महिलाओं के प्रति मानसिकता बदलनी होगी: ममता शर्मा

देश में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में विभिन्न पहलुओं पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा से जानने की कोशिश की ज़ी रीजनल चैनल्स (हिंदी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने अपने खास कार्यक्रम ‘सियासत की बात’ में। पेश हैं उसके मुख्य अंश:-

देश में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में विभिन्न पहलुओं पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा से जानने की कोशिश की ज़ी रीजनल चैनल्स (हिंदी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने अपने खास कार्यक्रम ‘सियासत की बात’ में। पेश हैं उसके मुख्य अंश:-
वासिन्द्र मिश्र: आज हमारे साथ राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा हैं। ममता जी, इस समय देश में महिलाओं के प्रति जो हिंसक वारदातों में इज़ाफा हुआ है और जिस तरह से एक के बाद एक तमाम कोशिशों के बावजूद इस तरह की वारदातों पर लगाम नहीं लग पा रहा है। इसके लिए आपकी राय क्या है किस तरह ऐसे वारदातों पर लगाम लगाया जा सकता है और इसके अलावा महिलाओं को लेकर जो देश में मौजूदा कानून हैं क्या अभी भी उनमें बदलाव की जरूरत है?
ममता शर्मा: देखिए मैं सोचती हूं कि मुझे शुरू से ही बात करनी चाहिए जब मैं आई थी आयोग में तो पहले भी आयोग बहुत अच्छा काम कर रहा था और 1992 में आयोग का गठन हुआ और उसके बाद कई चेयरपर्सन रहे हैं, लेकिन जब मैं आई थी तब हमारे राजस्थान की ही माननीय गिरिजा व्यास जी थी और जब मैं आई तो मैंने देखा 20 हज़ार केस पेंडिंग थे तो सबसे पहले मैंने उनको शॉर्टआउट किया कि पेंडेंसी नहीं रहनी चाहिए। दूसरी बात जो बहुत अहम मैंने यहां देखे वो ये कि जितने भी केसेस डील होते थे वो सारे अंग्रेजी में हुआ करते थे और ज़्यादातर केसेस जो हमारे पास आते हैं वो हमारे नेवर स्टेट के आते हैं। जैसे हरियाणा है, यूपी है, राजस्थान है और ये जो बॉर्डर्स हैं ये सब जितने भी स्टेट्स हैं ये सब हिंदी स्पीकिंग स्टेट्स हैं तो मुझे ये लगा कि हम जो महिला अपनी तकलीफ को लेकर आ रही है उसको हम ठीक से कनवेंस नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि जो कंपलेंट दर्ज हो रही है वो भी अंग्रेजी में जो उससे वार्ता हो रही है, तो सबसे पहले मैंने यहां पर एक हिंदी का भी एक सेल खुलवाया वो बहुत ज़रुरी था। तो इस तरह से मैंने अपने कामों की शुरुआत की और महिला अधिकार अभियान के नाम से मैंने आते ही एक पायलट प्रोजेक्ट लिया कि महिलाओं को हम अनपढ़ महिलाओं की बात तो करते हैं लेकिन मैंने देखा जो बहुत पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं, जो एक सोसायटी में मूव करती हैं उन महिलाओं को भी उनके अधिकारों के बारे में पता नहीं है तो हमने अपनी तरफ से ये जो एक अभियान चलाया इसका बड़ा पोजिटीव रिजल्ट सामने आया।
वासिन्द्र मिश्र: ये जो आंकड़े हैं आपके आयोग के पास सबसे ज़्यादा उत्पीड़न के जो मामले हैं किन राज्यों से आपके पास आते हैं?
