पटना : भारतवर्ष का सबसे गौरवशाली साम्राज्य मगध और करीब ढाई हजार साल तक उस मगध की राजधानी पाटलिपुत्र. जितना पुराना शहर उतनी ही बड़ी रही है यहां की सियासत की लड़ाई. जरासंध से लेकर नंद वंश और मौर्य वंश ने सत्ता के लिए यहां संघर्ष किया. इस शहर ने जितना उत्थान-पतन देखा है, शायद ही किसी और शहर ने देखा होगा. पाटलिपुत्र एक बार फिर तैयार है सत्ता की लड़ाई में अपनी भागीदारी निभाने के लिए. 


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पटना का ऐतिहासिक नाम भले ही पाटलिपुत्र है, लेकिन लोकसभा सीट के रूप में पाटलिपुत्र का जन्म 2008 के परिसीमन के दौरान हुआ था. पाटलिपुत्र सीट के लिए हुई पहली जंग बिहार की राजनीति के महारथी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के रंजन प्रसाद यादव के बीच हुई. रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद यादव को 23 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर बड़ा उलटफेर किया.


साल 2014 के चुनाव में यहां से लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती को बीजेपी नेता रामकृपाल यादव के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी थी. दरअसल रामकृपाल यादव पहले लालू के करीबी माने जाते थे, लेकिन जब उनकी जगह मीसा भारती को आरजेडी ने टिकट दिया तो वे बागी हो गए. इसके बाद बीजेपी की टिकट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए. अब एक बार फिर से पाटलिपुत्र के लिए चाचा और भतीजी के बीच मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है. 


पाटलिपुत्र लोकसभा में विधानसभा की 6 सीटें हैं. दानापुर सीट पर बीजेपी और फुलवारी शरीफ सीट पर जेडीयू का कब्जा है. जबकि मनेर, मसौढ़ी और पालीगंज सीट आरजेडी के पास है. वहीं, बिक्रम सीट कांग्रेस के हिस्से में है.
  
2014 में लालू यादव की बेटी को हराने का इनाम रामकृपाल यादव को मिला और वे मोदी सरकार में मंत्री बनें. रामकृपाल यादव के पास पांच साल में किये हुए कामों की लंबी फेहरिस्त है.


2014 के लोकसभा चुनाव में रामकृपाल यादव को तीन लाख 83 हजार और मीसा भारती को तीन लाख 42 हजार वोट मिले. वहीं, जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव को 97 हजार वोट से संतोष करना पड़ा था.



पाटलिपुत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां यादव मतदाताओं की संख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि इतनी ही संख्या में सवर्ण मतदाताओं की भी है. यही वजह है कि यादव जाति के सभी नेता इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में जनसंख्या के मामले में भूमिहार और मुसलमान दूसरे नंबर पर हैं. जो किसी भी पार्टी की जीत-हार तय कर सकते हैं.


रामकृपाल यादव साल 1977 में छात्र राजनीति की शुरुआत की. छात्र संघ के अध्यक्ष बने. 1985 में पटना के डिप्टी मेयर भी बने. 1992 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और उसके बाद 1993, 1996 और 2004 में पटना लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. साल 2014 में पाटलिपुत्र से लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र सरकार में मंत्री बने.