सिरसा: ग्रीन लैंड के नाम से मशहूर हरियाणा भले अब पंजाब का हिस्सा नहीं है लेकिन ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त का एक भाग रहा है और इसके इतिहास में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है. राज्य के दक्षिण में राजस्थान और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में पंजाब की सीमा और पूर्व में दिल्ली क्षेत्र है. हरियाणा और पड़ोसी राज्य पंजाब की भी राजधानी चंडीगढ़ ही है. इस राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 1966 को हुई. क्षेत्रफल के हिसाब से इसे भारत का 20 वां सबसे बड़ा राज्य बनाता है.


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सिरसा शहर की धर्म, राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान है. कृषि के क्षेत्र में भी सिरसा का नाम आता है. कपास के उत्पादन में भी सिरसा की अहम भूमिका है. इसके अलावा राजनीति की बात करें तो सिरसा लोकसभा सीट गठन के बाद से ही सुरक्षित है और अधिकतर इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. हालांकि, 2014 में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) ने इस सीट पर बाजी मार ली थी. 


वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो सिरसा सीट पर INLD और कांग्रेस के बीच मुकाबला होना तय है लेकिन राज्य की सत्ता पर बीजेपी काबिज है और इसलिए वो भी इस सीट पर पहली बार कामयाबी के लिए पूरी ताकत लगा देगी. 


2014 के लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल के चरणजीत सिंह रोड़ी ने 1,15,736 वोट से जीत हासिल की थी. चरणजीत सिंह को 39.59 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के अशोक तंवर को 30.54 फीसद वोट मिले थे. बीजेपी समर्थिक हरियाणा जनहित कांग्रेस के डॉ. सुशील इंडोरा को इस सीट पर 2,41,067 वोट प्राप्त हुए थे.


यहां आपको बता दें कि 2014 से पहले INLD गठबंधन इस सीट पर तीन बार जीती थी. 1989 और 1999 में INLD बीजेपी के साथ गठबंधन में थी और 1998 में ही इनलो का बसपा के साथ समझौता था. 2014 के लोकसभा चुनाव के अनुसार इस सीट पर कुल 13,09,507 वोटर्स हैं, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 7,06,030 और महिलाओं मतदाताओं की संख्या 6,03,468 थी. 



दरअसल, सिरसा लोकसभा क्षेत्र का गठन 1962 में हुआ था. तब से इस सीट पर बीजेपी को कभी जीत नहीं मिली. हालांकि कहा जाता है कि इस सीट को लेकर बीजेपी कभी गंभीर नहीं हुई. इस वजह से 2014 में बीजेपी ने गठबंधन के बाद इस सीट को हजकां के लिए छोड़ दिया था. इस सीट पर 1962 से अब तक कांग्रेस ने 9 बार जीत दर्ज की है. वहीं INLD को यहां 1989, 1998, 1999 और 2014 में ही जीत मिली है. 


हरियाणा के रण में बहरहाल जीत किसकी होती है यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि सभी पार्टियों ने चुनाव के लिए अपनी ताकत पूरी तरह से झोंक दी है. लोकतंत्र के इस महापर्व में जनता का फैसला सर्वोपरि होता है और 23 मई को जनता का फैसला लोगों के सामने होगा.