मुंबई में तिरंगा रैली के पीछे का मकसद क्या था?
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मुंबई में तिरंगा रैली के पीछे का मकसद क्या था?

Mumbai Tiranga Rally: भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई ने बड़े-बड़े आंदोलन देखे हैं. हाल ही में वहां एक अजीब रैली हुई, जो मूल रूप से वहां के लोगों और राजनीतिक दलों पर अपनी धाक जमाने के लिए की गई.

मुंबई में तिरंगा रैली के पीछे का मकसद क्या था?

Mumbai Tiranga Rally: भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई ने बड़े-बड़े आंदोलन देखे हैं. हाल ही में वहां एक अजीब रैली हुई, जो मूल रूप से वहां के लोगों और राजनीतिक दलों पर अपनी धाक जमाने के लिए की गई. एआईएमआईएम के पूर्व सांसद इम्तियाज जलील, वारिस पाठन जैसे नेताओं की अगुवाई में यह यात्रा निकाली गई थी. संभाजीनगर से शुरू हुई इस रैली को मुंबई जाना था जहां वे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को विरोध पत्र देते. उन्होंने अपने समर्थकों के साथ यह रैली निकाली जिसका नाम था-संविधान रैली. सामाजिक कार्यकर्ता गणेश जोशी की मानें तो इस रैली में तिरंगा लिये हुए प्रदर्शनकारी तो थे ही, कई सारे ऐसे तत्व भी थे जो राजनीतिक नारे लगाने के बजाय सिर तन से जुदा जैसे अंसवैधानिक और अपराधिक नारे लगा रहे थे.

हाथ में तिरंगा और होठों पर हत्या करने के नारे..

स्तंभकार सौरभ शुक्ला ने कहा कि इस रैली में हाथ में तिरंगा और होठों पर हत्या करने के नारे के साथ वे मुंबई की रफ्तार धीमी करने में सफल हो गए. ..था तो यह राजनीतिक प्रदर्शन लेकिन मुसलामानों को एकजुट करने और उन्हें अधिक से अधिक भाग लेने के लिए धार्मिक उन्माद से भरे नारे लगाये गये. उनके नेताओं ने इस रैली में अपने पैगंबर मुहम्मद का नाम ले-लेकर खूब नारे लगाये ताकि प्रदर्शनकारी जोश में आ जाएं. उनका तो इरादा था कि किसी तरह महानगर को पंगु बना दिया जाये और सच तो ये है कि उन्होंने ऐसे दावे भी किये. यह तो खैरियत हुई कि पुलिस ने बल प्रयोग करके रैली को मुलुंड चेकपोस्ट से आगे नहीं जाने दिया. अगर वे मुंबई जाते तो कितनी हिंसा होती, आम लोगों को कितनी तकलीफ होती, यह समझने की बात है.

राजनीतिक रैली में धार्मिक उन्माद क्यों?

दूसरी तरफ यह बात समझ से परे है कि एक राजनीतिक रैली में धार्मिक उन्माद क्यों पैदा किया जा रहा था? रैली के आयोजकों का कहना था कि वे राम गिरी महाराज और भाजपा विधायक नितेश राणे के तथाकथित मुस्लिम विरोधी बयानों का विरोध करते हैं. लेकिन जिस तरह से संविधान रैली या तिरंगा रैली निकाली गई उससे यह स्पष्ट हो गया कि आयोजकों का इरादा न केवल राजनीतिक था बल्कि धार्मिक उन्माद को बढ़ाना था और मुसलामानों को भड़काना था. वे जानबूझकर ऐसे धार्मिक नारे लगा रहे थे कि उत्तेजना फैले, जबकि रैली के आयोजक खुद कह रहे थे कि नितेश राणे ने ऐसे बयान दिये हैं, जिससे हिन्दू-मुस्लिम एकता में दरार पड़ी है और वे हिंसा भड़काना चाहते हैं. 

भड़काऊ बयान..

याद दिला दें कि नितेश ने सांगली में कहा था कि 24 घंटे के लिए पुलिस को छुट्टी पर भेज दो फिर हिंदू अपनी ताकत दिखा देंगे. पहली सितंबर को उन्होंने अहमदनगर में कहा- रामगिरी महाराज के खिलाफ किसी ने कुछ भी किया तो मस्जिदों के अंदर जाकर चुन-चुनकर मारेंगे. यह सही है कि उन्हें ऐसे बयानों से बचना चाहिए लेकिन याद करें तो आपको अकबरूद्दीन ओवैसी का वह वीडियो बयान भी याद आयेगा जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दी जाये तो 25 करोड़ मुस्लिम 100 करोड़ हिन्दुओं का कत्लेआम कर देंगे. इस मामले में वे अदालत से बरी भी हो गये. भाजपा विधायक नितेश ने सांगली में कहा था कि 24 घंटे के लिए पुलिस को छुट्टी पर भेज दो फिर हिन्दू अपनी ताकत दिखा देंगे. 

इसका नाजायज फायदा उठाया..