ममता शर्मा: देखिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इन दिनों वेस्ट बंगाल में भी बहुत बढ़ गया है। उड़ीसा में भी बहुत बढ़ गया है तो जहां-जहां ट्राइबल्स हैं वहां बहुत ज़्यादा अत्याचार हो रहे हैं। दलितों पर होते हैं, ट्राइबल्स पर होते हैं और ट्राइबल्स की जो हालत है वो बहुत ज़्यादा खराब है अगर आप ये पूछें कि आजादी के इतने सालों बाद भी इनकी दशा ठीक क्यों नहीं हुई तो मैं सोचती हूं कि मेरे पास भी कोई जवाब नहीं है, लेकिन मैं ये भी देखती हूं कि अगर इनपर वास्तव में काम किया जाता है। और जितना सरकार चाहे वो सेंट्रल गवर्नमेंट हो चाहे वो स्टेट गवर्नमेंट हो जितना पेपर्स पर इनके लिए योजनाएं हैं, स्कीम्स हैं अगर ये इंप्लीमेंट हो जाती प्रॉपर वे में तो शायद आज ये नौबत नहीं आती।
वासिन्द्र मिश्र: तो आप इस बात को तो मानती हैं न कि जो वेलफेयर स्कीम्स चल रही हैं देश में चाहे वो राज्य सरकारें चला रही हों या केंद्र सरकारें चला रही हो वो महज कागजों पर ज़्यादा है ग्राउंड लेवल पर कम है?
ममता शर्मा: देखिए स्पेशली ट्राइबल्स के पास नहीं पहुंच रही है। जो आपके दूसरी पंचायत होती हैं किसी भी स्टेट की बड़े-बड़े पंचायत हेडक्वार्टर होते हैं वहां पर ये स्कीम्स लागू हो रही है लेकिन फिर भी जिन एरिया का मैं दौरा कर रही हूं। जैसे मैं वेस्ट बंगाल के सुंदरवन में गई, उड़ीसा के चिल्का एरिया में गई, राजस्थान के बांसबाड़ा डूंगरपुर। कई एरिया कोटा में भी हैं बूंदी में भी हैं, जहां ट्राइवल्स रह रहे हैं। मैं सोचती हूं वो काम उनमें नहीं हो पा रहा है जो आज भी होना चाहिए।
वासिन्द्र मिश्र: इसके पीछे कारण क्या है ? क्या केंद्र और राज्य के बीच में जो तनाव बना रहता है दोनों सरकारें अलग-अलग दिशा में जो चलने की कोशिश करती हैं ये कारण है या इच्छाशक्ति की कमी है?
ममता शर्मा: नहीं मैं सोचती हूं कि ये कारण तो नहीं होना चाहिए। अगर सेंट्रल गवर्नमेंट कोई स्कीम देता है और उसको स्टेट गवर्नमेंट लागू करता है तो उनके लिए बहुत अच्छी बात है कि परोसी हुई थाली मिल रही है। आपको खिलाना ही तो है, लेकिन जनरली देखने में आया है कि इन लोगों में काम नहीं हो रहा है और आज भी उनकी दशा ये है कि उनके पास खाने के लिए दाना नहीं है।
वासिन्द्र मिश्र: अगर मध्य प्रदेश की हम बात करें या राजस्थान की हम बात करें। राजस्थान में आप ही की पार्टी की सरकार है और केंद्र में भी आपकी सरकार है। तो कम से कम राजस्थान में जो कल्याणकारी योजनाएं हैं उनका ठीक से क्रियान्यवयन क्यों नहीं हो पा रहा है?
ममता शर्मा: देखिए राजस्थान की ट्राइबल अब थोड़ी सी जाग्रत है। राजस्थान की ट्राइवल में और अगर आप छत्तीसगढ़ कलकत्ता या उड़ीसा की बात करें तो उनमें बदलाव है। लेकिन फिर भी मैं ये कहूंगी कि ट्राइबल्स में आज भी सरकार को चाहे मॉनिटरिंग कराके काम करना चाहिए। लेकिन बहुत ज़रुरी है कि उनकी दशा जो है वो अब देखा जाय कि हालात क्या हैं? जैसे राजस्थान में आज भी बांसवाड़ा, डूंगरपुर में कभी-कभी डायन की घटनाएं सुनने को मिलती हैं और ज़्यादातर ये ट्राइबल्स में ही होती है। तो मैं समझती हूं कि इस पर बहुत बड़ी एक्सरसाइज करने की जरुरत है थ्रू एनजीओ। इनमें जागृति लाने की जरुरत है और मैं सोचती हूं जबतक आप अवेयरनेस बिल्डिंग नहीं करेंगे तब तक इसका फायदा मिलने वाला नहीं है।
वासिन्द्र मिश्र: यह जो नक्सली प्रॉबलम चल रहा है मध्य प्रदेश में, छत्तीसगढ़ में या बाकी और राज्यों में इसके पीछे भी कहीं न कहीं आपको लगता है कि जो आधी आबादी के साथ नाइंसाफी होती रही है, आजादी से लेकर अबतक वो एक सबसे बड़ा कारण है?
