अजीत जोगी कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं। मध्यप्रदेश से अलग होकर जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तो अजित जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए। हमेशा विवादों में बने रहना अजित जोगी से कोई सीखे। जोगी कहते भी हैं कि जो जीवन में सक्रिय रहेगा उसी के साथ तो विवाद जुड़ेगा। जोगी का यह भी मानना है कि भ्रष्टाचार को एकदम से खत्म नहीं किया जा सकता है। इस बार सियासत की बात में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अजीत जोगी से ज़ी रीज़नल चैनल्स (हिन्दी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने खास बातचीत की। पेश हैं इसके मुख्य अंश :-
वासिंद्र मिश्र : इस समय कोई ऐसा दल नहीं है, जो दावा कर सके कि उनके यहां भ्रष्टाचार नहीं है। कर्नाटक का जो परिणाम आया है वहां की जनता ने भ्रष्टाचार और कमजोर शासन को बहुत गंभीरता से लिया है। शायद इन्ही दो वजहों से भाजपा की वहां पर बुरी तरह से हार हुई है। आपको क्या लगता है लोकसभा के चुनाव में ये भ्रष्टाचार मुद्दा बन पाएगा?
अजीत जोगी : मैं आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूं। केवल भारत में ही नहीं, विश्व में जहां भी लोकतंत्र है और दूसरी भी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, कमोबेश हर जगह भ्रष्टाचार है। मैं समझता हूं कि भारत में भ्रष्टाचार कैंसर बन चुका है। सिर्फ राजनीति की बात नहीं करता, कोई भी वर्ग ऐसा नहीं बचा है जो इससे अछूता है। एक जमाना था कि आईएएस अधिकारियों पर गर्व किया जाता था कि भ्रष्टाचार इनसे बहुत दूर की बात है। अब वो इतना सच नहीं रहा। कभी ये कहा जाता था कि सब कुछ फेल हो जाए पर न्यायपालिका पर आंच नहीं आएगी। अब भ्रष्टाचार की बात उसको लेकर भी होती है राजनीति तो परिवर्तन का सबसे सशक्त माध्यम है। सबसे ज्यादा अधिकार और सत्ता उसके पास है इसलिए राजनीति और भ्रष्टाचार का बहुत ज्यादा साथ हो गया है और कोई विश्वास नहीं कर सकता है। मैं ये नहीं कहता कि राजनीति में ईमानदार लोग नहीं हैं। ईमानदार लोग भी हैं लेकिन ईमानदार लोगों को स्वीकार करने के लिए समाज तैयार नहीं है।
वासिंद्र मिश्र : आए दिन बातें होती हैं कि नौकरशाही और राजनेता का जो गठजोड़ है वो भ्रष्टाचार को परवान चढ़ा रहा है। इस बात में कितनी सच्चाई है?
अजीत जोगी : एक कुचक्र बन गया है उसमें नौकरशाही है, राजनेता हैं, औद्योगिक घराने हैं, व्यापारी हैं और बुरा न मानें तो उसमें कुछ पत्रकार भी हैं। ये सब मिलकर काम करते हैं। इनका उद्देश्य एक ही रहता है अपने आप धनी बनना, पैसा कमाना, एक दूसरे के साथ मिलकर गड़बड़ करते हैं तो एक दूसरे को बचाते भी हैं।
वासिंद्र मिश्र : आपकी नजर में इसका समाधान क्या है ?
अजीत जोगी : अधिकारों के प्रति सजग हो हर व्यक्ति, तब जाकर ये कम हो सकता है। मुझे नहीं लगता है कि ये बिलकुल समाप्त हो सकता है।
वासिंद्र मिश्र : कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। आप मानते हैं कि भ्रष्टाचार की वजह से भाजपा को नुकसान हुआ है?
अजीत जोगी : मैं मानता हूं कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा रहा लेकिन इसके साथ दो-तीन और बड़े मुद्दे थे मसलन सरकार की अक्षमता, कमजोर शासन और सरकार की अस्थिरता (पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदले गए) प्रमुख रही। भाजपा के अंदर ऊपर से नीचे तक झगड़े चलते रहे। राशन कार्ड बन जाए और राशन की दुकान तक आम आदमी पहुंच पाए, ये काम भी नहीं हो पाया।
वासिंद्र मिश्र : राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो कमोबेश ये सारे कारक जो आपने गिनाए है ये आपकी यूपीए सरकार में भी देखने को मिलती है। आपके प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्रियों पर आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। जितनी भी संवैधानिक संस्थाएं हैं सारी जांच एजेसियां घूम फिर कर पीएमओ पर आकर टिक जाते हैं। पीएमओ और उनसे जुड़े कुछ चुनिंदा मंत्री भी हैं?
