विकास जाल में फंसती कांग्रेस
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विकास जाल में फंसती कांग्रेस

संप्रग सरकार और खासकर कांग्रेस पार्टी ने विकास की जो प्रक्रिया प्रारंभ की उसमें किसी हद तक कामयाबी भी मिली, लेकिन उस प्रक्रिया में अंतर्निहित कठिनाईयों का शायद वैसा पूर्वानुमान उसे पहले कभी नहीं था। जिस रूप में कठिनाईयां सामने आ रही हैं और उनसे लाभ पाने की उम्मीद वाले लोग जिस तरह से उन्हें उछाल रहे हैं वह खासकर कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में है।

कृष्ण किशोर पाण्डेय

 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार और खासकर कांग्रेस पार्टी ने विकास की जो प्रक्रिया प्रारंभ की उसमें किसी हद तक कामयाबी भी मिली, लेकिन उस प्रक्रिया में अंतर्निहित कठिनाईयों का शायद वैसा पूर्वानुमान उसे पहले कभी नहीं था। जिस रूप में कठिनाईयां सामने आ रही हैं और उनसे लाभ पाने की उम्मीद वाले लोग जिस तरह से उन्हें उछाल रहे हैं वह खासकर कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में है। कांग्रेस के सामने उन कठिनाईयों का सफलतापूर्वक सामना करके जनता में अपनी साख मजबूत करने का अवसर भी है तो दूसरी ओर असफलता की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। अगर यह गठबंधन जो आंतरिक अशांति का भी शिकार हो चुका है, धैर्य, संयम और बुद्धिमानी से समस्याओं को समझे और उन्हें हल करने की दिशा में गंभीर प्रयास करे तो कठिनाईयों पर काबू पाना असंभव नहीं है।

 

इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले 13 वर्षों में इस गठबंधन की सरकार ने ऐसी उपलब्धियां हासिल की है कि इनके आलोचक एक साथ इकट्ठा होकर शोर मचाएं तब भी उनपर पर्दा नहीं डाल सकती। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से संप्रग-2 की सरकार की प्रारंभिक उपलब्धियां शानदार रही हैं। फिर भी किसी भी सरकार को अपनी जनता के मनोविज्ञान को समझे बगैर आगे बढ़ना बुद्धिमानी का काम नहीं होता। विकास की जरूरत सबको है। अब तो हर राजनीतिक दल विकास का नारा लेकर ही मैदान में उतर रही है। लेकिन विकास का रूप क्या हो इसके बारे में सबकी राय एक सी नहीं है। कोई भी कदम उठाया जाता है तो उसके दोनों पक्षों के कुछ लोगों को विकास दिखता है और उससे भविष्य के प्रति आशा भी उपजती है। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उस पूरी प्रक्रिया के अंधकारपूर्ण पक्ष को ही देखते हैं और उसे उजागर करने की चेष्टा करते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को देखते हुए जब विकास दर 8 से 9 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त करने की सक्षमता दिखाने लगी तो देश के अंदर ही नहीं, बाहर के भी निष्पक्ष रूप से सोचने वाले लोग यह मानने लगे कि भारत शीघ्र ही एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरने जा रहा है। चीन की विकास दर भारत से अधिक रही लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वहां एक कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार है जबकि भारत में तमाम लोकतांत्रिक मर्यादाओं की रक्षा करते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ना है। आर्थिक विकास दर ही नहीं, पिछले कुछ वर्षों में हर क्षेत्र में तरक्की हुई है। सड़कों का जाल बिछा, अधिक से अधिक ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने में सफलता मिली, पेयजल की कमी को पूरा करने की दिशा में भी कदम उठाए गए, सूचना क्रांति, संचार क्रांति, शिक्षा का अधिकार, स्कूली बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की व्यवस्था, पंचायती राज का सशक्तिकरण, महिलाओं को आगे बढ़ाने का अवसर जैसे अनेक काम ऐसे हुए जिससे समाज के हर वर्ग में एक स्फूर्ति पैदा की। विकास दर जब आगे बढ़ी, निर्यात के क्षेत्र में भी प्रगति हुई, औद्योगिक उत्पादन संतोषजनक रूप से आगे बढ़ा, अनाज की पैदावार भी बढ़ी। हालांकि कृषि क्षेत्र में अभी और भी सुधार की गुंजाइश है।