ममता शर्मा: देखिए आज भी हो रहा है। ऐसा नहीं है कि नहीं है। जैसे आप छत्तीसगढ़ जाइए तो और झारखंड में खास तौर से। डायन के इतने केसेस आते हैं सिर्फ लैड राइट को लेकर। सिर्फ जमीन को लेकर वो झगड़े हैं। जो माफिया हैं जो बहुत बड़े गुंडे माने जाते हैं, महाजन इनको वहां कहा जाता है वो लोग इनको परेशान करते हैं और जनरली जब ये खासतौर से विडो हो जाती हैं और अगर थोड़ा भी उनके पास चंक है किसी लैंड का तो उसको हथियाने के लिए उसको डायन करार देते हैं और डायन करार देना भी ठीक है कि चलो आपने बोल दिया लेकिन उसके ऊपर जो अत्याचार होते हैं कान काट दिए जाते हैं, नाक काट दी जाती है, पत्थरों से उसके दांत तोड़ दिए जाते हैं। तो ये हिंसाएं अब कम से कम बंद होने का समय है।
वासिन्द्र मिश्र: ममता जी, देश में आपकी सरकार है। आजादी के बाद से अब तक ज़्यादातर वक्त कांग्रेस की ही सरकार रही है या कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार रही है। NDA के थोड़े से कार्यकाल को अगर छोड़ दें। आपको नहीं लगता है कि इसके लिए कांग्रेस पार्टी भी जिम्मेदार है?
ममता शर्मा: देखिए कांग्रेस पार्टी की सरकार हो या NDA की हो या किसी और की हो लेकिन मैं इसके बारे में ये कहना चाहूंगी कि स्कीम्स देने में, अपलिफ्ट करने में उनलोगों ने कभी कोई कंजूसी नहीं की चाहे कोई भी सरकार आई हो। लेकिन ये जो इंप्लीमेंटरी एजेंसी है उनके ऊपर डिपेंड करता है कि वो क्या कर रहे हैं। अगर आप बात करें तो ट्राइब के लिए सोनिया गांधी बहुत ज़्यादा आज भी बड़ी सेंसेटिव हैं कि किसी तरह से इनका अपलिफ्टमेंट हो और ये आगे आएं। और एक बात और बताना चाहूंगी मैं कि स्व. राजीव गांधी जी ने 33% पंचायत राज्यों में किया लोकल बॉडीज में किया उसका असर अब देखने को मिलने लगा है। लेकिन थोड़ी सी शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो। मैं जहां-जहां जा रही हूं स्कूलों में ताले लगे हुए हैं। PHC में CHC में ताले लगे हुए हैं। डॉक्टर्स ही नहीं हैं। आप ताज्जुब करेंगे उड़ीसा के एक गांव में एक हॉस्पीटल में कुत्ते घूम रहे हैं ताले लगे हैं। एक डॉक्टर है तो ये सब जो हैं वो राज्य सरकारों की ड्यूटी बनती है कि वो मॉनिटरिंग कराएं। इसमें केन्द्र सरकार किसी भी पार्टी की हो उनकी ड्यूटी सिर्फ स्कीम्स देने की है। आपको फंड्स देने की है आपको फैसिलिटी देने की है लेकिन अब आप उनका इंप्लीमेंट कितना करते हैं ये सब राज्य सरकारों की ड्यूटी है।

वासिन्द्र मिश्र: जो आंकड़े हमारे आपके सामने हैं जो समय-समय पर आते हैं। ट्राइबल महिलाओं के साथ ज्यादती हो रही है जो गांवों में रहने वाली महिलाएं हैं उनके साथ ज्यादती हो रही है। भूमि सुधार कानून जिस प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए, नहीं हो पाया। ये सब सच है लेकिन शहरी क्षेत्रों में भी महिलाओं के साथ जो ज्यादती के आंकड़े हैं वो काफी चौंकाने वाले हैं। इधर हाल के महीनों में, वर्षों में जिस तरह की हृद्य-विदारक घटनाएं शहरी क्षेत्र में महिलाओं के साथ हुआ है, पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ हुआ है, पढ़े-लिखे पुरुषों के द्वारा किया गया है उस तरह के हादसे तो गांव के क्षेत्रों में भी शायद कम देखने को मिले हों। इसके लिए आप किसको जिम्मेदार मानती हैं?