अजीत जोगी : जनता ये जरूर देखेगी कि कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार हुआ तो उनके अध्यक्ष कलमाड़ी जेल गए। अगर 2जी में भ्रष्टाचार हुआ तो संप्रग सरकार के एक मंत्री ए. राजा जेल गए, कनीमोझी जो एक बहुत बड़े नेता की पुत्री हैं वो भी जेल गईं। जब ये लगता है कि कार्रवाई हो रही है, कड़ी कार्रवाई हो रही है और न्याय पाने की कोशिश हो रही है तो फिर सरकार पर आंच नहीं आती है। अभी जो भ्रष्टाचार सामने आ रहे हैं रेलवे का भ्रष्टाचार या कोल ब्लॉक आवंटन का भ्रष्टाचार, समय रहते हमने कड़ी कार्रवाई की और जो भी हो कितने भी बड़े पद पर बैठा हो उसपर यदि कार्रवाई हो जाएगी तो फिर मैं फिर नहीं समझता कि जनता ये सोचेगी कि भ्रष्टाचार हुआ और भ्रष्टाचार मं शामिल लोगों को छोड़ दिया गया। फिर ये होगा कि भ्रष्टाचार पर जो कार्रवाई हो सकती है वो भी हुई है।
वासिंद्र मिश्र : आपको लग रहा है कि कार्रवाई होगी?
अजीत जोगी : मैं इसके प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हूं। पिछले एक हफ्ते से दिल्ली में हूं। बड़े नेताओं से मिल रहा हूं और मुझे लग रहा है कि हमारी पार्टी में ये सोच पहले भी थी और आज भी है कि अगर भ्रष्टाचार किया है तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए और कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
वासिंद्र मिश्र : हम लोग भ्रष्टाचार की बात कर रहे थे। आप ट्राइबल कम्युनिटी से आते हैं, नौकरशाह रहे हैं। आपकी जिद थी, समाज की सेवा करनी है। शायद इसी वजह से नौकरी छोड़कर आपने सक्रिय राजनीति अपनाई। आप जिस राज्य से आते हैं वहां की आधी आबादी ट्राइबल्स की है। बावजूद इसके उनकी माली हालात में कोई सुधार नहीं है। क्या कारण रहे हैं। आप भी मुख्यमंत्री रहे। बताया जाता है कि वर्तमान मुख्यमंत्री भी आपके मित्र हैं।
अजीत जोगी : मैं अपनी प्रशंसा नहीं करना चाहता हूं। पर पहले तीन साल जब नया-नया राज्य बना था तो कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। सब चीजें नए तरीके से शुरू करनी पड़ी थी। एक बुनियाद डालनी थी। मंत्रालय तक नहीं था। अस्पताल में मंत्रालय बनाया गया। किसी का घर नहीं था। कलेक्टर के घर को अपना घर बनाया। ना बाबू थे न तंत्र था। इसको स्थापित करने के लिए पहले तीन साल सही बुनियाद के साथ काम किया और सही दिशा दी। एक दृष्टि थी, एक सोच थी, एक सपना था। एक ग़रीब परिवार में पैदा होने के कारण संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता गया और ईश्वर के आशीर्वाद से शुभकामनाओं से वहां तक पहुंचा था। इसलिए दिल में भावना थी कि अपने लोगों के लिए कुछ करना है। हमारी आधी आबादी आदिवासी, गरीबों की है। गरीब मानें तो 95 फीसदी आबादी थी। वहां बड़े से बड़ा परिवार में भी कोई धनाढ्य हो, कोई नहीं कह सकता। कुछ परिवार को छोड़कर। वहां जीडीपी के ग्रोथ रेट जो बताते हैं डॉ. रमन सिंह तो उन सौ परिवारों की इनकम को निकाल दें तो वो निगेटिव हो जाएगी।
वासिंद्र मिश्र : लेकिन वो तो आपके करीबी मित्र हैं। आंकड़ा बनाने का तरीका तो उन्होंने आपसे सीखा है।
अजीत जोगी : मित्रता सामाजिक रूप से है, व्यवहारिक है। हम दोनो में मेरे जन्मदिन पर वो आ जाएंगे, उनके जन्मदिन पर हम चले जाते हैं?
