[caption id="attachment_2977" align="alignnone" width="220" caption="अभिनेता शम्मी कपूर"][/caption]
हिन्दी सिनेमा जगत में 1950-60 दशक के सदाबहार अभिनेता शम्मी कपूर नहीं रहे. अपनी खास शैली से इस दौरान हिंदी सिनेमा के अभिनेताओं की छवि बदल देने वाले इस बेहतरीन अभिनेता की लम्बी बीमारी के बाद 79 वर्ष की उम्र में रविवार को निधन हो गया.
फिल्म 'जंगली' के एक गाने में 'याहू..' कहने के अपने खास अंदाज से उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी विशेष जगह बना ली. यह गाना आज भी युवाओं के सर चढ़कर बोलता है.
बॉलीवुड में बनाई अलग पहचान
बॉलीवुड के बहुचर्चित कपूर खानदान के सदस्य शम्मी कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर पहले ही हिन्दी सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ चुके थे. बड़े भाई राज कपूर ने भी अपनी एक खास पहचान बना ली थी. इन सबके बीच स्थान बनाना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन हिन्दी सिनेमा जगत में शम्मी कपूर ने न केवल अपनी जगह बनाई, बल्कि अपनी विशिष्ट पहचान भी विकसित की.
पहली फिल्म जीवन ज्योति
घरवालों ने उन्हें शमशेर राज कपूर नाम दिया था. उनकी पहली फिल्म 'जीवन ज्योति' (1953) थी. तब फिल्म जगत में राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार की तिकड़ी का बोलबाला था. उन्होंने जल्द ही समझ लिया था कि फिल्म जगत में अपनी जगह बनानी है तो इनसे अलग शैली भी विकसित करनी पड़ेगी.
पर्दे पर रुमानी अदाकार
रूपहले पर्दे पर उनकी छवि नृत्य की एक खास शैली वाले बेफिक्र और रूमानी प्रेमी की रही. 1961 में 'जंगली' से पहले वह 'तुमसा नहीं देखा' और 'दिल देके देखो' जैसी सदाबहार फिल्में दे चुके थे. उनकी कामयाबी की सूची में 'कश्मीर की कली', 'प्रोफेसर', 'एन इविनिंग इन पेरिस', 'तीसरी मंजिल', ब्रह्मचारी, 'राजकुमार' जैसी फिल्मों के नाम भी जुड़ते गए.
गाने और डांस फिल्मों के खास आकर्षण
गाने और नृत्य शैली उनकी फिल्मों का खास आकर्षण थे. उनकी ज्यादातर फिल्मों में मोहम्मद रफी ने उनके लिए गीत गाए. फिल्म 'तीसरी कसम' में आशा पारेख के साथ 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा', 'ब्रह्मचारी' में मुमताज के साथ 'आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे' और 'एन इविनिंग इन पेरिस' में शर्मिला टैगोर के साथ 'आसमान से आया फरिश्ता' में उनके ठुमकों को हमेशा याद किया जाएगा. नृत्य की अपनी खास शैली उनकी विशेषता थी और कई बार नृत्य निर्देशक इसका फैसला उन पर ही छोड़ देते थे कि वे कैसे नृत्य करना चाहेंगे.