ममता शर्मा: देखिए एक तो समाज की मानसिकता दूषित हो गई है। जहां तक मैं समझती हूं कि लोग चूंकि न्यूक्लियर फैमिली में रहना पसंद करने लगे हैं तो वो संस्कार, वो परंपराएं, वो संस्कृति उसको हम धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। दूसरी बात ये है कि शिक्षा के साथ-साथ जिस तरह के विज्ञापन आ रहे हैं, चाहे वो प्रिंट मीडिया में ले लीजिए, चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ले लीजिए और जिस तरह की फ़िल्में आ रही हैं, कहीं न कहीं समाज की मानसिकता को दूषित करने में इनका बहुत बड़ा हाथ है। और मैं समझती हूं इनपर अगर रोक लगेगी तो शायद कहीं न कहीं कुछ बदलाव जरुर आएगा। हम लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं कि दिल्ली पुलिस ने कुछ नहीं किया लेकिन दिल्ली पुलिस या लॉ एंड ऑर्डर ये कहने नहीं जाता कि इस वारदात को अंजाम दो। हां, ये जरुर मैं मानती हूं कि अंजाम के बाद पुलिस की बहुत बड़ी ड्यूटी बनती है कि वो उसको ठीक से देखे और ACCUSED को सज़ा दें। वो बात और हो गई। लेकिन कहीं न कहीं दामिनी का केस हो गया उसके बाद बड़े शर्म की बात है कि लगातार केस बढ़ते गए। कुछ ये भी मैं मानती हूं कि केसेस बढ़ने का एक कारण और भी है कि केसेस पहले भी होते थे लेकिन एक अवेयरनेस आई है महिलाओं में खासतौर से, कि कहीं न कहीं हमें न्याय मिल सकता है और उसके जरिए वे केस दर्ज कराने लगी हैं। उस बात को लेकर केस दर्ज कराने लगी हैं तो आंकड़े इंक्रीज हुए हैं, आंकड़े बढ़े हैं लेकिन साथ में मैं ये भी कहूंगी कि समाज और एक तरह का माफिया पैदा हो रहा है लड़कियों के खिलाफ उसको अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी।
वासिन्द्र मिश्र: ब्रेक के बाद आपका फिर स्वागत है और ममता जी हमलोग बात कर रहे थे कि जो महिलाओं के प्रति ज्यादती हो रही है, जो अत्याचार की वारदातें हो रही हैं उसमें शहरी क्षेत्र की महिलाएं भी काफी हद तक उसकी शिकार हो रही हैं। आपने कहा कि मानसिकता बदलनी पड़ेगी। जो भी ज्ञापन आ रहे हैं इस पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। आपको नहीं लगता है कि महिलाओं की दुर्दशा के लिए काफी हद तक महिलाएं भी जिम्मेदार हैं। जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, जिस तरह के सीरियल बन रहे हैं, ज़्यादातर इस तरह की फिल्में और सीरियल्स बनाने में जो किरदार से लेकर और उसको प्रोड्यूस करने में महिलाओं की भी काफी अहम भागीदारी रही है। तो आपको नहीं लगता कि महिलाएं ही अपने को एक तरह से कमोडिटी के रुप में ज़्यादा पेश करना चाहती हैं, शॉर्टकट अचीवमेंट के लिए?