वासिंद्र मिश्र : लेकिन ये शिष्टाचार है। ये कोई बुरी बात नहीं लेकिन आपकी पार्टी मानती है।
अजीत जोगी : राजनैतिक रूप से हम लोग एक दूसरे के घोर विरोधी हैं। वो कलेजे पर हाथ रखकर बोलेंगे कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है तो वो मेरा ही नाम होगा। मैं बोलूंगा तो वही मेरे लिए सबसे बड़े टार्गेट हैं।
वासिंद्र मिश्र : आपकी छत्तीसगढ़ की पार्टियां चाहे कांग्रेस हो या भाजपा उनके कार्यकर्ता नहीं मानते कि रमन सिंह भाजपा से ज्यादा जोगी के हैं। और आपके कांग्रेसी भी यही मानते हैं। ये नजरिया क्यों बना है?
अजीत जोगी : देखिए नजरिया ऐसे ही नहीं बना है। मानते भी हैं कि मेरे ऊपर उन्होंने गलत मर्डर का आरोप लगाया था। गिरफ्तारी की। इसके अलावा हम पर डकैती का आरोप भी लगाया। जब लोकसभा का उपचुनाव हो रहा था, मेरे ऊपर झूठा मुकदमा भी चलाया गया कि मैं आदिवासी ही नहीं हूं। सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया कि मै आदिवासी हूं। मुझ पर आरोप था कि मैं अपने आप को गलत आदिवासी कहता हूं। तो सामान्य शिष्टाचार की बात छोड़ दें तो मुझ पर राजनीतिक प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया।
वासिंद्र मिश्र : आपके बारे में पॉलिटिकल टर्मिनॉलॉजी की बात करें या मीडिया में जिस तरह की बातें की जाती हैं उसकी चर्चा करें तो ‘विवादित शख्सियत’ आपके नाम के साथ जुड़ी है। जब आप सिविल सर्विस में थे तब भी, जब आप मुख्यमंत्री थे तब भी और जब आप विपक्ष में हैं तब भी विवादों के साथ आपका बड़ा कऱीबी रिश्ता रहा है। ये नजरिया क्यों बना है। खासतौर पर कांग्रेस महकमे के अंदर। आपके बारे में कहा जाता है कि आप कांग्रेस के अंदर एक समानांतर संगठन चलाते हैं। ख़ासतौर पर छत्तीसगढ़ में संगठन के बारे में कहा जाता है कि आपकी एक अलग समानांतर व्यवस्था है।
अजीत जोगी : जो व्यक्ति जीवन में सक्रिय रहेगा उसके साथ विवाद की बात जुड़ेगी। जो निष्क्रिय रहेगा उसके खिलाफ मुद्दे क्या उठेंगे। जो सक्रिय होता है वो लोगों पर आक्रमण करता है वो अपने लोगों को साथ रखने की, बचाव करने की कोशिश करता है, पार्टी आगे कैसे जाए इसकी रणनीति बनाता है। इन सब काम को कोई सक्रियता से करे जैसे मैं आज भी दिन में 18 घंटे काम करता हूं। अगर दिन में 18 घंटे जो राजनीति करेगा तो लोग उनके साथ विवादों को जोड़ते ही हैं।
वासिंद्र मिश्र : झारखंड, उत्तराखंड और छतीसगढ़ में देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्राकृतिक संसाधन बहुत अधिक हैं और तमाम प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां, पब्लिक सेक्टर की कंपनियां इन राज्यों में खनन से लेकर अलग-अलग कामों में लगे हुए हैं लेकिन उनके मुनाफा का शेयर वहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिल पा रहा है। उन कंपनियों का जेब भर रहा है, मालिकान के जेब भर रहे हैं। आपको नहीं लगता है कि मौजूदा कानून में बदलाव की जरूरत है ताकि प्राकृतिक संसाधनों का लाभ सीधे तौर पर वहां की जनता को मिले?
अजीत जोगी : मैं ये मानता हूं कि अगर ईमानदारी से वर्तमान कानून का पालन किया जाए तो कोई समस्या नहीं रहेगी। जैसे पेशा एक कानून है। इसके तहत आदिवासी इलाकों में ग्राम पंचायत से बिना पूछे आप उसके क्षेत्र का प्राकृतिक संसाधन किसी को नहीं दे सकते हैं। छतीसगढ़ के एक इलाके में पेशा कानून बना दिया गया लेकिन लागू नहीं हुआ। इसका परिणाम क्या हुआ? बस्तर में टाटा पहुंच गया, बस्तर में एस्सार पहुंच गया। हमने ये नीति बनाई थी कि माइनिंग का काम सिर्फ सार्वजनिक उपक्रमों की कंपनियों को ही देंगे लेकिन पिछले 10 सालों में हालात पूरी तरह से बदल गए। अब हालत ये है कि एक अंश या एक छटांक अयस्क नहीं बचा है चाहे वो लोहे का हो, कोयले का हो, बॉक्साइट का हो, डायमंड का हो या फिर सोने का हो। सबकी माइनिंग लीज दे दी है और ऐसे लोगों को दे दी है जिनका स्थानीय लोगों से कोई सरोकार नहीं है।
वासिंद्र मिश्र : तो क्या इसके लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार नहीं है?
