मनीष सिसोदिया को क्यों नहीं मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?
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मनीष सिसोदिया को क्यों नहीं मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?

Manish Sisodia: दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया को दिल्ली हाई से राहत नहीं मिली है. आबकारी नीति मामले में ईडी की ओर से दायर मनी लॉन्ड्रिंग केस में मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है.

मनीष सिसोदिया को क्यों नहीं मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?

Manish Sisodia: दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया को दिल्ली हाई से राहत नहीं मिली है. आबकारी नीति मामले में ईडी की ओर से दायर मनी लॉन्ड्रिंग केस में मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने सिसोदिया के अलावा आम आदमी पार्टी के कम्युनिकेशन इंचार्ज रहे विजय नायर, बिजनेसमैन अभिषेक बोनिपल्ली, बिनॉय बाबू की जमानत अर्जी भी खारिज कर दी है.

हाई कोर्ट ने कहा  है- मनीष सिसोदिया के रुतबे को देखते हुए जमानत मिलने पर उनके गवाहों को प्रभावित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. इससे पहले सीबीआई की ओर से दर्ज केस में मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट खारिज कर चुका है.

जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने आदेश पढ़ते हुए ED की ओर से लगाए आरोपों का भी जिक्र किया. जस्टिस शर्मा ने कहा कि सिसोदिया पर आरोप है कि गैरकानूनी और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए  जानबूझकर कर आबकारी नीति में  खामियां छोड़ी गई. 

कोर्ट ने ED की इस दलील को भी नोट किया कि  100 करोड़ की रिश्वत हासिल करने के लिए चुनिंदा कंपनियों को  गैरवाजिब फायदा पहुंचाने में सिसोदिया की भी  अहम भूमिका थी. यही नहीं, आरोपों के मुताबिक आबकारी नीति को जनसमर्थन दिखाने के लिए सिसोदिया की ओर से फर्जी ईमेल प्लांट किये गए थे.

'निचली अदालत के आदेश में खामी नहीं'

हाई कोर्ट ने कहा कि हमने निचली अदालत के आदेश को देखा है. निचली अदालत ने अपने पास उपलब्ध तथ्यों, दस्तावेजों के आधार पर जमानत खारिज करने की वजह बताते हुए वाजिब आदेश पास किया है. हमे उस आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती.

'गवाहों को प्रभावित कर सकते है'

मनीष सिसोदिया के बड़े राजनैतिक रुतबे और आम आदमी पार्टी में उनकी हैसियत को देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वो जमानत मिलने पर गवाहों को प्रभावित कर सकते है. यही नहीं, वो प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के सेक्शन 45 के तहत जमानत की दोहरी शर्तों को पूरा नहीं करते. (इन शर्तों के मुताबिक कोर्ट को जमानत देने से पहले ये आश्वस्त होना होगा कि आरोपी ने मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं किया है और आगे भी कोई अपराध नहीं करेगा). कोर्ट ने कहा कि इन सब पर गौर करते हुए अदालत को नहीं लगता कि वो इस स्थिति में जमानत के अधिकारी हैं.

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