ममता शर्मा: देखिए इसमें मैं ये कहूंगी कि अगर सेंसर बोर्ड 2 ऐसी फिल्मों पर रोक लगा देगा तो शायद वहां भी बदलाव आएगा। लेकिन हर फिल्म को चाहे वो अच्छी हो, चाहे वो बुरी हो उसको बड़ी आसानी से पास कर दिया जाता है। तो मैं सोचती हूं कि इसमें महिलाएं अपने-आप पीछे हट जाएंगी जब आप रोक लगाएंगे तभी तो कुछ बदलाव आएगा। रोक है ही नहीं किसी तरह की। तो हमारी जो संस्कृति है उसमें कहीं न कहीं सीमाएं रखी गई हैं। महिलाओं के लिए ऐसा नहीं है। लेकिन उन सीमाओं के लिए सेंसर बोर्ड है और आईबी ऐंड मिनिस्ट्री है, इनको चाहिए कि कुछ रोक लगाएं।
वासिन्द्र मिश्र: एक और बात है जो देखने को मिली है। अक्सर देखने को मिलता है रहा है कि जो भी कानून बनता है तो एक तो बनने में बहुत वक्त लगता है और जब अगर किसी तरह बन कर ग्राउंड लेवल पर आ जाता है कोई कानून तो उसके इंप्लीमेंटेशन में उसका दुरुपयोग बहुत होता है। चाहे वो SC/ST ऐक्ट हो या DOWRY ऐक्ट हो या अब जो अभी हाल में संशोधन हुआ है। दिल्ली में जो वारदातें हुई थी उसके बाद, अब एक तरह से आप देखिए तो कंप्लेंट्स की भरमार हो गई है। लेकिन 80% ऐसे कंप्लेंट हो गए हैं जो कि आपसी रिश्ते, आपसी सहमति से सालों दर साल दोनों रहते हैं। साथ में और बाद में जब कोई किसी एक छोटी सी बात को लेकर मतभेद पैदा हो जाता है तो वो महिला जाती है और थाने में एक मुकदमा दर्ज करा देती है कि उसकी मर्जी के खिलाफ, उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ ये रिश्ता बनाकर फलां व्यक्ति इतने दिन से चला आ रहा था। आपको नहीं लगता है कि इस तरह के कानून से इस तरह के कानून के दुरुपयोग से जो हिंसक वारदातें हैं उसमें और इजाफा हुआ है?
ममता शर्मा: देखिए इसमें मेरा ये कहना है कि सबसे बड़ी बात तो ये है कि जो कानून बने हैं महिलाओं की सिक्योरिटी के लिए उनका इंप्लीमेंटेशन बहुत मुश्किल से हो पाता है। उनका इंप्लीमेंटेंशन होना चाहिए। कानून आप कितने ही बदलाव ला दीजिए। अभी जब दामिनी वाली घटना हुई तो सबने कहा कि कानून और कड़े होने चाहिए, और सख्त होने चाहिए और कानूनों को सख्त किया भी गया, लेकिन उसके साथ एक बात और भी है कि फास्ट-ट्रैक कोर्ट जो बनाए हैं उनके अभी तक फैसले नहीं आए हैं। दामिनी की घटना को 9वां महीना चल रहा है, शुरु हो रहा है। अगस्त आ गया। 16 दिसम्बर की घटना है। मैं सोचती हूं कि कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। कानून का इंप्लीमेंटेशन बहुत ज़्यादा ज़रुरी है। उसमें कोर्ट की भी बहुत बड़ी भागीदारी है कि कोर्ट टाइम से फैसले दें। अब आप उस केस में देखिए कि जो मेन ACCUSED है वो ये कह रहे हैं कि हम तो मौके पर ही नहीं थे,जिनको लड़की खुद आइडेंटीफाइ करके गई है और जो आपने अभी जिक्र किया कि कुछ कानूनों का दुरुपयोग भी हो रहा है तो आपने जो 80% बात कही है ये तो मैं कहीं से भी मानने को तैयार नहीं हूं, कानूनों का दुरुपयोग एक-दो परसेंट हो सकता है लेकिन तबतक महिला अपनी बात को समाज के सामने उजागर करने के लिए तैयार नहीं होती जबतक उसके सिर से पानी नहीं गुजर जाए। तो ये कहना कि कानूनों का महिला दुरुपयोग कर रही है मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। एक-दो परसेंट होता है और वो हम भी जानते हैं कि ये ग़लत है या ये सही है और जैसे कल मेरे पास एक केस आया कि बहू अपनी सास को बहुत प्रताड़ना दे रही है। तो महिला, महिला के सशक्तिकरण की बात तो करती है लेकिन साथ में ये भी खत्म होना चाहिए।
वासिन्द्र मिश्र: आपके पास कभी कोई इस तरह का केस आता है कि महिलाओं की तरफ से पुरुषों को प्रताड़ित किया जाता है या पतियों को प्रताड़ित किया जाता है?
