'निराशा का माहौल बदलिए,जोशो-खरोश को फिर से जगाइए'

वित्त मंत्रालय का कार्यभार अपने हाथ में लेने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था को गति देने की कवायद शुरू की और आर्थिक मोर्चे पर निराशा के वातावरण को छांटने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए।

नई दिल्ली: वित्त मंत्रालय का कार्यभार अपने हाथ में लेने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था को गति देने की कवायद शुरू की और आर्थिक मोर्चे पर निराशा के वातावरण को छांटने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए।
कई उच्च स्तरीय बैठकों में देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति का जायजा लेते हुए उन्होंने यहां कर मुद्दों, बीमा क्षेत्र में नरमी और म्यूचुअल फंडों से जुड़े पहलुओं को समस्या वाले क्षेत्रों के रूप में पहचान की और त्वरित गति से सुधार के कदम उठाने पर जोर दिया।
इन बैठकों में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी. रंगराजन और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री आज रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव और योजना आयोग के सदस्यों से मिलेंगे और अर्थव्यवस्था से जुड़े मामलों की समीक्षा करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘वह लंबे समय से वित्त के मामलों एवं महत्वपूर्ण पहलुओं से दूर रहे हैं।’’ प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को बताया कि कई ऐसे कारक रहे हैं जिन्होंने देश में आम लोगों के बीच नकारात्मक धारणा पैदा करने में योगदान किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमें अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम करने और भारत की तेजी से आर्थिक वृद्धि दर को फिर से दोहराने की जरूरत है।’ प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को बताया, ‘‘निराशा का माहौल बदलिए, देश की अर्थव्यवस्था के स्वाभाविक जोशो-खरोश को फिर से जगाइये। भले ही भारत आर्थिक तौर पर चुनौती भरे दौर से गुजर रहा है।’
प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि आर्थिक वृद्धि दर गिरी है, औद्योगिक उत्पादन संतोषजनक नहीं है और निवेश मोर्चे पर चीजें सुखद नहीं है, जबकि मुद्रास्फीति एक समस्या बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘हमें तत्काल तौर पर भुगतान संतुलन का ख्याल करना है जिसके लिए सभी नीतियां ऐसी हों कि देश में संस्थागत पूंजी का प्रवाह बढ़े। अल्पकाल में, हमें घरेलू और वैश्विक दोनों तरह के निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने की जरूरत है।’
इस बैठक में राजकोषीय एवं चालू खाता घाटा नियंत्रित करने पर चर्चा की गई। वर्ष 2011-12 में राजकोषीय घाटा 5.76 प्रतिशत था, जबकि चालू खाता घाटा 4 प्रतिशत रहा जो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अधिक है।
सिंह ने वित्त प्रभार ऐसे समय में अपने हाथ में लिया है जब आर्थिक वृद्धि दर 2011-12 की अंतिम तिमाही में घटकर नौ साल के निचले स्तर 5.3 प्रतिशत पर आ गई है।
उल्लेखनीय है कि देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक के साथ समन्वय स्थापित कर सोमवार को कई उपायों की घोषणा की। हालांकि, शेयर बाजार पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा। इन उपायों की घोषणा, प्रणव मुखर्जी द्वारा वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दिए जाने के एक दिन पहले की गई। (एजेंसी)

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