नरेंद्र मोदी की महाविजय के मायने

गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जीत की हैट्रिक लगा दी है। यह मोदी की लगातार तीसरी और भाजपा की लगातार पांचवीं जीत है। तय मानिए यह जीत गुजरात का विकास और नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व की है। यह जीत नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए जीत है।

प्रवीण कुमार
गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जीत की हैट्रिक लगा दी है। यह मोदी की लगातार तीसरी और भाजपा की लगातार पांचवीं जीत है। तय मानिए यह जीत गुजरात का विकास और नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व की है। यह जीत नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए जीत है। 182 सीट वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 115 सीटों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर इतिहास रच दिया है। यह वाकई नरेंद्र मोदी की महाविजय है और इस महाविजय के अपने मायने भी हैं।
पिछले डेढ़ दशक से गुजरात में भाजपा की सरकार है और खास बात यह है कि इन वर्षों में गुजरात ने आर्थिक और सामाजिक दोनों ही मोर्चे पर भारी तरक्की की है। गुजरात की सफलताएं इतनी प्रभावशाली हैं कि देश क्या दुनिया की निगाहें गुजरात पर आकर ठहर जाती हैं। इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नरेंद्र मोदी आज की तारीख में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं और गुजरात विधानसभा का चुनाव जीतकर मोदी का कद आज और बड़ा हो गया है। नरेंद्र मोदी एक ईमानदार राजनेता हैं। नैतिक जिम्मेदारी के साथ जीते हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता संदेह से परे है। गुजरात में विकास के लिए उनकी गिनती देश के काबिल मुख्यमंत्रियों में होती है। मोदी के नाम पर भाजपा के कार्यकर्ता जोश से भर जाते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा जिस विचारधारा से ऊर्जा पाती है, मोदी उसके सबसे बड़े प्रतीक पुरुष हैं। मोदी ने इस विचारधारा को नया आयाम दिया है। उन्होंने भाजपा के `हिंदुत्व` को `विकास` से जोड़कर एक नया मॉडल पेश करने की कोशिश की जिसमें वह बेहद सफल रहे।
पहले बात हिंदुत्व की ही करते हैं। दरअसल जिस सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में राम मंदिर के लिए रथयात्रा शुरू की थी, वहीं से आशीर्वाद लेकर नरेंद्र मोदी ने भी औपचारिक रूप से गुजरात में अपना चुनावी अभियान छह करोड़ गुजरातियों के विकास के नारे के साथ शुरू किया था। यह पहला मौका है जब हिंदुत्व की जमीन पर खड़े नरेंद्र मोदी का छह करोड़ गुजरातियों के विकास का नारा प्रभावी दिख रहा है। सद्भावना उपवास के बाद मोदी ने गुजरात में किसी मुस्लिम को भाजपा का टिकट नहीं दिया, लेकिन विकास में बराबर भागीदारी के नाम पर उन्हें भी अपने अभियान में शामिल करने की कोशिश की है। इसके अलावा मोदी ने महिलाओं और युवाओं पर सबसे ज्यादा फोकस किया। गुजरात का चुनावी इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब प्रदेश में मतदान प्रतिशत अधिक होता है, भाजपा को सत्ता मिली है।
गुजरात ने अपने पिछले रिकार्ड को तोड़ते हुए ताजा विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत का नया रिकार्ड बनाया है। साल 1995 में विधानसभा चुनावों में रिकार्ड 64.70 फीसदी मतदान हुआ था। तब केशुभाई पटेल भाजपा के मुख्यमंत्री बने थे। इस बार के चुनावों ने पिछले रिकार्ड को ध्वस्त करते हुए 71.30 फीसदी का नया रिकार्ड कायम किया है। मोदी ने सत्ता की हैट्रिक बनाई।
गोधरा कांड के बाद राज्य भर में भड़के दंगों के बाद साल 2002 के विधानसभा चुनावों में 61.55 फीसदी मतदान हुआ था और भाजपा सत्ता में आई थी। साल 2007 के विधानसभा चुनावों में हालांकि 59.77 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था और तब भी भाजपा को सत्ता मिली थी। उस समय भाजपा को कुल 182 में से 117 सीटें मिली थी। कहने का मतलब यह कि मतदान प्रतिशत बढ़ने का तो गुजरात में भाजपा को फायदा होता ही है साथ ही एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर के पंख भी इस प्रदेश में आकर कट जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने मतदान के अंतिम चरण में मतदान करने से पहले कहा भी था कि गुजरात में प्रो-इनकम्बेंसी फेक्टर काम करता है। गुजरात में भाजपा की भव्य विजय होगी। निश्चित रूप से यह हिंदुत्व का एजेंडा ही है जो नरेंद्र मोदी की साख को लगातार बढ़ा रहा है।
