Who is Satish Kumar: 1986 बैच रे इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स ऑफिसर सतीश कुमार को बड़ी जिम्मेदारी मिली है. उन्हें रेलवे बोर्ड का नया अध्यक्ष और सीईओ बनाया गया है. सतीश कुमार रेलवे बोर्ड के इतिहास में अध्यक्ष बनने वाले पहले दलित ऑफिसर हैं. आइए जानते हैं कौन हैं सतीश कुमार और क्या है उनका योगदान?
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Who is Satish Kumar: इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस इंजीनियर्स (IRMS) ऑफिसर सतीश कुमार रेलवे बोर्ड के नए अध्यक्ष और सीईओ बने हैं. वह रेलवे बोर्ड के इतिहास में अध्यक्ष बनने वाले पहले दलित ऑफिसर हैं. सतीश कुमार रेलवे बोर्ड की मौजूदा सीईओ जया वर्मा सिन्हा की जगह लेंगे. 31 अगस्त को जया वर्मा रिटायर हो रही हैं. एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) ने सतीश कुमार के नाम पर मुहर लगा दी है. जारी आदेश के मुताबिक, सतीश कुमार की नियुक्ति शीर्ष वेतनमान (7वें केंद्रीय वेतन आयोग के हिसाब से वेतन स्तर 17) पर की गई है.
कौन हैं सतीश कुमार?
आपको बता दें, सतीश कुमार 1986 बैच के इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स ऑफिसर हैं. मार्च 1988 में उन्होंने रेलवे ज्वाइन किया था. सतीश कुमार ने अपने 34 साल के करियर में इंडियन रेलवे में अहम योगदान दिए हैं. 8 नवंबर 2022 को उन्होंने उत्तर मध्य रेलवे (प्रयागराज) के महाप्रबंधक के रूप में जिम्मेदारी ली थी.
कहां से पढ़े हैं सतीश कुमार?
अगर हम सतीश कुमार की शैक्षणिक पृष्ठभूमि की बात करें तो उन्होंने मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, जयपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. इसके अलावा उन्होंने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से ऑपरेशन मैनेजमेंट एवं साइबर लॉ में पीजी डिप्लोमा किया है.
कब हुई करीयर की शुरूआत?
जानकारी के मुताबिक, मार्च 1988 में सतीश कुमार ने इंडियन रेलवे में अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद से उन्होंने कई जोन और डिवीजन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. रेलवे में हुए कई सुधारों में उनका योगदान रहा है. शुरुआत में उनकी नियुक्ति पूर्वी रेलवे के झांसी डिवीजन और वाराणसी में डीजल लोकोमोटिव वर्क्स में हुई थी.
सतीश कुमार का योगदान
सतीश कुमार के योगदान की बात करें तो उन्होंने फॉग सेफ डिवाइस विकसित किया था. जो धुंधली परिस्थितियों में सुरक्षित ट्रेन संचालन सुनिश्चित करने के लिए अहम साबित हुआ है. रिपोर्ट्स की मानें तो ये डिवाइस इंडियन रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है. खासकर उत्तरी भारत में ठंड के महीनों में जब विजिबिलिटी कम होती है. ऐसे में जोखिम को इस डिवाइस ने काफी हद तक कम किया है.
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