बिमल कुमार
रतन टाटा यानी जैसा नाम वैसा ही काम। इसमें कोई संशय नहीं है कि वह देश के वाकई अनमोल रतन हैं और रहेंगे। साल 1868 में जमशेद जी नौशेरवान जी टाटा की ओर से स्थापित टाटा कंपनी को रतन ने एक समूह बनाकर ऐसी ऊंचाईयां दी, जिसका जिक्र वैश्विक व्यापारिक जगत में हमेशा किया जाएगा। वैसे तो रतन में कई खूबियां थीं, लेकिन व्यापार और उद्योग को एक नई दिशा देकर इन खूबियों को उन्होंने बखूबी चरितार्थ किया। उन्होंने बिजनेस के दौर में हमेशा नैतिकता का ख्याल रखा। यही नहीं, उनके जोखिम लेने के स्वभाव से भी दुनिया भलीभांति परिचित है। साहस के साथ बिजनेस, उचित मानदंड, आम लोगों का ख्याल, ये सब कुछ ऐसे पहलू थे जो रतन में कूट-कूटकर भरे थे। उनकी दूरदर्शिता भी खुद में अनोखी है। 75 वर्षीय टाटा ने इस समूह को ऐसी मजबूती दी, जो खासा उल्लेखनीय है।
आम लोगों के घरों में भी कार हो, इसलिए उन्होंने लखटकिया कार नैनो की आधारशिला रखी। एक वाकये के जिक्र से इस बात को समझा जा सकता है कि रतन बिजनेस के साथ साथ आम मध्यवर्गीय लोगों के हितों की कितनी चाहत रखते हैं। एक बार जब वह मुंबई के ऑफिस से बारिश के मौसम में अपनी कार में बैठकर कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उन्होंने एक दंपति को बच्चे के साथ मोटरसाइकिल पर भींगते हुए देखा। इसी समय उनके जेहन में नैनो कार बनाने का ख्याल आया। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि देश के आम लोग भी कार की सवारी कर सकें। नैनो की सफलता या असफलता यहां मायने नहीं रखती, पर रतन की आम लोगों के प्रति सोच यह दर्शाती है कि वे सामाजिक सरोकारों के भी प्रबल पक्षधर हैं।
यही कारण है कि करीब 450,000 से अधिक कर्मचारियों की संख्या वाला यह समूह आज दुनिया भर में ऐसा ब्रांड बन चुका है कि जिस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है। संभवत: इसलिए रतन टाटा को भारत में विश्वास का प्रतीक माना जाता है।
टाटा समूह को एक पारंपरिक औद्योगिक घराने से 100 अरब डॉलर के आधुनिक वैश्विक उद्योग समूह में तब्दील करने वाले समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने ग्रुप की कमान अब साइरस मिस्त्री को सौंप दी है। जमशेद जी टाटा ने भारत को मजबूती देने में जो अतुलनीय योगदान दिया उसको भुलाया नहीं जा सकता है। इसके बाद जेआरडी टाटा और फिर रतन टाटा ने उसी चलन को आगे बढ़ाते हुए दुनियाभर में जो प्रतिष्ठा हासिल की उसको भुलाया नहीं जा सकता है। बता दें कि भारत में चलने वाली एयर इंडिया कभी टाटा समूह की ही थी, लेकिन भारत को आत्मनिर्भर बनाने की मंशा से बेहिचक वह भारत सरकार को सौंप दी गई।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ। वह भारत के सबसे बड़े व्यापारिक समूह के अध्यक्ष बने जिसकी स्थापना जमशेदजी टाटा ने की और जेआरडी टाटा और रतन टाटा ने इसको आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाया। रतन टाटा ने 1962 में जमशेदपुर के इस्पात संयंत्र में एक प्रशिक्षु के रूप में पेशेवर सफर शुरू किया था। 1991 में उनके चाचा जेआरडी टाटा ने उनके हाथ में सम्पूर्ण कारोबारी समूह की बागडोर सौंप दी। यह देश के लिए भी एक नया मोड़ था, जो उदारीकरण की तरफ बढ़ रहा था। तब से दो दशकों से कुछ अधिक समय में रतन टाटा ने न सिर्फ देश में टाटा समूह के कारोबार को बढ़ाया, बल्कि विदेशों में भी इसका विस्तार किया, कई कंपनियों का अधिग्रहण किया और कारोबार में विविधता लाई। 2008 में सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