दरअसल मोदी हिंदुत्व के जिस एजेंडा को लेकर चल रहे हैं वह वास्तविक हिंदुत्व की परिभाषा से ओतप्रोत है। मोदी के हिंदुत्व एजेंडा को आप सांप्रदायिकता के चश्मे से नहीं देख सकते हैं। नरेंद्र मोदी दरअसल वास्तविक राष्ट्रवाद के आधार पर शासन चलाते हैं और यह सत्य नियम है कि वास्तविक राष्ट्रवाद की बुनियाद पर काम किया जाए तो हिंदुत्व उस राष्ट्र का भविष्य बदल देता है। सोमनाथ मंदिर के सामने ठेला लगाने वाले मुसलमान भाई को इस बात से कोई मतलब नहीं कि प्रदेश में कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। वह मोदी राज में काफी सुरक्षित महसूस करते हैं। असुरक्षा का भाव होने का सवाल अगर उनसे पूछेंगे तो उनका कहना है कि साहब! यहां मंदिर में सब हिंदू ही तो आते हैं। आज तक तो ऐसा कोई भाव नहीं आया। समझ सकते हैं कि नरेंद्र मोदी इस प्रकार के हिंदुत्व को जीते हैं।
अब मोदी राज में विकास की बात करते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे इकलौते राजनेता हैं जो जिंदगी अपनी शर्तों पर जीते हैं और इसी दर्शन के साथ वह तीसरी बार सत्ता में आए हैं। आपको याद होगा जब वर्ष 2002 में गुजरात में गोधरा की आग फैली थी तो पूरी दुनिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अछूत मान लिया गया था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उन्हें `राजधर्म` का पालन करने की नसीहत दे डाली थी। ब्रिटेन ने 2002 में द्विपक्षीय सम्बंधों पर रोक लगा दी थी और मार्च-2005 में अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। तब मोदी ने कसम खाई थी कि वह जीते जी अमेरिका की धरती पर कदम नहीं रखेंगे। और फिर मोदी ने गुजरात के परिदृश्य को ऐसे बदला कि गुजरात बना विकास मॉडल और नरेंद्र मोदी बने विकास पुरूष।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार कार्यभार संभाला था तब गुजरात 26 जनवरी, 2001 को आए विनाशकारी भूकंप की विभीषिका तले दबा हुआ था। तब लगता था मानो गुजरात फिर कभी उठ नहीं पाएगा। लेकिन पुनर्वास और पुनर्निमाण के तेज प्रयासों और पुन: उठ खड़े होने के लोगों के अदम्य साहस और जज्बे से गुजरात विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया। उस दौर में गुजरात के पुनर्वास कार्य को रोल मॉडल के तौर पर स्वीकार किया गया। अपने डेढ़ दशक से अधिक के शासनकाल में मोदी के विकासवादी सोच के कुछ अहम फैसलों ने गुजरात कि किस्मत ही बदल दी।
किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था की बात जब हम करते हैं तो निश्चित रूप से उसके सकल घरेलू उत्पाद दर (जीडीपी दर), कृषि विकास दर, औद्योगिक विकास दर और सेवा क्षेत्र में तरक्की की जमीनी हकीकत को आंका जाता है। गुजरात के सकल घरेलू उत्पाद (तरक्की की रफ्तार) की बात करें तो यह हमेशा डबल डिजिट में रही है। वर्ष 2000 के बाद गुजरात में कृषि की विकास दर बहुत अच्छी रही है। गुजरात में कृषि विकास दर हमेशा 10 प्रतिशत से ज्यादा रही है। वर्ष 2001 में गुजरात में 2000 मेगावाट बिजली पैदा होती थी जो उसकी अपनी जरूरत से बहुत कम थी, लेकिन 2012 के अंत में गुजरात में अतिरिक्त बिजली पैदा होने लगी। चूंकि बिजली औद्योगिक विकास के लिए संजीवनी होती है इसलिए गुजरात में औद्योगिक विकास की रफ्तार भी तेज है।
लोग अक्सर पूछते हैं कि गुजरात मॉडल क्या है। दरअसल इस राज्य में व्यक्तिगत पहल और उद्यमशीलता के लिए पूरी आजादी दी गई है और राज्य ने इसके लिए अनुकूल माहौल भी पैदा किया है। यह नियोजन के सशक्तिकरण और लोगों के सशक्तिकरण का बेजोड़ उदाहरण है। इसमें केंद्र के अनुदान से चलनेवाली योजनाओं के साथ राज्य की विशिष्ठ योजनाओँ को पूरक बनाया गया है। यह विकास का एक मानक सांचा है जिसे कोई भी राज्य अपनाकर तरक्की की राह पकड़ सकता है।
गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाकर नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से देश के प्रधानमंत्री पद के संभावित दावेदारों में पहले पायदान पर आ गए हैं। इस मसले पर बहस पिछले एक साल से चली आ रही है और पूरे देश की निगाहें गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के 2012 के प्रदर्शन पर लगी थी। इस तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि अगर नरेंद्र मोदी अपने पिछले प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन करते हैं तो उस सूरत में नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है। अब जबकि गुजरात के नतीजे सामने आ चुके हैं जिसमें वो सत्ता की हैट्रिक लगा चुके हैं तो नरेंद्र मोदी को गुजरात से दिल्ली की ओर कूच करना चाहिए। मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए मां का आशीर्वाद भी मिल चुका है तो फिर देर किस बात की...?

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