ये लड़ाई तो दूर तलक जाएगी...

विकास पुरुष बनने का दावा करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजर रहे हैं। कभी कोर्ट की फटकार तो कभी तथाकथित जयकार के बीच पेंडुलम की तरह डोल जो रहे हैं।

प्रवीण कुमार

 

विकास पुरुष बनने का दावा करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजर रहे हैं। कभी कोर्ट की फटकार तो कभी तथाकथित जयकार के बीच पेंडुलम की तरह डोल जो रहे हैं। गुजरात हाईकोर्ट ने वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों के दौरान कार्रवाई नहीं करने और लापरवाही बरतने को लेकर बीते 8 फरवरी को मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाई।

 

इस्लामिक रिलीफ कमेटी ऑफ गुजरात (आईआरसीजी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि 2002 में गोधरा कांड के बाद राज्य सरकार की निष्क्रियता, अपर्याप्त इंतजाम और लापरवाहीपूर्ण रवैये के चलते राज्य भर में धार्मिक स्थलों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। आदेश में कोर्ट ने आगे कहा है कि धार्मिक स्थलों की मरम्मत कराने और मुआवजा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब सरकार घरों को हुए नुकसान के लिए मुआवजा देती है तो उसे धार्मिक स्थलों, इमारतों को हुए नुकसान के लिए भी मुआवजा देना चाहिए।

 

इससे पहले भी हाईकोर्ट ने लोकायुक्त गठन के मामले में मोदी सरकार को फटकार लगाई थी। हाईकोर्ट ने सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें सरकार ने लोकायुक्त की नियुक्ति को चुनौती दी थी। लेकिन गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी कांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट में मोदी सरकार को क्लीन चिट देने की खबर एक अंग्रेजी दैनिक ने छापी तो नरेंद्र मोदी की बांछें खिल गई हैं। तमाम समर्थक और भाजपा के बड़े-बड़े नेता नरेंद्र मोदी की जयकार कर रहे हैं। जयकारा लगाने वालों को ये नहीं मालूम कि एसआईटी को सिर्फ जांच करने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी है, क्लीन चिट देने के लिए नहीं। मोदी को क्लीन चिट मिलना चाहिए या नहीं, कोर्ट को तय करना है।

 

अभिमान का चादर ओढ़े मोदी फटकार और जयकार के बीच सरोकार के रास्ते को भूल रहे हैं। भूलें भी क्यों नहीं, जनता ने इतने जिद्दी व सिरफिरे नेता को सत्ता की चाबी जो सौंप रखी है। फिलहाल वह पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर दंगे के लिए प्रायश्चित भी कर रहे हैं। सद्भावना उपवास को मोदी ने अपना हथियार बनाया है। लेकिन क्या उनके प्रायश्चित करने से गुलबर्ग सोसायटी में दंगे की भेंट चढ़े एहसान जाफरी के रूप में जाकिया जाफरी को उनका पति मिल जाएगा। एसआईटी जांच पर गोधरा कांड के अहम गवाह संजीव भट्ट और एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी मोदी पर लगे इस दाग को इतनी आसानी से मिटने देंगे? ये बड़ा सवाल है। गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी बनाम दंगा पीड़ितों की लड़ाई दूर तलक जाएगी।

 

कौन है जाकिया जाफरी ?
28 फरवरी 2002 को गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में एहसान जाफरी सहित 37 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। एहसान जाफरी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद थे और जाकिया जाफरी के पति भी। कहते हैं कि जब दंगाइयों ने जब गुलबर्ग सोसायटी में हमला बोला तो एहसान सूबे के तमाम अफसरों और नेताओं से गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। इसके बाद शुरू हुई जाकिया जाफरी की इंसाफ की लंबी लड़ाई जिसमें न्याय मिलना अभी बाकी है। मानवाधिकार आयोग ने गुजरात पुलिस पर दंगे से जुड़ी जांच में लापरवाही बरतने के आरोप लगाए। 8 जून 2006 को जाकिया जाफरी ने अपने पति की हत्या के खिलाफ तत्कालीन डीजीपी को खत लिखा। जाकिया ने हाईकोर्ट में भी ये अर्जी दी कि नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएं। लेकिन नवंबर 2007 में हाईकोर्ट ने जाकिया की अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद जाकिया ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

