नरेंद्र मोदी की सरहद पार बढ़ती लोकप्रियता

गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को लेकर वैश्विक माहौल में काफी तब्‍दीली आई है। विदेशों में खासकर विकसित देशों का नजरिया अब मोदी को लेकर बदलने लगा है। विशेष तवज्‍जो मिलने से न सिर्फ मोदी की विदेशों में स्‍वीकार्यता बढ़ी है बल्कि उनका कद भी काफी बढ़ा है।

बिमल कुमार
गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को लेकर वैश्विक माहौल में काफी तब्‍दीली आई है। विदेशों में खासकर विकसित देशों का नजरिया अब मोदी को लेकर बदलने लगा है। विशेष तवज्‍जो मिलने से न सिर्फ मोदी की विदेशों में स्‍वीकार्यता बढ़ी है बल्कि उनका कद भी काफी बढ़ा है। इसमें कोई संशय नहीं है कि मौजूदा समय में भारतीय जनमानस में मोदी की लोकप्रियता चरम पर है। गुजरात चुनाव में हैट्रिक लगाने के बाद उनकी छवि स्‍वीकार्य विकास पुरुष के तौर पर स्‍थापित होने लगी है। आलम यह है कि राजनीतिक गलियारे में मोदी के विकास की चर्चा होने पर गैर भाजपाई राजनेता कन्‍नी काटने लगे हैं। यही नहीं, गुजरात में विकास की चर्चा अब सरहद पार भी जोर शोर से होने लगी है।

कुछ महीने पहले यूरोपियन यूनियन (ईयू) का रुख बदलने के बाद जर्मनी ने भी मोदी को अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी। मोदी को लेकर ईयू ने कुछ माह पहले ही बहिष्‍कार खत्‍म किया था और अपना रुख में तब्‍दीली लाई थी। इसे मोदी के व्‍यक्तित्‍व का करिश्‍मा कहें या गुजरात के विकास मॉडल की गाथा, कारण जो भी हो पर जर्मनी ने अपनी राय बदली। जिक्र योग्‍य है कि ब्रिटेन ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी के विकास कार्यों का उल्‍लेख करते हुए समर्थन जताया था। उस समय आश्‍चर्य इस बात को लेकर हुआ था कि ब्रिटेन ने मोदी की तारीफ के कसीदे पढ़े थे। इसके बाद भारत में ब्रिटेन के राजदूत ने गुजरात जाकर मोदी से मुलाकात की थी और विकास कार्यों का गुणगान किया था। जर्मनी के राजदूत माइकल स्‍टीनर ने तो यहां तक कहा कि मानवाधिकार के मुद्दे और मोदी अलग-अलग हैं। मोदी को मानवाधिकार के मुद्दों से न जोड़ा जाए।

बीते दिनों अमेरिका दौरे के लिए वीजा देने से इनकार कर दिए जाने के बाद मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये भारतीय-अमेरिकी समुदाय को संबोधित किया। उनके संबोधन में भी वैश्विक लोकप्रियता की झलक दिखी और एनआरआई समुदाय ने इसकी जमकर तारीफ की। इस संबोधन में मोदी ने धर्मनिरपेक्षता की एक नई परिभाषा दी और इसे `इंडिया फर्स्‍ट` कहा। इस संज्ञा में भी एक वैश्विक पहचान झलकती है। गुजरात में गोधरा कांड के बाद अक्सर आलोचना झेलने वाले मोदी का यह कहना कि सभी नागरिकों के लिए भारत ही सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, यह दर्शाता है कि उनका दृष्टिकोण न सिर्फ भारत के नागरिकों तक सीमित है, बल्कि वे दुनियाभर में बसे भारतीयों को भी इससे जोड़ते हैं। संभवत: यही वजह है कि मोदी अब यह कहते नजर आते हैं कि देश सभी धर्मों एवं विचारधाराओं से ऊपर है। उनका यह भी मानना है कि भारत सबसे ऊपर होना होना चाहिए।

बीते दिनों वार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम में मुख्य वक्ता के रूप में नरेंद्र मोदी को दिए गए निमंत्रण को वापस लेने पर एक अमेरिकी सीनेटर ने भी निराशा जताई और कहा कि वार्टन द्वारा किसी के विचारों को दूसरों के दबाव में दबाना सही नहीं है। मोदी की लोकप्रियता का एक नमूना यह भी है कि वॉल स्ट्रीट जर्नल के करवाए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने वार्टन के फैसले को गलत माना। एक अमेरिकी सांसद के सार्वजनिक रूप से मोदी का समर्थन करना भी उनके बढ़ते कद को ही दर्शाता है। आज मोदी भारत के अहम राजनेता हैं और प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार बनने के लिए सर्वाधिक काबिल माने जा रहे हैं। ऐसे में अमेरिका भी अब उनकी और अनदेखी करना नहीं चाहेगा।

मोदी का संबोधन रद्द करने का फैसला एक स्तंभकार धुमे को भी नागवार गुजरा और उन्‍होंने व्हार्टन के फोरम के मेहमानों की सूची से अपना नाम वापस ले लिया। मोदी के पक्ष में समर्थन का आलम यहीं नहीं रुका। मोदी को दिए आमंत्रण वापस लेने के निर्णय से निराश अमेरिका में मोदी के समर्थकों ने फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए अभियान तक चलाया। वहीं, अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (यूएसआईबीसी) के अध्यक्ष ने भी कह डाला कि जब अमेरिका का कोई विश्वविद्यालय अभिव्यिक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हो तो यह अपमानजनक व दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्‍होंने आयोजकों के निर्णय पर असंतोष जताया।
वहीं, मोदी के भाषण को रद्द करने के फैसले के बाद नामचीन भारतीय अमेरिकी चिकित्सक ने व्हार्टन के इकोनॉमिक फोरम से खुद को अलग कर लिया। न्यूजर्सी में रहने वाले प्रख्यात चिकित्सक और प्रकाशक सुधीर पारिख को वाल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार के स्थान पर 23 मार्च को इस सम्मेलन को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। डा. पारिख का मानना था कि जिस तरह से मोदी को भेजे गए निमंत्रण को रद्द करने के लिए बाध्य किया गया, वह मंच की बौद्धिक सत्यनिष्ठा से समझौता है। वॉर्टन में संबोधन रद्द होने के बाद जिस तरह से भारतीय अमेरिकी समुदाय और अन्‍य देशों में बसे भारतीयों ने मामले की निंदा की, वह मोदी की स्‍वीकार्यता और लोकप्रियता को ही दर्शाता है।
मोदी की काबिलियत की बात करें तो वे एक ऐसे नेता के तौर पर उभरे हैं, जिनमें जनता देश को आगे ले जाने की क्षमता देख रही है। बीते दिनों एक सर्वे करवाया गया था, जिसमें मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए 43 प्रतिशत भारतीयों की पहली पसंद बनकर उभरे। इस सर्वे में खास बात यह रही कि मोदी की उम्मीदवारी को महिलाओं की तुलना में पुरुषों का अधिक समर्थन मिला।
आज आलम यह है कि मोदी की बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता कुछ भारतीय राजनेताओं के गले नहीं उतर रही है। तभी तो यह कहा जाने लगा कि मोदी विदेशियों के उम्मीदवार (प्रधानमंत्री पद के) हैं और अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिम के अन्‍य देश उनके प्रति नरम रुख अपना रहे हैं। ऐसे बयानों से भी समझा जा सकता है कि मोदी के नाम की चर्चा कैसे सरहद पार तक हो रही है।

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