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नई दिल्ली: कश्मीर की तरह ही बांग्लादेश में भी हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है. बांग्लादेश में अब तक 10 हिन्दुओं की हत्या हो चुकी है, 17 हिन्दू लापता हैं. 23 हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार की खबरें आ चुकी हैं तो हाली में 160 दुर्गा पूजा पंडालों को जेहादी भीड़ ने तहस नहस कर दिया. 15 से ज्यादा मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी के मामले सामने आ चुके हैं. 150 से ज्यादा हिन्दू परिवारों के घर लूट लिए गए और नोआखली के इस्कॉन मंदिर के दो पुजारी समेत 5 पुजारियों की हत्या कर दी गई लेकिन इसके बावजूद मानव अधिकारों के सर्टिफिकेट बांटने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस पर चुप हैं. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करने वाले देश और नेताओं ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. यहां तक कि हमारे देश के विपक्षी नेताओं के पास भी इस पर कहने के लिए कुछ नहीं है.
वर्ष 2008 में जब दिल्ली के चर्चित बाटला हाउस एनकाउंटर में दो आतंकवादी मारे गए थे, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली पहुंच गई थीं और उन्होंने इसे मानव अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला बताया था. उन्होंने ये भी कहा था कि अगर ये एनकाउंटर फेक साबित नहीं हुआ तो वो राजनीति छोड़ देंगी लेकिन ना तो उन्होंने एनकाउंटर सही साबित होने पर राजनीति छोड़ी और ना ही बांग्लादेश में हिन्दुओं की हत्याओं पर कोई दुख जताया. इससे उलट अगर, भारत के किसी राज्य में किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कुछ लोग मार देते तो यही अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, पश्चिमी देश और हमारे देश के विपक्षी नेता क्या करते? ये नेता भारत में अल्पसंख्यकों को खतरे में बताते, ये अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में लोकतंत्र और मानव अधिकारों को खतरे में बताती और ये पश्चिमी देश भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने लगते. लेकिन जब बात बांग्लादेश की आती है, तो ये सब चुप हो जाते हैं.
बांग्लादेश के 16 जिलों में अब भी तनावपूर्ण हालात बने हुए हैं. वहां हिंसा पाकिस्तानी मॉडल के तहत ही हो रही है, जिसका मकसद है हिन्दुओं को वहां से भगाना और उनकी हत्याएं करना. बांग्लादेश की हिंसा की जड़ों में इस्लामिक जेहाद है और वहां इस जेहाद का सबसे बड़ा ठेकेदार है जमात-ए-इस्लामी. यही संगठन बांग्लादेश में हिन्दुओं को चुन-चुन कर मार रहा है और सुनियोजित तरीके से हिन्दू मन्दिरों, धर्मगुरुओं और संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं. इस समय पूरी दुनिया में 80 से ज्यादा संगठन ऐसे हैं, जिनका मकसद जेहाद के रास्ते कट्टर इस्लामिक मान्यताओं का प्रचार करना है. हैरानी की बात ये है कि इन सभी संगठनों की जड़ें पाकिस्तान में हैं और बांग्लादेश का ये संगठन भी इन्हीं में से एक है.
जमात-ए-इस्लामी की स्थापना अविभाजित भारत में हुई थी. वर्ष 1941 में सैयद अबुल अला मौदूदी ने इस संगठन की नींव रखी थी, जो एक इस्लामिक स्कॉलर थे. ये संगठन भारत के विभाजन के खिलाफ था क्योंकि सैयद अबुल अला मौदूदी का मानना था कि अगर भारत का विभाजन हो गया तो इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग बंट जाएंगे और भारत कभी दुनिया में इस्लाम का सबसे बड़ा केन्द्र नहीं बन पाएगा. यानी वो चाहते थे कि भारत दुनिया में इस्लाम धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र बने.
इसके विपरीत वर्ष 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो पाकिस्तान में हिन्दुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसमें जमात-ए-इस्लामी के कट्टरपंथियों ने इसी तरह हिन्दुओं की हत्याएं करना शुरू कर दीं. वर्ष 1950 में भी इस संगठन ने हजारों हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर किया. वर्ष 1971 में जब पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना, तब भी ये संगठन पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा था. उस समय इसने पाकिस्तान की सेना का साथ दिया था और सेना के द्वारा शांति वाहिनी नाम से एक कमेटी भी बनाई गई थी, जिसे 'Peace Corps' भी कहा जाता है. इस कमेटी ने पाकिस्तान के इशारे पर बांग्लादेश में शांति स्थापना के लिए अल बद्र और अल शाम जैसी कई संस्थाएं बनाई, जिनका एक ही मकसद था हिन्दू महिलाओं को इस्लाम धर्म मानने के लिए मजबूर करना, उनका रेप करना और उनके परिवार के लोगों की हत्या कर देना. एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी भयानक यातनाओं का सामना उस समय चार लाख गैर मुस्लिम महिलाओं ने किया था.