ममता शर्मा: बहुत पुरुष आते हैं और उसमें हम इंक्वायरी कराके और ये देख लेते हैं कि अगर ये सच है तो हम केस को बंद कर देते हैं और अगर सच नहीं है तो उसकी कार्रवाई जो महिला के पक्ष में होता है वो होता है।
वासिन्द्र मिश्र: एक और बात अभी आप बोल रही थीं और आपका क्योंकि कानून और ज़्यूडीसियरी से काफी नजदीकी रहा है, सम्बंध रहा है तो आप क्या ये कहना चाह रही हैं कि पूरे ज्यूडीसियल सिस्टम को रिव्यूव करने की ज़रुरत है. इसमें प्रोसिक्यूशन?
ममता शर्मा: नहीं मैं वो नहीं कह रही हूं। मैं वो नहीं कह रही हूं, ज्यूडीसियल सिस्टम ठीक है। उसके लिए कोई परेशानी नहीं है। लेकिन जो atrocities महिलाओं के अगेंस्ट हो रहे हैं, जो अपराध हो रहे हैं, ऐसे केसेस में टाइम बॉन्ड मैनर में फैसले आने चाहिए। महीना दो महीना, हद से हद 3 महीना, लेकिन जो 9-9 महीने इतना संगीन केस, जो केवल देश की सुर्खियों पर नहीं रहा, पूरी दुनिया की सुर्खियों पर रहा, उसमें अभी तक फैसला नहीं आना और जो आरोपी हैं वो अभी अपने आपको बिल्कुल साफ-सुथरा पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं सोचती हूं ऐसे केसेस में फैसले बहुत जल्दी आने चाहिए।
वासिन्द्र मिश्र: अब थोड़ा आयोग के कामकाज की बात करते हैं। हम लोगों ने शुरुआत में बात की थी आयोग के कामकाज को लेकर और आपने बताया कि 2 साल में आपने क्या-क्या काम किया है। और पूरे देश में क्या-क्या किस तरह से आपका अनुभव रहा है। एक जो प्रॉब्लम बीच-बीच में देखने को मिलती है कि केन्द्रीय महिला आयोग और राज्यों में जो महिला आयोग गठित है वो कहीं ना कहीं आपनी पार्टी इन और पार्टी AFFILIATION पर काम करती दिखाई देती हैं। अगर कोई घटना दिल्ली में होती है तो केन्द्रीय महिला आयोग का अलग नजरिया रहता है और राज्य का जो महिला आयोग है उसका अलग नजरिया रहता है और राज्य का जो महिला आयोग है उसका अलग नजरिया होता है। अगर राज्य में किसी दूसरे पार्टी की सरकार है। ठीक इसी तरह से उत्तर प्रदेश है, बिहार है या कोई भी राज्य है जब ये इस तरह की व्यवस्था की गई थी तो संयोग से माना गया था देश में एक ही पार्टी की सरकार होती थी राज्यों में भी और केंद्र में भी। अब पूरा राजनैतिक सीनैरियो बदल गया है और शायद दुबारा वह स्थिति बन भी नहीं पाए कि एक पार्टी की सरकार राज्य में भी रहे और केंद्र में भी रहे। ऐसी स्थिति को देखते हुए क्या एक केन्द्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा के नाते आप की तरफ से कोई पहल