गाय के गोबर से बन रहे इको फ्रेंडली दीये, पर्यावरण के साथ परंपरा का भी ख्याल
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गाय के गोबर से बन रहे इको फ्रेंडली दीये, पर्यावरण के साथ परंपरा का भी ख्याल

राजस्थान की राजधानी जयपुर (Jaipur) में गाय के गोबर (Cow Dung) से इको फ्रेंडली दीये बनाए जा रहे हैं. इस काम में 100 से अधिक महिलाएं जुटी हुई हैं.

इको फ्रेंडली दीये

जयपुर: राजस्थान की राजधानी जयपुर (Jaipur) में गाय के गोबर (Cow Dung) से इको फ्रेंडली दीये बनाए जा रहे हैं. इस काम में 100 से अधिक महिलाएं जुटी हुई हैं. उनकी कोशिश है कि दीपावली (Deepawali) के त्योहार से पहले अधिकतम दीये बना लिए जाएं, ताकि जयपुर (Jaipur) के घरों में इको फ्रेंडली तरीके से रोशनी फैलाई जा सके. गाय के गोबर से बन रहे इन दीयों को बनाने में करीब 100 महिलाएं लगी हुई हैं. जो दिनभर में करीब 1000 दीये बना रही हैं. इस तरह से हर दिन करीब 1 लाख दीयों का निर्माण हो रहा है.

  1. इको फ्रेंडली दीये बना रही महिलाएं
  2. गाय के गोबर का हो रहा उपयोग
  3. पर्यावरण के साथ परंपरा की भी ख्याल

पर्यावरण के साथ अर्थव्यवस्था का भी ध्यान
दीयों को बनाने में जुटी एक महिला ने कहा कि हम न सिर्फ अपनी परंपरा से जुड़े हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था (Economy) को भी फायदा पहुंचा रहे हैं, साथ ही पर्यावरण (Environment) को भी नुकसान से बचा रहे हैं. महिला ने कहा कि गाय का गोबर (Cow Dung) हमारी परंपरा में पवित्र माना जाता है. और ये कुछ समय में स्वत: नष्ट हो जाता है जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता. वहीं, चीनी दीयों से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.

11 करोड़ परिवार जलाएंगे गोबर से बने 33 करोड़ दीये
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस साल दीपावली के अवसर पर 'कामधेनु दीपावली अभियान' मनाने का अभियान शुरू किया है. इस अभियान के माध्यम से, आयोग दिवाली महोत्सव के दौरान गाय के गोबर और पंचगव्य उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है. गोबर आधारित दीयों, मोमबत्तियों, धूप, अगरबत्ती, शुभ-लाभ, स्वस्तिक, स्मरणी, हार्डबोर्ड, वॉल-पीस, पेपर-वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है. 

लगभग 3 लाख दीयों को अयोध्या में ही प्रज्वलित किया जाएगा और 1 लाख दीये वाराणसी में जलाए जाएंगे. हजारों गाय आधारित उद्यमियों को व्यवसाय के अवसर पैदा करने के अलावा, गाय के गोबर से बने उत्पादों के उपयोग से स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण भी मिलेगा. यह गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद करेगा. यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की परिकल्पना और अभियान को बढ़ावा देगा. इससे पर्यावरण को नुकसान रोकने में मदद मिलेगी.  

(इनपुट: ANI से भी)

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