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पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के बाद जब वर्ष 1972 में शेख मुजीब उर रहमान, जो मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे, वो देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने संविधान में इस्लामिक राष्ट्र को महत्व ना देकर धर्मनिरपेक्षता के विचार को अपनाया. लेकिन बांग्लादेश ज्यादा वर्षों तक इस पहचान को बचा कर नहीं रख सका. वर्ष 1975 में शेख मुजीब उर रहमान और उनके परिवार की हत्या के तीन साल बाद वर्ष 1978 में बांग्लादेश के संविधान से धर्मनिरपेक्षता शब्द को हटा दिया गया. ये काम बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उर रहमान ने किया, जिनकी पत्नी खालिदा जिया आज भी बांग्लादेश की नेशनिलस्ट पार्टी की प्रमुख हैं और जमात-ए-इस्लामी की सबसे बड़ी समर्थक हैं. वैसे तो वर्ष 2010 में वहां की सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद बांग्लादेश के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया गया था, लेकिन इसे विरोधाभास ही कहेंगे कि बांग्लादेश का संविधान आज भी खुद को इस्लामिक राष्ट्र कहता है.
बांग्लादेश के संविधान में पहले तीन शब्द कुरान की एक आयत से ही लिए गए हैं. क्रोनोलॉजी समझें तो जमात-ए-इस्लामी कुछ नया नहीं कर रहा है. वो उसी पाकिस्तान मॉडल पर हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा भड़का रहा है, जिसके तहत एक-एक करके सभी देशों में इस्लाम धर्म को स्थापित करना है. सोचने वाली बात ये है कि आज भारत अगर एक इस्लामिक राष्ट्र बन गया तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी 172 करोड़ हो जाएगी. अगर 15 और 16वीं शताब्दी की तर्ज पर भारत अखंड भारत बन गया तो ये दुनिया में इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र बन जाएगा क्योंकि इस्लाम को मानने वाला इससे बड़ा कोई देश नहीं होगा.
भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने वाले ये सपना दो तरीकों से पूरा कर सकते हैं. पहला तरीका ये है कि भारत में 20 से 30 करोड़ हिंदुओं का धर्म बदलकर उन्हें मुसलमान बना दिया जाए और दूसरा तरीका ये है कि मुसलमानों की आबादी तो बढ़ती रहे लेकिन हिंदुओं की आबादी को बढ़ने से रोक दिया जाए और उनकी हत्याएं होती रहें. आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 1941 में जब जमात-ए-इस्लामी की स्थापना हुई थी, तब पूर्वी पाकिस्तान में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी थी और 28 प्रतिशत हिन्दू थे. वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के बाद वहां हिन्दुओं की आबादी 28 प्रतिशत से साढ़े 13 प्रतिशत हो गई और 2011 की जनगणना के मुताबिक बांग्लादेश में अब सिर्फ साढ़े 8 प्रतिशत ही हिन्दू बचे हैं, जबकि मुस्लिम आबादी 90 प्रतिशत पहुंच गई है.
पिछले लगभग चार दशकों से बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा का एक एक सेट पैटर्न है. वहां दुर्गा पूजा के मौके पर हर बार इस तरह की अफवाह उड़ाई जाती है कि हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म का अपमान किया है, जिसके बाद दंगे शुरू हो जाते हैं. भारत से कोई नेता वहां जाता है, तो हिंसा शुरू हो जाती है, जैसे इस साल जब 25 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश के दौरे पर गए थे तो जमात ए इस्लामी ने जबरदस्त हिंसा की थी. आम चुनाव के दौरान भी हिन्दुओं को वोट डालने से रोकने के लिए पाकिस्तान के इशारे पर जमात-ए-इस्लामी बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का खून बहाती है लेकिन दुनिया को बांग्लादेश के हिन्दुओं के मानव अधिकार नजर नहीं आते.