होगी कि राज्यों में जो महिला आयोग है उनकी जवाबदेही महिलाओं के लिए हो। महिलाओं की परेशानी दूर करने के लिए हो ना कि अपने राजनैतिक प्रतिबद्धता के चलते नाकि अपने राजनैतिक जवाबदेही के चलते, जो एक बड़ा जो कर्य है जिसके लिए उनको उस पद पर बिठाया गया है उसके साथ न्याय न करके अपनी राजनैतिक लॉयल्टी और कहें तो नमक अदायगी में ज़्यादा बिजी ना रहें।
ममता शर्मा: देखिए ऐसा है कायदे से आयोग में नमक अदायगी की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि आयोग ऑटोनोमस बॉडी है, कॉंस्टीट्यूशन पोस्ट है इसमें। तो मैं और ये राज्य आयोग भी हैं जितने भी ये हमारे अंडर में नहीं आते, सब ऑटोनोमस हैं। ये स्टेट गवर्नमेंट ही इनको जो भी प्रोवाइड करती हैं फंड या फैसिलिटी सब वही करते हैं। तो मैं तो जब भी राज्य आयोग की अध्यक्षाएं आती हैं, हम जब बुलाते किसी मीटिंग में या कोई मेमोरेंडम देने के लिए या जैसे प्रेसीडेंट से मुलाकात है तब बुलाया जाता है या कोई सेमिनार कॉंफ्रेंस होती है तब बुलाया जाता है तो मेरा तो इसमें नजरिया है कि किसी भी महिला के प्रति चाहे वो किसी भी पार्टी की हो हमारा बायस्ड एटीट्यूट नहीं होना चाहिए। लेकिन ये जरुर कहूंगी कि जो सरकार के यहां अच्छा काम है तो उसकी भी हम सराहना करते हैं और जहां महिलाओं की अनदेखी हो रही है तो उनकी हम बुराई भी करते हैं। जैसे मैं जब भी मध्य प्रदेश जाती हूं अगर 4 घंटे भी रुकती हूं तो करीब 25 केस मेरे पास आ जाते हैं। तो इसमें जब केसेस आते हैं तब मैं देखती हूं कहीं न कहीं कुछ है तभी आ रहे हैं। अगर राजस्थान में भी कुछ हुआ है जहां कांग्रेस की सरकार है तो मैंने उसमें भी आवाज उठाई। अभी पाली का एक केस आया है मैं उसमें इंक्वायरी कर रही हूं।
वासिन्द्र मिश्र: लगता है राजस्थान में अभी भी फ्यूडल सिस्टम ज्यादा हावी है।
ममता शर्मा: नहीं ऐसा नहीं है अब आजादी के इतने साल बाद राजस्थान में कहां फ्यूडल सिस्टम बचा है। कहीं नहीं है, पूरे देश में नहीं है। और मैं आपको बता दूं कि जनता जिनको चुनके भेजती है तो मैं तो उनको तो बादशाह नहीं कहूंगी,लेकिन जनता बादशाह है खुद। वो बादशाह नहीं हुए लेकिन जिनको जनता मैंडेट देती है बाकायदा तो वो तो जनता बादशाह तो है ही। अब वो अगर आप फ्यूडल सिस्टम की बात करें तो वो देश के किसी कोने में नहीं बची है।
वासिन्द्र मिश्र: केन्द्रीय महिला आयोग में भी तमाम वैकेंसीज हैं जो कि अभी भरी नहीं गई हैं। सुनने में आ रहा है। क्या वो सब भर दी गई हैं?