 

आज भारत को सामरिक क्षेत्र में भी एक ताकतवर देश के रूप में देखा जा रहा है। अग्नि-5 प्रक्षेपास्त्र के सफल परीक्षण के बाद यह दावा किया जा रहा है कि भारत 5000 किमी. तक मार करने की क्षमता हासिल कर चुका है। चीन का तो कहना है कि इसकी वास्तविक मारक क्षमता 8000 किमी. है। अंतरिक्ष अनुसंधान से लेकर विज्ञान और तकनीकी के विकास में भी सफलता हासिल हुई है। जहां तक विदेश नीति का सवाल है, इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ, जो आजादी के बाद से सिर्फ भारत को नुकसान पहुंचाने में लगे रहे, संबंध सामान्य बनाने में सफलता हासिल की है। जो पाकिस्तान भारत से हजार साल तक लड़ने के लिए ताल ठोंकता था, वही अब किसी तरह के टकराव को नुकसानदेह बता रहा है। यहां तक कि चीन भी भारत के साथ सीमा विवाद के बावजूद विभिन्न स्तरों पर संबंध मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ प्रसार की दृष्टि से ही नहीं बल्कि गुणवत्ता की दृष्टि से भी सुधार हुआ है। तकनीकी शिक्षा और प्रबंधन के क्षेत्र में अधिक से अधिक लोगों को अवसर सुलभ कराने का प्रयास किया है। अभी हाल में ब्राजील, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका जैसे मजबूती की ओर बढ़ रहे देशों के साथ भारत ने जो एकजुटता दिखाई उसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव देखने को भी मिला। संक्षेप में यह कहना पर्याप्त होगा कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने, उनकी आर्थिक और सामाजिक उन्नति सुनिश्चित करने तथा युवकों और महिलाओं को आगे बढ़ाने का उद्देश्य लेकर यह सरकार अनेक कठिनाईयों के बावजूद निरंतर आगे बढ़ रही है।

 

इसके बावजूद विकास के कारण जो कठिनाईयां पैदा हुई हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। जाहिर है कि आर्थिक विकास के लिए ज्यादा से ज्यादा पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। सरकार भी और निजी क्षेत्र भी अधिक पूंजी निवेश करते हैं तो उससे विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन वृद्धि का रास्ता खुलता है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाता है। आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है, परंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विकास के इस मॉडल की अपनी खामियां भी हैं। इसमें भ्रष्टाचार बढ़ने और महंगाई बढ़ने के खतरे मौजूद रहते हैं। कोई भी कारगर हथियार, मशीन या टेक्नोलॉजी ऐसी नहीं होती जिसके अपने खतरे न हों। जरूरत यह होती है कि सावधानी से उनका इस्तेमाल किया जाए ताकि खतरों को यथासंभव कम किया जाए। मनमोहन सिंह की मौजूदा सरकार पर सबसे बड़ा आरोप भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ाने का है। भ्रष्टाचार कोई भी करता हो, लेकिन जो पार्टी सरकार चलाती है उसको इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। कम से कम सरकार चलाने वाली पार्टी इस आरोप से नहीं बच सकती कि जिस तरह से सतर्कता और सावधानी की आवश्यकता थी वैसी नहीं देखी गई। यह ठीक है कि सरकार गठबंधन की है और उसमें अनेक दल शामिल हैं लेकिन कोई भी घटक दल यदि अपने फायदे के लिए गलत तरीके इस्तेमाल करता है तो पूरी सरकार बदनाम होती है और जो पार्टी सबसे बड़ी है उसको ज्यादा ही नुकसान उठाना पड़ता है। हालांकि यह सही है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने उन सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जिनके खिलाफ घोटालों के आरोप थे। बड़े स्तर की बात छोड़िए, गांव के स्तर तक जहां पंचायती राज से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह नौकरशाही और पुलिस तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को रोकेगा, दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ही दिखाई दे रही है। जिस किसी के हाथ में छोटा सा अधिकार भी दिया जाता है वही व्यक्तिगत फायदा उठाने की कोशिश में लग जाता है। यह नैतिकता का ह्रास क्यों हुआ, कैसे हुआ और इन सबके लिए सरकार या कोई पार्टी किस हद तक जिम्मेदार है इसके बारे में तो समाजशास्त्री ही छानबीन कर सकते हैं। परंतु सरकार एक ऐसी संस्था है जो अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। सरकार को सोचना होगा कि ऐसे कौन से तरीके अपनाएं जाएं जिनसे भ्रष्टाचार पर पूरी तरह नहीं तो प्रभावी तरीके से अंकुश लगाया जा सके।

