DNA: टनल से कब निकलेंगे मजदूर, किसी को नहीं पता; 41 जिंदगियों का सवाल.. जवाब कौन देगा?
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DNA: टनल से कब निकलेंगे मजदूर, किसी को नहीं पता; 41 जिंदगियों का सवाल.. जवाब कौन देगा?

DNA Analysis: एक बहुत पुराना मुहावरा है, पहाड़ खोदना. यानी बहुत मुश्किल काम करना. इस मुहावरे के बारे में आपने बहुत बार सुना होगा और जरूरत पड़ने पर बातचीत में इसका इस्तेमाल भी किया होगा. इस मुहावरे का जिक्र हम आज इसलिए कर रहे हैं क्योंकि, इन दिनों सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालना रेस्क्यू टीम के लिए पहाड़ खोदने के समान हो गया है.

DNA: टनल से कब निकलेंगे मजदूर, किसी को नहीं पता; 41 जिंदगियों का सवाल.. जवाब कौन देगा?

DNA Analysis: एक बहुत पुराना मुहावरा है, पहाड़ खोदना. यानी बहुत मुश्किल काम करना. इस मुहावरे के बारे में आपने बहुत बार सुना होगा और जरूरत पड़ने पर बातचीत में इसका इस्तेमाल भी किया होगा. इस मुहावरे का जिक्र हम आज इसलिए कर रहे हैं क्योंकि, इन दिनों सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालना रेस्क्यू टीम के लिए पहाड़ खोदने के समान हो गया है. सिलक्यारा टनल में 41 मजदूरों को फंसे हुए आज पूरे 16 दिन हो गये हैं. देश के लोग मजदूरों की सकुशल वापसी के लिए दुआएं कर रहे हैं. लेकिन इतने दिनों बाद एक भी मजदूर टनल से बाहर नहीं निकाला जा सका है, मजदूरों को सकुशल बाहर निकालने की सिर्फ बातें ही हो रही हैं.

प्लान A पर सबसे ज्यादा भरोसा था

जिस प्लान A पर रेस्क्यू टीम को सबसे ज्यादा भरोसा था, वो हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग था. इस प्लान के तहत टनल में 60 मीटर फैले मलबे से 3 फीट व्यास वाले पाइप बिछाकर मजदूरों तक पहुंच बनाई जानी थी. इसमें 48 मीटर तक पाइप बिछाने में कामयाबी भी मिली, लेकिन आगे का 12 मीटर मलबा जैसे पहाड़ तोड़ने के समान हो गया है. रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे इंजीनियर्स को भरोसा था कि ड्रिलिंग के इस काम को ऑगर मशीन पूरा कर लेगी. लेकिन 12 मीटर की हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में मशीनें बार-बार फेल हो रही हैं, जिससे ऐसा लगने लगा है कि मशीनों से इंजीनियर्स का भरोसा ही उठ गया है. हॉरिजेंटल ड्रिलिंग को लेकर ऐसा क्यों कहा जा रहा है, इसकी वजह है. दरअसल, 12 मीटर की ड्रिलिंग अब हाथ से कराए जाने का फैसला लिया गया है, इसके लिए दिल्ली से RAT Miners के 6 मेंबर्स की टीम सिलक्यारा पहुंच गई है. Rat miners यानी ऐसे माइनर्स जिन्हें पतले से पैसेज से अंदर जाकर ड्रिल करने का अनुभव होता है.

- Rat माइनर्स को मैन्युअल ड्रिलिंग का एक्सपर्ट वर्कर माना जाता है.
- सिलक्यारा पहुंचे Rat माइनर्स रॉकवेल कंपनी में काम करते हैं
- 2-2 वर्क टनल पैसेज से जाएंगे और 12 मीटर हॉरिजेंटल ड्रिलिंग करेंगे
- ऐसी ड्रिलिंग के लिए स्पेशल ट्रेनिंग, स्किल और प्रैक्टिस की जरूरत होती है.

कितना समय लगेगा

जब ऑगर मशीन से 48 मीटर की ड्रिलिंग में 10 दिन का समय लग गया, तब अंदाजा लगाइये कि जब 2-2 वर्कर मिलकर 12 मीटर की ड्रिलिंग हाथों से करेंगे, तब कितना समय लगेगा. हालांकि, इन Rat माइनर्स ने भरोसा दिया है कि दिन रात काम करके ये बहुत जल्द 12 मीटर की ड्रिलिंग करके रास्ता बना देंगे. अबतक तो मजदूरों के बाहर निकाले जाने की सिर्फ उम्मीद ही दिखाई गई है, दावे किये गये हैं और पीड़ित परिवारों को भरोसा दिया गया है. कोशिशें भले ही की गई, लेकिन नतीजे धरातल पर दिखाई नहीं देते. ऐसा लग रहा है कि मजदूरों को बचाने के लिए कोशिशें कम बल्कि एक्सपेरिमेंट ज्यादा चल रहे हैं. जो सफल कम बल्कि फेल ज्यादा हो रहे हैं. यही वजह है कि मजदूर टनल से बाहर कब आएंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

