लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया था. केरल में शुरू से कांग्रेस और सीपीआई के बीच रिश्ते तल्ख रहे हैं. 1962 के चुनाव से पहले के कुछ घटनाक्रमों में दोनों राजनैतिक दलों के तल्ख रिश्ते साफ दिखे थे.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में सत्ता चाभी किसके हाथ लगेगी, इसका फैसला तो नतीजे आने के बाद ही होगा. फिलहाल, सत्ता के गलियारों में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए तमाम राजनैतिक दल चुनावी चाशनी से डूबे वादों के साथ जनता से वोटों की अरदास लगा रहे हैं. सत्ता में वर्चस्व की एक ऐसी ही राजनैतिक लड़ाई 1962 में हुए देश के तीसरे लोकसभा चुनाव में देखने को मिली थी.
दरअसल, उन दिनों कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (सीपीआई) केरल में सत्तारूढ़ कांग्रेस के मजबूत विकल्प के रूप में आगे बढ़ रही थी. सीपीआई के बढ़ते कदमों का अहसास कांग्रेस को 1957 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही हो गया था. इस चुनाव में सीपीआई ने केरल की 18 संसदीय सीटों में 9 पर जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस को सिर्फ 6 सीटों से संतोष करना पड़ा था.
इसी बीच हुए विधानसभा चुनाव की 126 में से 60 सीटें जीतकर सीपीआई ने केरल में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी. यह बात दीगर है कि केंद्र की कांग्रेस सरकार ने सीपीआई की इस सरकार को महज दो साल बाद 1959 में बर्खास्त कर दिया था. केरल की पहली गैर कांग्रेसी सरकार की बर्खास्तगी के पीछे नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की बड़ी भूमिका देखी गई थी.
चुनावनामा में आपको बताते हैं कि किस तरह केरल सरकार के एक फैसले को आधार बनाकर केंद्र सरकार ने देश में पहली बार किसी निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया. वहीं, इस घटना के बाद, इंदिरा गांधी ने किस तरह भारतीय राजनीति में अपने कदम जमाना शुरू कर दिए. उल्लेखनीय है कि 1959 में पहली बार केंद्र सरकार ने आर्टिकल 356 का इस्तेमाल कर किसी निर्वाचित सरकार को बर्खास्त किया था.
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केरल सरकार ने निजी स्कूलों को दी थी अधिग्रहण की धमकी
केरल की पहली निर्वाचित सरकार की बागड़ोर बतौर मुख्यमंत्री ईलमकुलम मनक्कल शंकरन नंबूदिरीपाद को सौंपी गई थी. मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद ने शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए निजी स्कूलों को राज्य की नीतियों का पालन करने के लिए कहा था. ऐसा नहीं करने पर निजी स्कूलों के अधिग्रहण की चेतावनी दी गई थी. मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद के इस फैसले का विरोध मिशनरीज और दूसरे संगठनों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों ने किया था.
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साम्यवाद की विचारधारा के बाद भड़की केरल में आग
मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद ने शिक्षा सुधार के बहाने केरल में स्कूलों के पाठ्यक्रम को बदलवाने की कोशिश शुरू कर दी. जिसके बाद मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद पर साम्यवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा. इस आरोप के बाद कांग्रेस सहित तमाम राजनैतिक एवं सामाजिक संगठनों ने मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. हालात यहां तक पहुंच गए कि विरोध दर्ज कराने के लिए भारी तादाद में लोग सड़कों पर उतर आए.
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लाठीचार्ज और गोली चलने के बाद केरल सरकार हुई बर्खास्त
साम्यवाद की विचारधार के खिलाफ केरल में चल रहे आंदोलन को दबाने के लिए मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद ने पुलिस का इस्तेमाल शुरू किया. कई जगहों पर लाठी चार्ज और गोलियां चलाई गई. जिसमें कई आंदोलनकारियों की मृत्यु हो गई. राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए राज्यपाल ने केंद्र से हस्तक्षेप की मांग की. जिसके बाद, केंद्र सरकार ने केरल की पहली निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया.
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नेहरू की हिचकिचाहट के बीच इंदिरा ने लिया कड़ा फैसला
अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान नंबूदिरीपाद ने भूमि सुधार को लेकर कई अहम कदम उठाए थे. केरल दौरे के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन कदमों को लेकर मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद की सराहना भी की थी. ऐसे में जब राज्यपाल ने केंद्र से हस्तक्षेप की गुजारिश की, तब नेहरू कठोर फैसले को लेने से हिचकिचा रहे थे. अब तक कांग्रेस की बागडोर इंदिरा गांधी के हाथों में आ चुकी थी. बतौर कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी ने केरल सरकार को बर्खास्त करने का मन बना लिया था.
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अन्य कांग्रेसियों के साथ मिलकर इंदिरा ने बनाया नेहरू पर दबाब
अपने फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं से विचार विमर्श शुरू किया. इंदिरा हर हाल में इस समस्या के निदान के साथ-साथ केरल में सीपीआई के बढ़ते कद को रोकना चाहती थीं. इंदिरा सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं का दबाव काम आया. नेहरू को मजबूरन केरल की सरकार को बर्खास्त करने का फैसला लेना पड़ा. केरल सरकार की बर्खास्तगी को इंदिरा गांधी की पहली बड़ी राजनैतिक कामयाबी के तौर पर देखा गया था.