WHO on Pharmaceutical Industry: क्या दुनिया में दवाओं का निर्माण लोगों की जरूरतों के हिसाब से हो रहा है या केवल मुनाफे को ध्यान में रखकर. WHO ने अब इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया है.
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Vaccine Business in Worldwide: कोरोनावायरस की महामारी के दौरान जिस तरह से किसी देश के पास वैक्सीन (Vaccine Business) का स्टॉक असीमित था और किसी देश के पास जरूरत भर की वैक्सीन भी नहीं पहुंची थी. उसने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि वैक्सीन पर अमीर देशों का हक पहला हो जाता है जबकि बाकी देश जरूरी सप्लाई के लिए भी संघर्ष ही करते रह जाते हैं.
सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन पर अमीर देशों का कब्जा
World Health Organisation ने ग्लोबल वैक्सीन सप्लाई पर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन (Vaccine Business) के खेल के बड़े खिलाड़ी अभी भी अमीर देश हैं और गरीब देश याचक की भूमिका में जरूरी सप्लाई के इंतजार में ही रहते हैं. सर्वाइकल कैंसर की HPV वैक्सीन अभी तक केवल 41% गरीब देशों को ही नसीब हो पाई है. जबकि अमीर देशों में 83% को ये वैक्सीन मिल चुकी है. जबकि इसकी ज्यादा जरूरत गरीब देशों को है.
वर्ष 2021 यानी पिछले वर्ष 1600 करोड़ रुपये वैक्सीन (Vaccine Business) की सप्लाई हुई. इस दौरान वर्ष 2019 के मुकाबले तीन गुना ज्यादा वैक्सीन सप्लाई की गई. जबकि 2019 में केवल 600 करोड़ की वैक्सीन सप्लाई की गई थी. वर्ष 2019 में वैक्सीन का मार्केट 3800 करोड़ का था, जबकि 2021 में ये बाजार 14 हजार 100 करोड़ का हो गया. ये बाजार कोरोनावायरस की बीमारी की वजह से बढ़ा. नई वैक्सीन को पूरी दुनिया जल्द से जल्द हासिल करना चाहती थी. लेकिन इस मौके पर ये भी समझ आया कि दुनिया की वैक्सीन बनाने की कैपेसिटी कितनी ज्यादा है कि दो साल के बिजनेस के अंतर में सीधे तीन गुना का उछाल था.
10 कंपनियों के हाथ में दुनिया का दवा उद्योग
हालांकि अभी भी वैक्सीन बाज़ार में कुछेक बड़े खिलाड़ियों का कब्जा है. दुनिया के 10 manufacturers दुनिया की कुल वैक्सीन की जरूरतों की 70% वैक्सीन बना रहे हैं. सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन जो PCV, HPV, measles और rubella के लिए बनाई जाती हैं. ये मोटे तौर पर केवल दो निर्माताओं के कब्जे में हैं. वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां intellectual property का हवाला देकर किसी दूसरे को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं करती. हालांकि ये कंपनियां वही वैक्सीन बनाती हैं, जिनकी डिमांड हमेशा रहती है. अचानक आने वाले आउटब्रेक जैसे मंकीपॉक्स, हैजा, टायफायड या इबोला वायरस जैसी बीमारियों की वैक्सीन की सप्लाई में हमेशा दिक्कत आती है क्योंकि इनकी जरुरत कम समय के लिए रहती है और इसकी ग्लोबल डिमांड नहीं होती.
लोगों की जरूरतों के हिसाब से बनाएं दवा
कोरोना की महामारी ने सबक दिया कि 4 साल से 10 साल की रिसर्च के बाद बनने वाली दवाओं (Vaccine Business) को जरूरत पड़ने पर बाजार 11 महीने में भी बना सकता है, बशर्ते उसमें मुनाफा हो. WHO की इस रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन को पब्लिक हेल्थ के लिहाज से बनाए जाने की जरूरत है. अभी वैक्सीन बाज़ार पर मोटे तौर पर अमेरिका और यूरोप का कब्जा है. एशिया में भारत में सीरम इंस्टीट्यूट और चीन में साइनोवैक ये तीन कंपनियां ही मोटे तौर पर वैक्सीन बनाती हैं.
कोरोना वायरस की वैक्सीन ने खोली पोल
इसी वजह से जिस वर्ष कोरोनावायरस की वैक्सीन ईजाद होकर बाज़ार में पहुंची यानी 2021 तो उस वर्ष में वैक्सीन के 30% हिस्से पर पश्चिमी देशों का कब्ज़ा था जबकि केवल 8% वैक्सीन अफ्रीका को नसीब हुई थी. इसलिए सरकारों को सलाह दी गई है कि देश में वैक्सीन निर्माण के लिए ऐसी पॉलिसी बनाएं कि ज्यादा से ज्यादा देश वैक्सीन बना रहे हों और इस काम में सरकार का सहयोग मिले जिससे रिसर्च और विकास में खर्च होने वाली रकम पर मुनाफा हावी ना हो.
जिन वैक्सीन (Vaccine Business) की जरुरत होती है वो कई बार इसलिए डेवलप नहीं की जाती क्योंकि उनमें मुनाफा नहीं होता. यही वजह है कि दुनिया के कई देश अभी भी वैक्सीन के लिए पूरी तरह दूसरों पर आश्रित हैं. WHO का कहना है कि वैक्सीन केवल मुनाफे के लिए बन रही हैं, जनता की भलाई के लिए नहीं.
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