अजीत जोगी : मैं ये मानता हूं कि इस तरह का दृष्टिकोण बदलना चाहिए केंद्र और राज्य दोनों को। केद्र सरकार केवल एक रास्ते पर चलती है, राज्य सरकार ने अनुशंसा कर दी राज्य सरकार ने अपने कानून का पालन किया। आवेदन किया। पहले कौन आया, बाद में कौन आया, कौन अच्छा है, कौन बुरा है ये हमने तय कर लिया और ये अनुशंसा कर दें तो 99.9 प्रतिशत जिसकी अनुशंसा राज्य शासन करता है उसको केंद्र सरकार दे देती है।
वासिंद्र मिश्र : लेकिन ये स्थिति तब की थी जब दोनों जगहों पर एक ही पार्टी की सरकारें होती थीं? लेकिन बदले हालात में आपको ऐसा नहीं लगता है कि केंद्र को अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए?
अजीत जोगी : मैं वही कह रहा हूं कि कार्रवाई तो हुई है। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। इसके राजनीति में मत जाइएगा। छत्तीसगढ़ में एक कोयला ब्लॉक रमन सिंह ने संचेती को जो उनके सांसद हैं उनको देने के लिए अनुशंसा किया था। संचेती ने अपनी जिंदगी में कभी कोयला नहीं देखा होगा। नागपुर में रहते हैं। कभी कोयला खोदा नहीं होगा। उनको प्रदेश में सबसे अच्छा कोयला ब्लॉक दे दिया गया। काफी सस्ते में दे दिया और 32 साल के लीज पर। अनुशंसा प्रदेश सरकार की ओर से हो गई। मैं इससे सहमत हूं कि केंद्र सरकार को इसको देखना चाहिए था कि ये अनुशंसा कैसे हो गई। एक शख्स एक ब्लॉक को 550 करोड़ में ले रहा है और उसी के बगल का ब्लॉक आपका सांसद 130 करोड़ में ले रहा है। केंद्र सरकार को इसे मंजूर नहीं करना चाहिए था। अब जांच के बाद इसे रद्द किया गया है। हालांकि मै आपकी बात से बहुत सहमत हूं और ये आपके सकारात्मक सोच का परिणाम है कि जो आपने कहा कि जो कुछ भी वहां से निकाला जाए तो उस व्यक्ति को आजीवन कुछ शेयर मिलते रहना चाहिए। एक रॉयलटी मिलती रहनी चाहिए। एक आदिवासी विभाग का अध्ययन है। वहां से मैंने ये प्रस्ताव कई बार अपनी पार्टी को भेजा है। पार्टी में कई बार इस पर बात भी की है पर एक राय नहीं हो पा रही है। मैं स्वीकार करता हूं पर मेरा अपना मानना है कि अगर कोई हमारे आदिवासी इलाके से खनिज निकालेगा तो जिस आदिवासी की जगह से खुदेगा वो तो बर्बाद हो गया। वो तो वहां से विस्थापित हो गया। तो हम ये मानते हैं कि जो न्यूनतम वेतन उसके अनुसार प्रतिमाह उसको और उसके वारिसों को तब तक मिले जब तक वो खदान आप चलाएंगे।
छोटे राज्य जिस दृष्टि से हमने बनाए थे उसके हिसाब से तो आदिवासियों को मालामाल हो जाना था लेकिन वो कंगाल हो गया। मैंने एक दिन अंदाज़ा लगाया था बस्तर के एक ब्लॉक का। वहां पर जितना पैसा हम लोगों ने खर्च किया आदिवासियों के ऊपर और जितना वहां की दौलत का दोहन किया वो अगर हम वहां के आदिवासियों को बांट देते, मान लीजिए शिक्षा पर इतना किया, हैल्थ पर इतना किया, सड़क पर इतना किया वो इन सब पर न करके उसका एक बैंक अकाउंट खोल देते और बैंक अकाउंट में जमा कर देते तो प्रत्येक आदिवासी के खाते में एक करोड़ 25 लाख रुपए होता।