 

मार्च 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्ग केस समेत 8 केस की जांच के लिए विशेष टीम बनाई। 27 अप्रैल 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को उन 63 लोगों की जांच के आदेश दिए, जिनके खिलाफ जाकिया ने एफआईआर दर्ज करने की अपील की थी। 4 नवंबर 2009 को गुलबर्ग सोसायटी केस में पहला चश्मदीद कोर्ट के सामने पेश हुआ। उसने बताया कि एहसान जाफरी ने मोदी समेत कई लोगों को मदद के लिए फोन किए थे। 27 मार्च 2010 को एसआईटी ने नरेंद्र मोदी से घंटों पूछताछ की और इसके बाद 25 अप्रैल 2011 को एसआईटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंप दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमाइकस क्यूरी की रिपोर्ट सुनने के बाद ही फैसला सुनाया जाएगा। जाकिया जाफरी फिलहाल सूरत में अपने बड़े बेटे के साथ रह रही हैं जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है।

 

संजीव भट्ट से लगता है डर
इस निलंबित आईपीएस अफसर से गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार को डर लगता है। डर इसलिए, क्योंकि यह अफसर ऐसे राज जानता है जिनका पर्दाफाश अगर हो गया तो मोदी गुजरात दंगों की आग में झुलस जाएंगे। अगर इस अफसर के दावे सही हैं तो यह साबित हो जाएगा कि गुजरात दंगों के पीछे दरअसल मोदी का दिमाग काम कर रहा था। आखिर इस अफसर ने सीधे सुप्रीम कोर्ट से गुहार क्यों लगाई, आखिर क्यों आईपीएस संजीव भट्ट को दंगों की जांच कर रही विशेष जांच दल (एसआईटी) पर रत्ती भर भरोसा नहीं है।

 

संजीव भट्ट को यह लगता है कि उन्होंने दंगों से जुड़े़ जो भी राज या जानकारियां एसआईटी को दीं उन्हें एसआईटी ने लीक कर दिया। वे एसआईटी से कहते रहे कि उनके पास नरेंद्र मोदी की भूमिका से जुड़ी जानकारियां हैं, लेकिन उन्हें लगातार बोला जाता रहा कि वे सिर्फ गुलबर्ग सोसायटी से जुड़ी जानकारियां ही दें। तेज-तर्रार आईपीएस अफसर संजीव भट्ट ने अपने हलफनामे में साफ लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट दंगों में सरकारी तंत्र की भूमिका को लेकर निष्पक्ष और पूरी जांच के लिए एसआईटी पर भरोसा करता है, लेकिन एसआईटी इस भरोसे पर खरी नहीं उतर रही है।

 

भट्ट ने लिखा है, '27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी एस-6 को जलाए जाने और उसके बाद भड़के दंगों की साजिश और सरकारी भूमिका से जुड़ी जानकारियां और सबूत मैंने एसआईटी को दिए। सबूतों के तौर पर 26 और 27 फरवरी 2002 को गोधरा में कॉल डीटेल्स की मूल फ्लॉपी, मोबाइल फोन की लोकेशन, सरकार के ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों के 27 और 28 फरवरी को किए गए फोन कॉल्स के ओरिजिनल प्रिंटआउट भी दी। मैंने लगातार एसआईटी को ये सबूत दिए, लेकिन एसआईटी उन्हें लेकर गंभीर नजर नहीं आई, वे आगे की तहकीकात करने से बचती रही।'

 

