सियासत का मुख्य केंद्र माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का लंबे अरसे तक राज रहा लेकिन अब विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य आने वाले वक्त में नहीं होगा. राहुल गांधी के करीबी और अमेठी के रहने वाले विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को खत्म होगा. इसके बाद कांग्रेस का सूपड़ा विधान परिषद से साफ हो जाएगा.
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अजीत सिंह/लखनऊ: देश में 60 सालों तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी धीरे-धीरे अब सियासी तौर पर सिमटती जा रही है. सियासत का मुख्य केंद्र माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का लंबे अरसे तक राज रहा लेकिन अब विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य आने वाले वक्त में नहीं होगा. राहुल गांधी के करीबी और अमेठी के रहने वाले विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को खत्म होगा. इसके बाद कांग्रेस का सूपड़ा विधान परिषद से साफ हो जाएगा.
1935 के बाद यह पहली बार होगा जब कांग्रेस उत्तर प्रदेश के उच्च सदन में शून्य हो जाएगी. प्रदेश में राहुल और प्रियंका के प्रयास के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है. अब देखना होगा कि आखिर प्रियंका यूपी में खोई जमीन को कैसे खड़ा करती हैं.
बता दें, उत्तर प्रदेश में विधान परिषद का गठन 1935 में हुआ था. उसके बाद अब पहली बार ऐसा होगा जब कांग्रेस पार्टी का सदन में एक भी सदस्य नहीं होगा. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी महज दो सीटें जीत पाई, वहीं, अब कांग्रेस के विधान परिषद में इकलौते एमएलसी दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को समाप्त होगा. जिसके बाद कांग्रेश विधान परिषद में जीरो हो जाएगी.
आंकड़ों की बात करें तो यूपी विधान परिषद में 100 सीटें हैं. इस समय विधान परिषद में सपा सदस्यों की संख्या 14 है. वहीं, पहली बार बीजेपी को उच्च सदन में बहुमत मिल रहा है. 100 में से 38 सदस्यों का चयन विधानसभा सदस्यों के द्वारा होता है. जबकि इसके अलावा स्थानीय निकायों के जरिए 36 सदस्य चुने जाते हैं. जिसमें ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक सभासद से लेकर मेरठ हिस्सा लेते हैं.
वहीं दूसरी तरफ विधान परिषद में 16 सदस्य ग्रेजुएट और अध्यापक क्षेत्र से निर्वाचित होते हैं. जिसे शिक्षक स्नातक चुनाव भी कहा जाता है. इसके अलावा 10 सदस्यों का राज्यपाल मनोनयन करते हैं.
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