ममता शर्मा: ऐसा कुछ नहीं है। एक मेंबर की जगह खाली है, क्योंकि एक मेंबर जो हमारे यहां थी वो नॉर्थ इस्ट की थीं और वो काम भी अच्छा कर रही थीं। लेकिन उनको तो रिवॉर्ड ही मिला है कि वो राज्यसभा में ले ली गई हैं। वानसुख सियांग करके। अभी 3-4 महीने पहिले ही उनको मेघालय के चुनाव के बाद राज्यसभा में ले लिया गया है। बाकी वो एक ही वैकेंसी हैं, MS हमारे यहां नहीं हैं मेम्बर सेक्रेटरी, और अभी ऐडीशनल चार्ज लेके हैं तो काम करना मुश्किल तो होता है। JS ने भी अभी एक हफ्ते पहले ही ज्वाइन किया है। मार्च से हमारे पास JS नहीं थीं।
वासिन्द्र मिश्र: तो एक तरफ जहां इतनी पेंडेंसी है केस की दूसरी तरफ मेंबर सेक्रेटरी नहीं हैं, ज्वाइंट सेक्रेटरी नहीं हैं।
ममता शर्मा: अब आ गई हैं JS आ गई हैं ज्वाइंट सेक्रेटरी मार्च से नहीं थीं वो अभी आ गई हैं और मेंबर सेक्रेटरी करीब एक साल से नहीं थीं। वो अभी ऐडीशनल चार्ज है उनके पास। परमानेंट अभी भी नहीं आई हैं और आप जो केसेस की पेंडेंसी की बात कर रहे हैं आज की तारीख में हमारे यहां केवल 1000 केसेस पेंडिंग हैं इनपे भी काम चल रहा है।
वासिन्द्र मिश्र: राजस्थान में चुनाव होने जा रहा है विधानसभा का। वैसे डायरेक्टली तो आप चूंकि कांस्टीट्यूशनल पोस्ट पर हैं। आपकी कोई डायरेक्ट जिम्मेदारी नहीं है और इंल्वॉलमेंट नहीं है लेकिन पहले आप एक राजनेता हैं उसके बाद महिला आयोग की अध्यक्षा हैं। आपकी अपनी पार्टी है। क्या उम्मीद कर रही हैं आप? टिकट डिस्ट्रीब्यूशन के समय किस तरह का रिप्रजेंटेशन आप उम्मीद कर रही हैं कि महिलाओं को मिलेगा? जिन राज्यों में अभी विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं वहां भी और इसके बाद आने वाले लोकसभा के चुनावों में भी।
ममता शर्मा: देखिए इसके बारे में मैं ये कहूंगी कि जब महामहिम प्रतिभा जी प्रेसिडेंट थीं तो हमने सभी राज्यों की अध्यक्षाओं को और हमारी मेम्बरान के साथ एक मेमोरेंडम दिया था और उसमें ये था कि जिस तरह से पंचायती राज में और लोकल बॉडीज में 33% दिया है आपने आज की महिला का उत्पीड़न देखते हुए और सशक्तिकरण का नजरिया लेते हुए अगर आप देखें तो 33% राज्यसभा और लोकसभा और विधानसभा में भी बहुत ज़्यादा जरुरी है और सोनिया जी खुद बहुत चाहती हैं लेकिन हर पार्टी की सहमति बन जाए तो मैं सोचती हूं इस काम में देर नहीं होगी, क्योंकि चाहे राहुल जी हों, चाहे सोनिया जी हों वो महिलाओं की तरफ फोकस करना चाह रहे हैं कि महिलाओं को किस तरह से अपलिफ्ट किया जाए। तो मैं सोचती हूं कि महिलाओं को काफी टिकट दिए जाएंगे, पिछली बार भी दिए थे और मैं खुद चूंकि 6 साल महिला प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही हूं तो मेरे वक्त भी मैंने महिला कांग्रेस की महिलाओं को करीब 6 महिलाओं को टिकट दिलवाया था। हालांकि जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन जहां इच्छा होती है वहां काम भी बनता है, रास्ता भी निकलता है तो मैं इसमें ये कहूंगी कि सभी पार्टी को महिलाओं को टिकट जरुर देना चाहिए और एक बात और कहूंगी कि टिकट से पहले ऑर्गनाइजेशन में भी संगठन में भी 33 % महिलाओं को लेना चाहिए।
वासिन्द्र मिश्र: हमसे बात करने के लिए ममता जी बहुत-बहुत धन्यवाद!

Zee News App: पाएँ हिंदी में ताज़ा समाचार, देश-दुनिया की खबरें, फिल्म, बिज़नेस अपडेट्स, खेल की दुनिया की हलचल, देखें लाइव न्यूज़ और धर्म-कर्म से जुड़ी खबरें, आदि.अभी डाउनलोड करें ज़ी न्यूज़ ऐप.