Electric Poles in Uttar Pradesh : दूरसंचार नेटवर्क सुविधा नियमावली 2022 को अपनाने वाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य बन गया है. इसमें इलेक्ट्रिक पोल के इस्तेमाल पर शुल्क भुगतान के नियम हैं.
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सड़क पर बिजली के खंभे पर गौर करें तो इलेक्ट्रिक लाइन के तारों से ज्यादा केबल, ब्राडबैंड, ऑप्टिकल फाइबर, टेलीफोन लाइन आदि के तार ज्यादा दिखते हैं. लेकिन अब ये कंपनियां बिजली के खंभे का सहारा नहीं ले पाएंगी. अगर उन्हें ऐसा करना है तो फिर किराया चुकाना पड़ेगा. दरअसल, उत्तर प्रदेश दूरसंचार नेटवर्क सुविधा नियमावली 2022 को यूपी ने अपनाया है. दूरसंचार से जुड़ा नया कानून लागू करने वाला यूपी देश में पहला राज्य बन गया है.
विद्युत नियामक आयोग ने कानून को अधिसूचित करने के लिए यूपी सरकार को भेज दिया है. इसको मंजूरी मिलते ही यूपी में बिजली के सरकारी खंभों का उपयोग करने पर इन कंपनियों को भुगतान करना होगा. केबल, टेलीकॉम और ब्रॉडबैंड कंपनियों को इसके लिए शुल्क भुगतान करना होगा.इससे होने वाली आय में 70% विद्युत उपभोक्ताओं और 30% यूपीपीसीएल को दी जाएगी. यानी उपभोक्ताओं को भी राहत उनके बिजली बिल में मिलेगी.35 केवी लाइन के टावर को छोड़कर अन्य खंभों पर यह कार्य किया जा सकेगा.
उल्लेखनीय है कि बड़े शहरों की मुख्य सड़कों से बिजली के खंबे भले ही हट गए हों, लेकिन छोटे शहरों, गांव-कस्बों में इलेक्ट्रिसिटी पोल अभी भी बड़ी मात्रा में लगते हैं. इनमें से लोहे औऱ सीमेंट के पोल होते हैं. केबल, टेलीफोन, ब्राडबैंड ऑपरेटर इन खंभों का इस्तेमाल बिना किसी अनुमति के कर लेते हैं. अक्सर ये खंभे इन पर चढ़ने के दौरान गिर भी जाते हैं या बिजली की लाइन टूट जाती है और इसका खामियाजा बिजली उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ता है.
बिजली उपभोक्ता अक्सर जब इलेक्ट्रिक लाइन में खराबी को लेकर बातें करते हैं तो इसके पीछे केबल संचालकों या अन्य प्राइवेट कंपनियों की कारगुजारी सामने आती है. मुफ्त में ही ये कंपनियां इलेक्ट्रिक पोल्स का इस्तेमाल कर अपनी सेवाए ग्राहकों को पहुंचाते हैं और मुनाफा कमाते हैं. लेकिन वे इसके बदले कोई भी भुगतान सरकार को नहीं करते हैं, लेकिन नए नियमों से इस पर लगाम कसेगी.