साफ है संजीव भट्ट उस एसआईटी की ईमानदारी पर सवाल खड़े कर रहा है, जो खुद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम कर रही है। भट्ट का कहना है कि एसआईटी में कुछ लोग मोदी सरकार से हाथ मिला चुके हैं, उनका यह शक उस वक्त पक्का हुआ जब नवंबर 2009 में उन्हें एसआईटी ने बयान देने के लिए बुला भेजा। भट्ट कहते हैं, 'एसआईटी ने मुझे नवंबर 2009 में बयान देने के लिए बुलाया, मैंने यह जानकारी गुप्त रखी, लेकिन राज्य सरकार के एक बड़े अधिकारी ने मुझसे संपर्क कर यह कहा कि एसआईटी में बयान देने से पहले जैसा कहा जाए मैं वैसा ही करूं। इस बारे में मैंने एसआईटी के सदस्य ए.के. मलहोत्रा को तत्काल जानकारी दी थी, इसके बावजूद कई घटनाएं ऐसी हुईं, जिससे मुझे अहसास हुआ कि मैं जो कुछ भी एसआईटी को बता रहा हूं वह तत्काल लीक कर दिया जा रहा है। हद तो तब हो गई जब मैंने एसआईटी को कहा कि वे मेरे बयान की तस्दीक कुछ गवाहों के हवाले से करवा सकते हैं और ऐसे ही राज्य खुफिया के अधिकारी के.डी. पंत का नाम भी एसआईटी को मैंने दिया। पंत ने मुझे बताया कि एसआईटी के लोगों ने उसे गिरफ्तारी और गंभीर परिणाम झेलने की धमकी भी दी। ऐसा लगता है कि इसी तरह की धमकी दूसरे गवाहों को भी दी गई होगी। आज भी गुजरात में हालात ऐसे हैं कि कोई गवाह राज्य सरकार के डर के कारण खुलकर सामने नहीं आ सकता है।'

 

तहलका पत्रिका की 12 फरवरी 2011 की एक रिपोर्ट के मानें तो एसआईटी ने अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दंगे को लेकर 'महत्वपूर्ण रेकार्ड को नष्ट करने,' 'साम्प्रदायिक मानसिकता' को उजागर करने, 'भडकाऊ भाषण देने, अदालतों में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर संघ कार्यकर्ताओं को तैनात करने, पुलिस कन्ट्रोल रूम में अपने करीबी मंत्रियों को जनसंहार के दिनों में तैनात करने, 'तटस्थ अधिकारियों को दण्डित करने' आदि तमाम कामों के लिए जिम्मेदार माना है। अब उसी एसआईटी की रिपोर्ट में यदि नरेंद्र मोदी को बेदाग बताया जाता है तो फिर इसका फैसला देश की सर्वोच्च अदालत पर ही छोड़ना होगा।

 

बहरहाल, इतना तो तय है कि गोधरा कांड नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ। दंगे के दौरान कई जगहों पर नरसंहार हुआ। दंगे को रोकने के लिए अगर प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो निश्चित रूप से इसकी जिम्मेदारी मोदी सरकार को लेनी चाहिए। लोग कहते हैं कि नरेंद्र मोदी विकास पुरुष हैं। गुजरात को विकास मॉडल दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है सो ऐसे महान व्यक्तित्व पर इस तरह के लांछन नहीं लगाए जाने चाहिए। हां, मैं भी मानता हूं कि मोदी का विकास मॉडल काबिलेतारीफ है। लेकिन आप ये क्यों भूल रहे हैं कि विकास करना नरेंद्र मोदी का जनता के प्रति परम कर्तव्य बनता है। जनप्रतिनिधि को जनता चुनकर भेजती ही इसीलिए है। लेकिन आप विकास पुरुष बन गए तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि आपको जनसंहार करने की छूट मिल गई। नरेंद्र मोदी को गोधरा कांड की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी और उन पीड़ित परिवारों से माफी मांगनी होगी जिनका घर परिवार जनसंहार की भेंट चढ़ गया था। मोदी अगर ऐसा नहीं करते हैं तो ये लड़ाई दूर तलक जाएगी।

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