मजदूरों पर क्या गुजर रही होगी

सोचकर देखिये, उन 41 मजदूरों पर क्या गुजर रही होगी, जिन्हें हर दिन ये भरोसा मिलता है कि बस कुछ घंटे बाद उन्हें बाहर निकाल लिया जायेगा और फिर बाहर रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई गई मशीनें खराब हो जाती हैं. उन परिजनों पर क्या बीत रही होगी, जिनके लिए अपनों के सकुशल टनल से बाहर निकलने के इंतजार में सेकंड-सेकंड भारी पड़ रहा है. पिछले 16 दिन में दर्जनभर बार ऐसा हो चुका है, जब मजदूरों के बाहर निकलने की उम्मीद बंधती है लेकिन उसके अगले कुछ घंटों में ड्रिलिंग में लगी मशीनें खराब हो जाती हैं. या फिर कोई ना कोई अड़चन बीच में आती है. शायद यही वजह है कि हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में इस्तेमाल की जाने वाली ऑगर मशीन से ही इंजीनियर्स का भरोसा उठ गया है.

बार-बार मिला धोखा

तारीख अलग अलग..अधिकारी अलग अलग..लेकिन बयान करीब करीब एक जैसे. रेस्क्यू ऑपरेशन का काम रुक गया. और वजह ऑगर मशीन में आई दिक्कत. कभी ऑगर मशीन का प्लेटफॉर्म टूट जाना. तो कभी ऑगर मशीन के ब्लेड टूटना. मजदूरों को बाहर निकालने के लिए जैसा जोश दिखाया गया था, नतीजे तो उसके मुताबिक बिल्कुल नहीं दिखते. बार-बार प्लान बदलने, मशीनें बदलने के बावजूद नतीजा ये कि एक भी मजदूर टनल से बाहर नहीं निकाला जा सका है. उसपर भी सोचने वाली बात ये कि जिस ऑगर मशीन पर इंजीनियर्स को इतना भरोसा था कि उससे हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग कामयाब होगी, वो भी बार बार धोखा दे गई.

- टनल हादसा 12 नवंबर की सुबह करीब साढ़े 5 बजे हुआ था, रेस्क्यू ऑपरेशन करीब 4 घंटे बाद शुरू हुआ. प्लान के तहत 60 मीटर के हिस्से में गिरे मलबे को हटाया जाने लगा. लेकिन 13 नवंबर को नया मलबा गिरने की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा.
- 14 नवंबर को तय हुआ, कि ऑगर मशीन से ड्रिलिंग करके 900 एमएम का पाइप मलबे के बीच से निकालकर मजदूरों को पहुंच बनाई जायेगी, लेकिन लैंड स्लाइड की वजह से ऑगर मशीन का प्लेटफॉर्म ही खराब हो गया.
- 15 नवंबर को दिल्ली से अमेरिकन ऑगर मशीन को मंगाया गया, हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग शुरू हुई.
- लेकिन 17 नवंबर को टनल के अंदर से तेज क्रेक की आवाज आई, जिसके बाद मशीन में दिक्कत हुई. इससे रेस्क्यू ऑपरेशन का काम फिर रोकना पड़ा. इसके बाद इंदौर से एयरलिफ्ट करके नई मशीन मंगाई गई. जिसके मदद से 6 मीटर के 4 पाइप बिछाने में सफलता मिली. लेकिन दोपहर के वक्त इस मशीन में भी दिक्कत आ गई.
- 18 नवंबर को टनल में अमेरिकन ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई, लेकिन बहुत ज्यादा वाइब्रेशन करने की वजह से काम रोकना पड़ा, आशंका थी कि टनल में वाइब्रेशन से ज्यादा मलबा गिर सकता है.
- 22 नवंबर को ड्रिलिंग के दौरान बीच में सरिये आने से ड्रिलिंग का काम रुका और अगले दिन काम शुरू हो सका. लेकिन कुछ देर बाद ही ऑगर मशीन के ब्लेड टूट गए. ऑगर मशीन के टूटे ब्लेड्स को निकालने में ही काफी वक्त जाया हो गया.
- 25 नवंबर को ऑगर मशीन टनल के अंदर ही टूट गई, जिसे काटकर बाहर निकालने के लिए प्लाज्मा मशीन को हैदराबाद से मंगाया गया. ऑगर मशीन के टुकड़ों को बाहर निकालने में 27 नवंबर को सफलता मिली.

रेस्क्यू ऑपरेशन रुकता गया

इस तरह बार बार रेस्क्यू ऑपरेशन रुकता गया, और मजदूरों के बाहर निकलने की उम्मीदें कमजोर होती चली गई. हादसे के बाद से दर्जनभर से ज्यादा विभाग और एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी हुई हैं. नेताओं का आना जाना भी सिलक्यारा टनल लगा हुआ है, आश्वासन दिये जा रहे हैं. दावे किये जा रहे हैं, कि जैसे अगले कुछ घंटों में मजदूर टनल से बाहर होंगे. नेताओं की आवाजाही से ऐसा लग रहा है कि जैसे सिलक्यारा टनल कोई टूरिस्ट प्लेस बन गया हो, और वहां जाकर बयानबाजी करना फैशन सा हो गया है.

पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं

देश को इंतजार तो टनल में फंसे मजदूरों के बाहर निकलने का था, लेकिन उन्हें जानकारी मिली ऑगर मशीन के मलबे को बाहर निकालने की. पिछले 16 दिन से सिलक्यारा में यही सब चल रहा है. नेता, मंत्री टनल साइट पर पहुंचते हैं. मजदूरों का हालचाल पूछते हैं. फिर मीडिया के सामने आकर दावे करते हैं, कि बस ऑपरेशन पूरा होने वाला है. और मजदूर टनल से बाहर आने वाले हैं. टनल में फंसे लोगों के परिजन अपनों को लेकर फिक्रमंद हैं, लेकिन घटनास्थल पर पहुंचने वाले मंत्री और नेताओं. से उन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता है. जबकि जमीनी हकीकत सबके सामने हैं. अभी भी मजदूर कब बाहर निकाले जा सकेंगे, इसका पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है. रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी एजेंसी और कंपनियों के प्रतिनिधि शुरूआत से ही इस बात पर जोर देते आए हैं. कि अगर ऑपरेशन में कोई दिक्कत नहीं आती है. तभी मजदूरों को बाहर निकालने के बारे में सही जानकारी दी जा सकेगी.

देश को एक पुख्ता जवाब का इंतजार

रेस्क्यू ऑपरेशन के जानकारी के लिए 27 नवंबर को प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी एक मिश्रा भी सिलक्यारा पहुंचे, रेस्क्यू ऑपरेशन के बारे में जानकारी हासिल की और उन्होंने टनल में फंसे मजदूरों से बात की. टनल से ऑगर मशीन का मलबा निकाल लिया गया है, लेकिन इसबार मशीन के बजाये मैन्युअल ड्रिलिंग की जायेगी, ताकि रेस्क्यू ऑपरेशन जल्द पूरा हो सके. पूरे देश को एक पुख्ता जवाब का इंतजार है, कि मजदूर बाहर कब आएंगे. अब सिर्फ आश्वासनों से काम नहीं चलने वाला. सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल रहे थाईलैंड के टनल ऑपरेशन को भी 18 दिन में पूरा कर लिया गया था. लेकिन सिलक्यारा टनल ऑपरेशन कब खत्म होगा. इसका जवाब फिलहाल किसे के पास नहीं है.

एक साथ कई प्लान पर काम

दो दिन से टनल में रुकी हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग आज सोमवार को देर शाम शुरु हो सकी. क्योंकि, ऑगर मशीन का मलबा और हेड टनल में फंसा हुआ था. लेकिन जितनी मुश्किलें ऑगर मशीन से ड्रिलिंग में आई हैं, उसके बाद अब एक साथ कई प्लान पर काम शुरू कर दिया गया है. अलग अलग एजेंसी कुल 5 प्लान पर काम कर रही हैं.

- पहला प्लान हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग करके 3 फीट व्यास वाले पाइप से टनल बनाना है.
- दूसरा प्लान 86 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग करके मजदूरों को टनल से निकालना है
- तीसरा प्लान टनल के परपेंडिकुलर 180 मीटर हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की जायेगी
- चौथा प्लान बड़कोट साइड से 480 मीटर टनल बनाना है, 10 मीटर ड्रिलिंग हो चुकी है.
- पांचवां प्लान टनल के ऊपरी हिस्से पर डंडालगांव की तरफ 325 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग करना है.

मजदूरों की सेहत को लेकर भी चिंता

टनल की दूसरी तरफ बड़कोट की तरफ वाले हिस्से में सुरंग को बनाने का काम चल रहा है, यहां 480 मीटर की टनल बनाई जानी है, जिसमें से 10 मीटर का हिस्सा बनाया जा चुका है. हालांकि, टनल के इस हिस्से की ड्रिलिंग में 40 दिन का वक्त लगेगा, तभी मजदूरों तक पहुंचा जा सकेगा. जिस तरह रेस्क्यू ऑपरेशन का वक्त बढ़ता जा रहा है, उससे मजदूरों की सेहत को लेकर भी चिंता बढ़ती जा रही है. मजदूरों पर नजर रखने के लिए रोबोटिक्स की मदद ली जा रही है. इसके लिए लखनऊ से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स डेवलपर मिलिंद राज को बुलाया गया है. अबतक हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग ही सबसे पुख्ता प्लान माना जा रहा है, 12 मीटर की ड्रिलिंग अगर किसी तरह पूरी हो जाती है. तो मजदूरों तक जल्द पहुंचने का रास्ता बन सकेगा, वरना बाकी प्लान ऐसे हैं जिनके पूरा होने में अभी वक्त लगेगा. सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपील की, कि सभी 41 श्रमिकों की सकुशल वापसी के लिए प्रार्थना करें.

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