वरिष्ठ पत्रकार विक्रम उपाध्याय ने कहा कि अब यह मुद्दा ओवैसी की पार्टी को मिला तो उन्होंने इसका नाजायज फायदा उठाया. एक ऐसी रैली निकाली जिसमें धार्मिक उन्माद फैलाने की पूरी कोशिश की गई. रैली के बाद कई फर्जी वीडियो भी जारी किये गये ताकि मुसलमानों में धार्मिक उन्माद पैदा हो. इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया का पूरा सहारा लिया और झूठी बातें फैलाने से कोई गुरेज नहीं किया. महाराष्ट्र खासकर मुंबई के लोगों को अभी वह घटना याद होगी जब आजाद मैदान में मुसलमानों की भीड़ में ऐसे ही नारे लगाये गये थे और भीड़ नियंत्रण से बाहर हो गई. 

40,000 की उग्र भीड़ ने भारी हिंसा की..

उन्होंने कहा कि उसमें से कुछ कट्टरपंथियों ने वहां शहीद स्मारक में स्थापित उन प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया, जो उन वीर शहीद सैनिकों के थे, जिन्होंने सीमा की रक्षा में अपनी जानें कुर्बान कर दी थी. आंदोलनकारी म्यांमार में मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ रैली करने आये थे और सिर्फ 1500 लोगों को अनुमति मिली थी लेकिन धार्मिक नारे लगे और 40,000 की उग्र भीड़ ने भारी हिंसा की. यहां यह बताना प्रासंगिक है कि ओवैसी की पार्टी एआईएमाइएम राजनीतिक पार्टी है जिसे सभी तरह की संवैधानिक मान्यता मिली हुई है. ऐसे में धार्मिक उन्माद पैदा करना अनुचित ही नहीं गैर कानूनी भी है. 

संसद में तो ओवैसी धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं..

सामाजिक कार्यकर्ता गणेश जोशी ने कहा कि संसद में तो ओवैसी धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं लेकिन जो सामने दिख रहा है वह सच्चाई है. वह संविधान की बातें तो करते हैं लेकिन मुसलमानों की भावनाओं को भड़काने का मौका नहीं छोड़ते, जैसा उन्होंने शपथ लेते वक्त फिलीस्तीन की जय कहकर दिखा भी दिया था. अगर उन्हें फिलीस्तीन से इतना ही लगाव और सहानुभूति थी तो वह वहां का दौरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने महज भावनाओं का खेल खेला. तिरंगा रैली भी कुछ ऐसी ही थी. विधानसभा चुनाव को नजदीक देखकर उन्होंने यह रैली करवाई और इसे धार्मिक रंग दिया ताकि मुस्लिम वोटरों को इकट्ठा किया जा सके. संविधान की बातें करके वे हिन्दुओं को दबाने की कोशिश करते हैं. 

हमारा संविधान क्या कहता है?

उन्होंने कहा कि अगर किसी हिन्दू ने कोई गलत बात कही है तो उसके खिलाफ अदालत में जाना चाहिए, ऐसा हमारा संविधान कहता है. लेकिन ये मुस्लिम धार्मिक नेता और राजनीतिक दल अपने नफे-नुकसान के हिसाब से कदम उठाते हैं या बयान देते हैं. वे कई बार तो इस्लाम खतरे में है.. का भी नारा लगा देते हैं. ऐसे में उनके मुंह से संविधान बचाने की बातें अच्छी नहीं लगती. वह महज छलावा है.

विभाजनकारी कदम उठाना आसान

स्तंभकार सौरभ शुक्ला ने कहा कि ओवैसी की पार्टी और अन्य गरमपंथी इस समय देख रहे हैं कि बीजेपी इस समय केन्द्र में ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र में भी कमजोर हो गई है. वह कोई बड़ा कदम उठाना नहीं चाहेगी. ऐसे में विभाजनकारी कदम उठाना आसान है और मुसलमानों को उत्तेजित करके उनके वोट लिये जा सकते हैं. बजाय इसके कि उन्हें देश की मुख्य धारा में लाया जाये और सच्चे भारतीय की तरह राज्य और राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बनाया जाये, उन्हें उग्रवाद के रास्ते पर धकेलने का काम किया जा रहा है. उन्हें दूसरे धर्मों के लोगों से अलग रखना और अपना फायदा निकालने में रुचि है. मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना जैसे ऐतिहासिक वाक्य को भुला देने की उनकी कोशिश है. यह सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में अगर प्रगति होगी तो उसका लाभ महाराष्ट्रियन लोगों को ही मिलेगा न कि दूसरे राज्य के लोगों को?

हिन्दू समाज को जरूर सबक लेना चाहिए 

सामाजिक कार्यकर्ता गणेश जोशी ने कहा कि पिछले सैकड़ों वर्षों से हिन्दू समाज हिंसा का शिकार होता रहा है और अब जबकि वह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में रह रहा है तो मुस्लिम दलों का यह व्यवहार आपत्तिजनक है. संविधान की आड़ में धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देना कहीं से भी उचित नहीं है. लेकिन अफसोस ऐसा ही किया जा रहा है. इस तरह के प्रदर्शनों से हिन्दू समाज को जरूर सबक लेना चाहिए और उन दलों से दूरी बना लेना चाहिए जो इस तरह के व्यवहार की निंदा नहीं करते.

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