नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में चाहे बीजेपी हो, कांग्रेस हो या फिर महागठबंधन, सभी राजनैतिक दल 'गरीबी हटाओ' के नारे के साथ चुनावी मैदान में हैं. 1971 के लोकसभा चुनाव में इसी नारे के साथ इंदिरा गांधी भी चुनावी मैदान में कूदी थीं. इस नारे के सहारे इंदिरा गांधी न केवल प्रचंड बहुमत के साथ सत्‍ता में वापस आईं, बल्कि कांग्रेस के दो टुकड़े करने वाले दिग्‍गज कांग्रेसी नेताओं और विपक्षी दलों की तमाम आशाओं को विफल कर दिया. 1971 के इस चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस (आई) ने 441 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे थे, जिसमें 352 उम्‍मीदवार चुनाव में विरोधियों को परास्‍त कर लोकसभा पहुंचने में सफल रहे थे. चुनावनामा में आज आपको बताते हैं कि कांग्रेस में दो फाड़ होने के बावजूद किस तरह इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव में अपना परचम लहराने में कामयाब रहीं.


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कम्‍युनिस्‍टों की बैसाखी पर सरकार नहीं चलाना चाहती थीं इंदिरा
1969 में मोरारजी देसाई सहित अन्‍य दिग्‍गज कांग्रेसी नेताओं ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था. बगावत करने वाले इन नेताओं ने कांग्रेस (ओ) का गठन कर इंदिरा सरकार के खिलाफ संसद में अविस्‍वास प्रस्‍ताव पेश कर दिया. इसी बीच, इंदिरा ने कुछ कठोर फैसले लिए. जिसमें बैंकों का राष्‍ट्रीयकरण और राजाओं का प्रिवीपर्स खत्‍म कर दिया. इंदिरा के इन फैसलों से खुश कम्‍युनिस्‍टों ने इंदिरा का साथ देने का फैसला किया. कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के समर्थन के चलते इंदिरा संसद में अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहीं. हालांकि सरकार सुरक्षित होने के बावजूद इंदिरा कम्‍युनिस्‍टों की बैसाखी पर अपनी सरकार नहीं चलाना चाहती थी. लिहाजा, जो लोकसभा 1972 में खत्‍म होने वाली थी, उस लोकसभा को 1970 में भंग करने की सिफारिश कर दी. लोकसभा के लिए 1971 के चुनाव हुए.



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इंदिरा की अगुवाई में 20 साल बाद कांग्रेस को मिला प्रचंड बहुमत
1951 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में कांग्रेस को 364 जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था. लेकिन समय के साथ-साथ न केवल कांग्रेस की लोकप्रियता कम हुई, बल्कि उसकी सीटें में भी धीरे-धीरे कम होने लगी. 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बमुश्किल बहुमत हासिल करने में सफल रही थी. वहीं, जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लोग मानने लगे थे कि कांग्रेस का पतन शुरू हो गया है. इंदिरा गांधी ने इन लोगों की सोच को झुठलाकर 1971 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया. इस चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस ने 441 सीटों पर चुनाव लड़कर 352 सीटों पर जीत हासिल की. 1951 के पहले लोकसभा चुनाव के बाद, 1971 में कांग्रेस को इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व में इतनी बड़ी जीत मिली थी.


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कांग्रेस की लहर के बावजूद इन राज्‍यों में नहीं चला इंदिरा का जादू
'गरीबी मिटाओ'का नारे ने देश की जनता को इंदिरा के पक्ष में खड़ा कर दिया था. नेहरू के बाद, पहली बार किसी नेता की लहर पूरे देश में दौड़ रही थी. बावजूद इसके, देश के कुछ राज्‍य ऐसे भी थे, जहां इंदिरा का 'गरीबी मिटाओ' का नारा बहुत कारगर साबित नहीं हुआ. इन राज्‍यों में गुजरात, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु शामिल है. गुजरात में कांग्रेस ने 23 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार खड़े किए, जिसमें 11 सीटों पर ही कांग्रेस के उम्‍मीदवार जीत सके. इसी तरह, पश्चिम बंगाल में सीपीएम का जादू बरकरार रहा. यहां सीपीएम ने 38 सीटों पर चुनाव लड़कर 20 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस 31 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 13 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. तमिलनाडु में कांग्रेस ने कुल नौ में से नौ उम्‍मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे. वहीं तमिलनाडु में डीएमके ने 24 सीटों पर चुनाव लड़कर 23 सीटों पर जीत हासिल की.



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मोरारजी देसाई के अलावा लगभग सभी विद्रोही नेता हारे चुनाव
1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा से बगावत करने वाले लगभग सभी नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा. नीलम संजीव रेड्डी को आंध्र प्रदेश की अनंतपुर सीट से कांग्रेस के एआर नोन्‍नयट्टी ने हरा दिया. बिहार की बाढ़ सीट से कांग्रेस के उम्‍मीदवार धर्मवीर सिंह ने कांग्रेस (ओ) की तारकेश्‍वरी को हरा दिया. कांग्रेस के ज्‍वाला प्रसाद दुबे ने महाराष्‍ट्र की मंडारा सीट से अशोक मेहता को हराया. वर्धा से कांग्रेस के गणपत राय ने यमनलाल बजाज को शिकस्‍त दी. उत्‍तर प्रदेश की फैजाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़ रही सुचेता कृपलानी भी कांग्रेस के रामकृष्‍ण सिन्‍हा से हार गईं. वहीं, उड़ीसा की पुरी सीट से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के जेबी पटनायक ने रवि राय को चुनावी मैदान में शिकस्‍त दे दी. कांग्रेस में बगावत करने वालों में सिर्फ मोरारजी देसाई को जीत हासिल हो सकी.