दोपहर के 3 बजे थे. नई दिल्ली ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो में पहले की दिनों की तुलना में ज्यादा चहल पहल थी. हर किसी के चेहरे पर एक उत्सुकता सी थी. महात्मा गांधी पहली बार AIR के स्टूडियो में बैठे थे. तब देश के हालात अच्छे नहीं थे. बंटवारे के बाद हर तरफ से दुखद खबरें मिल रही थीं. बापू ने देशवासियों से मन की बात करने का फैसला किया. वह बापू का पहला रेडियो संबोधन था. वो आज की ही तारीख थी. 12 नवंबर 1947 और बापू की आवाज गूंजने लगी.


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उस समय के हालात


विभाजन के बाद लाखों हिंदुओं और सिखों को पाकिस्तान में अपना घरबार छोड़कर आना पड़ा था. दोनों तरफ से पलायन हुआ था. वे मजबूर थे, लाचार थे. पाकिस्तान से आए कई शरणार्थियों को दिल्ली के शिविरों में रखा गया था. उनके सामने भविष्य अनिश्चित था. उनकी दुर्दशा से बापू बहुत दुखी थे. उन्होंने इन शरणार्थियों को सीधे संबोधित करने का फैसला किया.  


बापू चाहते थे हर शिविर में जाऊं


वैसे बापू की इच्छा थी कि वह हर शिविर में जाएं लेकिन यह इतना आसान नहीं था. काफी समय लग सकता था. ऐसे में उन्होंने रेडियो के माध्यम से लोगों तक पहुंचने की सोची, जिससे लोगों के साथ एकजुटता दिखाई जा सके और उनका दर्द बांटा जा सके.


अपने भाषण में गांधी ने सहानुभूति, करुणा और प्रोत्साहन भरे शब्द कहे. शरणार्थियों से ऐसे मुश्किल समय में लचीला बने रहने का आग्रह किया. उस प्रसारण को भारत की आजादी के बाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में याद किया जाता है. जी हां, इसके सम्मान में आज के दिन को लोक सेवा प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है.


वैसे, AIR की यात्रा 1936 से शुरू हुई थी. 1959 में दूरदर्शन आया. एआईआर की सुदूर गांवों तक पहुंच बापू के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो कहते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है. आगे सुनिए बापू के उस भाषण के कुछ अंश. आवाज महात्मा गांधी की है.