 

कांग्रेस नीत संप्रग सरकार पर भ्रष्टाचार को न रोक पाने का ही आरोप नहीं है बल्कि लगातार बढ़ रही महंगाई को न रोक पाने का भी आरोप है। महंगाई क्यों बढ़ रही है और इसे सरकार क्यों नहीं रोक पा रही है इसकी बारीकियों को तो अर्थशास्त्री ही अच्छी तरह से समझ और समझा सकते हैं परंतु आम जनता तो यह देख रही है कि आमदनी में वृद्धि होने का कोई सुख उसे नहीं मिल रहा। महंगाई उस सुख को पहले ही लूट लेती है। कांग्रेस विरोधी दल इन सबके लिए सीधे-सीधे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हैं। राजनीतिक दलों में लोकलुभावन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने की होड़ मची है ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा वोट मिले। राज्य सरकारें भी लोकलुभावन कार्यक्रमों के लागू करने में खुलकर मौके का फायदा उठा रहीं है। जब उन्हें यह दिखता है कि राज्य के खजाने में पैसा कम है तो केंद्र सरकार पर विशेष पैकेज देने का दबाव डाला जाता है। केंद्र सरकार पर एक तरफ से यह दबाव पड़ रहा है कि आर्थिक सुधार तेजी से लागू किए जाएं तो दूसरी तरफ यह कहा जा रहा है कि भुगतान संतुलन की स्थिति बिगड़ रही है, वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण नहीं है और विकास दर चालू वित्त वर्ष में 5.50 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा सकती है तो सवाल यह उठता है कि आखिर कौन सा रास्ता सही है? विभिन्न वस्तुओं पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी अगर कम की जाए तो जनता पर बोझ बढ़ेगा, राजस्व बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ाए जाएं और वर्तमान टैक्सों की वसूली में सख्ती दिखाई जाए तब भी उन सबका बोझ आम जनता पर ही आ जाता है।

 

जाहिर है कि कांग्रेस विरोधी दल इन कठिनाईयों को कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी कठिन परिस्थिति में कांग्रेस नीत सरकार की उपलब्धियों पर भी लोगों का ध्यान अक्सर नहीं जाता। कांग्रेस विरोधी तमाम ताकतें इस वक्त हरसंभव कोशिश में हैं कि मीडिया में इस पार्टी को इतना बदनाम कर दिया जाए कि लोग इसकी तमाम उपलब्धि को भूल जाएं। संप्रग गठबंधन में शामिल कुछ दल भी कांग्रेस को संकट में डालने से परहेज नहीं कर रहे। हालांकि यह सब दबाव की राजनीति है फिर भी कांग्रेस को दुविधा से मुक्त होकर दृढ़तापूर्वक ऐसे कदम जरूर उठाने चाहिए जिनसे आम जनता महंगाई से राहत महसूस करे। दुर्भाग्यवश ठेकेदारों और बिचौलियों का एक ऐसा वर्ग बन गया है जो आम जनता को मिलने वाले फायदे का एक बड़ा हिस्सा हड़प लेता है। हालत यह हो रही है कि मनमोहन सिंह की सरकार जनता की भलाई के उद्देश्य को सामने रखकर जो कार्यक्रम शुरू कर रही है उसका पूरा लाभ आम जनता को नहीं मिल रहा है। इसलिए इस सरकार और इसकी सबसे बड़ी पार्टी के लिए यह चुनौती की घड़ी है। विकास का जो सिलसिला शुरू हुआ हो उसे आगे ले जाना तो जरूरी है, परंतु इसमें समझदारी नहीं कि उस प्रक्रिया को लागू करने में जो कठिनाईयां आ रही हैं उनके सामने घुटने टेक दिए जाएं। यह परीक्षा की घड़ी है और लोग यह देखना चाहेंगे कि सोनिया गांधी की पार्टी और मनमोहन सिंह की सरकार इससे कैसे निपटती है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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