1971 में रतन टाटा को राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड (नेल्को) का डाईरेक्टर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया। उस वक्त यह कंपनी वित्तीय संकटों का सामना कर रही थी, जिसे बाद में सही पटरी पर लाया। साल 1981 में, रतन टाटा इंडस्ट्रीज और समूह की अन्य होल्डिंग कंपनियों के अध्यक्ष बनाए गए। 1991 में उन्होंने जेआरडी से ग्रुप चेयरमैन का कार्यभार संभाला। उन्होंने सबसे पहले कंपनी में युवा प्रबंधकों को काम का भार सौंपा। रतन के फैसलों की बदौलत ही टाटा ग्रुप आज भारतीय शेयर बाजार में किसी भी अन्य व्यापारिक उद्यम से अधिक बाजार पूंजी रखता है।
रतन के मार्गदर्शन में ही टाटा कंसलटेंसी सर्विसेस सार्वजनिक निगम बनी और टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई। 1998 में टाटा मोटर्स ने उनके संकल्पित टाटा इंडिका को बाजार में उतारा। 31 जनवरी 2007 को, रतन टाटा की अध्यक्षता में, टाटा संस ने कोरस समूह को सफलतापूर्वक अधिग्रहित किया, जो एक एंग्लो-डच एल्यूमीनियम और इस्पात निर्माता है। इस अधिग्रहण के साथ रतन टाटा भारतीय व्यापार जगत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए। इस विलय के फलस्वरुप दुनिया को पांचवां सबसे बडा इस्पात उत्पादक संस्थान मिला। जिस लेंड रोवर और जेगुआर कार को विदेशी मानते थे आज वह भारत में फर्राटा भरती दिखाई देती है। रतन टाटा का सपना था कि 100000 रुपये की लागत की कार बनाई, जो उन्होंने पूरा किया।
रतन टाटा ने जेआरडी टाटा से समूह की कमान लेने के बाद बतौर चेयरमैन 21 वर्ष तक समूह को नेतृत्व प्रदान किया। टाटा के कार्यकाल में समूह का राजस्व कई गुना बढ़ा। 2011-12 में कुल 100.09 अरब डॉलर (करीब 4,75,721 करोड़ रुपये) पहुंच गया जो 1971 में महज 10,000 करोड़ रुपये था। रतन ने अपने पूर्ववर्तियों और खासकर जेआरडी द्वारा रखी गई मजबूत आधारशिला को कुशलतापूर्वक आगे बढ़ाया। उन्होंने टाटा समूह का प्रबंधन मूल्यों के साथ किया है। टाटा समूह में आज 30 सूचीबद्ध कंपनियां हैं और इसका कुल बाजार पूंजीकरण करीब 825 अरब डॉलर है, जो 1991 से 33 गुणा अधिक है। रतन के कुशल नेतृत्व में ही समूह ने दूरसंचार, वित्त, रिटेल, सूचना प्रौद्योगिकी और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में कारोबारी विस्तार किया। रतन की समूह के प्रति सोच की स्पष्टता और दूरदर्शिता उनमें शुरू से आखिर तक दिखी।
टाटा ने आम लोगों की कार के सपने को साकार करने के लिए लखटकिया कार नैनो पेश की। टाटा ने समूह के साथ अपने लंबे सफर को सीखने वाला सफर बताया और साथ ही कहा कि समय समय पर हमें निराशाओं का भी सामना करना पड़ा, फिर भी मैंने मूल्यों एवं नैतिक मानकों को बनाए रखने की कोशिश की। उनका कहना है कि मैं इस बात को लेकर संतुष्ट हूं कि जो भी मैंने सही समझा उसे करने का पूरा प्रयास किया। विमान उड़ाने के खासे शौकीन रतन की चाहत अब परोपकारी गतिविधियों में खुद को बनाए रखना है।
टाटा संस के नए प्रमुख साइरस मिस्त्री को रतन टाटा से विरासत में कई चीजों के अलावा फलता-फूलता साम्राज्य मिला है। अब देखना यह होगा कि वह टाटा समूह को और किन ऊंचाईयों तक ले जाते हैं। रतन अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जिसके कारण कारोबारी दुनिया में उनकी विशेष पहचान रही है और आगे भी रहेगी।