वारुणी यात्रा में शामिल भक्तों से खुश रहते हैं 33 करोड़ देवी-देवता, जानिए क्या है पौराणिक मान्यता
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वारुणी यात्रा में शामिल भक्तों से खुश रहते हैं 33 करोड़ देवी-देवता, जानिए क्या है पौराणिक मान्यता

Uttarkashi Panch Koshi Yatra : चैत्र का महीने को हिन्दू पंचाग में धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. इस महीने चैत्र नवरात्र के साथ ही ऐसे अनेक तिथियां आती हैं जिस दिन देवी-देवता हमारी हमारी हर मनोकामना पूरी करते हैं.

वारुणी यात्रा में शामिल भक्तों से खुश रहते हैं 33 करोड़ देवी-देवता, जानिए क्या है पौराणिक मान्यता

हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी : पंचकोसी वारुणी यात्रा को लेकर इस साल श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह देखने को मिला. रविवार को सुबह से उत्तरकाशी में हो रही बारिश के बीच भी वारुणी यात्रा के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था देखने को मिली. ब्रह्ममुहूर्त से ही श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ वारुणी यात्रा शुरू हुई. यात्रा की शुरुआत उत्तरकाशी के बड़ेथी से वरुणा नदी में स्नान के साथ होती है.  यह 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा वरुणावत पर्वत के ऊपर से गुजरते हुए असी गंगा और भागीरथी के संगम पर  संपन्न होती है. पंचकोसी वारुणी नाम से हर साल होने वाली इस यात्रा का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है.

कहा जाता है कि इस यात्रा को पूर्ण करने वाले व्यक्ति को 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य लाभ मिलता है. इस एक यात्रा में शामिल होने से अश्वमेध यज्ञ कराने जैसा लाभ मिलता है. करीब 15 किमी लंबी इस पदयात्रा के पथ पर श्रद्धालुओं ने बड़ेथी संगम स्थित वरुणेश्वर में गंगा स्नान किया. उसके बाद बसूंगा में अखंडेश्वर, साल्ड में जगरनाथ और अष्टभुजा दुर्गा, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर और व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर तथा विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्वदेश्वर मंदिर में जलाभिषेक साथ पूजा-अर्चना सिलसिला शाम तक जारी रहेगा.

यात्रा के विभिन्न पड़ाव पर ग्रामीणों के द्वारा श्रद्धालुओं के लिए बड़ी भव्य व्यवस्था की गई है. वरुणावत से उतरकर श्रद्धालु गंगोत्री में अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर स्नान के बाद नगर के विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं. इसके जलाभिषेक के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर यात्रा समापन करते हैं. कुछ लोग नंगे पैर तो कुछ व्रत कर इस यात्रा को शुरू करते हैं.  होली के 11 दिन बाद चैत्र मास की त्रियोदसी के दिन इस यात्रा का शुभारंभ होता है.

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वारणा और असी गंगा के बीच वारणावत क्षेत्र का जिक्र पुराणों में हुआ है. पदयात्रा से इसकी परिक्रमा का वैसे तो हर दिन महत्व है, लेकिन चैत्रमाह के त्रयोदशी व आषाढ़ी पुर्णिमा के दिन इसका विशेष महत्व है. स्कंदपुराण में भी पंचकोषी यात्रा का वर्णन किया गया है. ऐसी मान्यता है कि श्रद्धालुओं को मौनव्रत या भजन कीर्तन करते हुए यात्रा करनी चाहिये.

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