हाई टेम्प्रेचर पर गर्म किया जाता है, जो मिट्टी से पूरा पानी सोख लेती है. पानी सूख जाने से उसका आकार सख्त हो जाता है. इसके बाद तरह-तरह के उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है. यहां की मिट्टी एक प्रकार की चीनी मिट्टी होती है, जिनसे कई आकार में मिट्टी के बर्तन निर्मित किए जाते हैं.
ऐसे खुला था कारखाना
जानकारी के मुताबिक, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मुख्य रूप से युद्ध अस्पतालों के लिए चीनी मिट्टी के सामान की आपूर्ति करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सिरेमिक यूनिट की स्थापना की थी. युद्ध के बाद 1946 में यहां बने उत्पादों की मांग में कमी होने लगी थी, जिसके कारण फैक्ट्री बंद कर दी गई.
हालांकि, फैक्ट्री सभी जरूरी उपकरणों जैसे कि 3 छोटे भट्टों, 2 चिमनियों और 3 बॉल मिलों से सुसज्जित थी. जिसके चलते राज्य सरकार ने फैक्ट्री को पूरी तरह से बंद करने की अपेक्षा, इसमें मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य को जारी रखा.
वहीं, यह भी कहा जाता है कि आधुनिक समय के मिट्टी के बर्तनों का निर्माण 1940 के दशक में हुआ. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1942 में मिट्टी के बर्तनों का कारखाना स्थापित किया. बाद में, गुणवत्ता की कमी के कारण 1946-47 में कारखाना बंद कर दिया गया. इसके बाद 1952 में इस फैक्ट्री को पॉटरी डेवलपमेंट सेंटर के रूप में बदल दिया गया.
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