हिंदुस्तान की आबादी 121 करोड़ पहुंच चुकी है। इस देश में अगर आबादी तेजी से बढ़ी है तो कई मुश्किलें भी सामने आ खड़ी हुई हैं जो एक बड़ी चुनौती के रूप में खुद को पेश करती है। कई मुश्किलें तो हल की जा सकती है, लेकिन कई लाइलाज है, कई ऐसी है जिसके बारे में सरकार कुछ कारगर उपाय अब तक नहीं कर पाई है। इस बाबत योजनाएं जरूर बनती हैं लेकिन उसे अमलीजामा आज तक नहीं पहनाया जा सका है। इन मुश्किलों में कुछ ऐसी है जो भयावह खतरे के रूप में मंडरा रही है। उन्हीं में से एक खतरा नौनिहालों पर मंडरा रहा है। देश में बच्चे गुम हो रहे हैं और इससे सब बेखबर हैं। जबकि यह आंकड़ा भयावह रूप ले चुका है।
देश में भी होती है बच्चों की तस्करी
मानव तस्करी वैश्विक स्तर पर एक उद्योग का रूप ले चुकी है। आज शायद ही कोई ऐसा देश हो, जो इस समस्या से न जूझ रहा हो। संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक विश्व के लगभग 127 देशों में तकरीबन 2.5 मिलियन लोग इसके शिकार हैं। मानव तस्करी से भारत भी अछूता नहीं है और यहां भी यह एक जटिल समस्या का रूप लेती जा रही है। मानव तस्करी के अवैध धंधे के कारण महिलाओं और बच्चों का यौन शोषण, बाल श्रम, दासता जैसी घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए एक कलंक है।
भारत में बच्चों की तस्करी के आंकड़े बड़े भयावह हैं। देश में गुम होते बच्चों की तादाद में लगातार इजाफा होता चला जा रहा है। या तो इन बच्चों को अवैध धंधों में लगा दिया जाता है या फिर देह व्यापार जैसे घृणित पेश में झोंक दिया जाता है। इस मामले में सबसे खराब हालत देश की राजधानी दिल्ली का है जहां की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बीते चार महीनों में अकेले दिल्ली से 1600 बच्चे गायब हो चुके हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 8945 बच्चे हर साल से देश के विभिन्न हिस्सों से अगवा किए जाते हैं। सबसे दुखद तो यह है कि काफी कम बच्चे दोबारा से अपने परिवार को मिल पाते है। एक आंकड़े के मुताबिक तकरीबन 60 हजार बच्चों की गुमशुदगी रिपोर्ट हर साल लिखाई जाती है। एक अन्य संस्था एसबीसीआर का आंकड़ा कहता है कि वर्ष 2003 से 2009 के दौरान सिर्फ मध्य प्रदेश में 57253 बच्चे गायब हुए। ज्यादातर गुम बच्चों का इस्तेमाल मानव तस्करी मे किया जाता है।
एक आंकड़े के मुताबिक देशभर में 20 फीसदी माता-पिता गरीबी की वजह से अपनी बेटियों को बेच देते हैं। लड़कियों की तस्करी में मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल और आंध्र प्रदेश सबसे आगे है जहां 60 फीसदी लड़कियों का सौदा हौता है जिसमें सबसे ज्यादा नाबालिग लड़कियां होती है। एनसीआरबी और यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, राजधानी दिल्ली में 15 फीसदी बच्चों का अपहरण कर बेच दिया जाता है।
बच्चों के लिए काम करने वाली देश की कुछ संस्थाओं का मानना है कि ऐसे बच्चों से भीख मंगवाने के अलावा उन्हें बंधुआ मजदूरी और वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। कुछ मामलों में उन्हें गैरकानूनी रूप से गोद भी ले लिया जाता है। दिसंबर 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट मिसिंग चिल्ड्रन इन इंडिया में देश भर के 392 जिलों से गुम हुए बच्चों का आंकड़ा शामिल किया गया है। जनवरी 2008 से 2010 के बीच देश भर से 1 लाख 20 हजार बच्चों के लापता होने जानकारी है। इसी दौरान अकेले दिल्ली से 13,570 बच्चे गायब हुए हैं। यह जानकारी मानव अधिकार संगठन, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और विभिन्न संगठनों के जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर जुटाई गई है।
केवल मेट्रो शहरों में ही गुमशुदा बच्चों के आंकड़ों के मुताबिक (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार) पिछले 20 वर्षों में केवल दिल्ली में ही 34,000 बच्चे गुम हुए हैं। मानव तस्करी रोकने की दिशा में कड़े कदम उठाते हुए केन्द्र सरकार देश के सैकडों जिलों में विशेष मानव तस्करी रोधी केन्द्र बनाएगा। ये प्रकोष्ठ न सिर्फ मानव तस्करी पर रोक लगाने में कारगर होंगे बल्कि पीडितों के पुनर्वास का जिम्मा भी संभालेंगे। बच्चों की बढ़ती तस्करी को देखते हुए केंद्र सरकार ने उनकी सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किये हैं। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी निर्देशों में स्कूलों, स्कूल बसों, बच्चों के पार्कों और रिहायशी इलाकों में पुलिस गश्त बढ़ाने से लेकर अन्य उपाय करने को कहा है। इसके साथ ही केंद्र सरकार पूरे देश में 335 मानव तस्कर रोधी यूनिट खोलने की योजना भी बना रहा है।
सरकार की अबतक की सभी कोशिशें इस मसले पर निपटने में अब तक नाकाम रही हैं। मानव तस्करी के चंगुल से बचाने के लिए गृह मंत्रालय जल्द एक वेबसाइट खोया बचपन शुरू करने जा रहा है। इस वेबसाइट पर गुम हुए बच्चे का नाम, पता और उसकी तस्वीर होगी। इसके साथ ही बच्चे के सगे-संबंधियों की डीएनए प्रोफाइल का डाटा भी इस वेबसाइट पर उपलब्ध होगा। सरकार की यह पहल सराहनीय है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह पहल उन मां-बाप के बिछड़े लाडलों को उनसे मिला पाएगी जो न जाने कितने सालों से अपने बच्चों के आने की राह देख रहे हैं।