सरकार! महंगाई पर ये कैसी मेहरबानी?

मोदी सरकार का पहला बजट बड़े बदलाव की उम्मीद पर खरा नहीं उतरा। आम लोगों की पहली और अंतिम चिंता सिर्फ महंगाई है, लेकिन इसको लेकर कोई भी ठोस कार्ययोजना मोदी सरकार के पहले बजट में सामने नहीं आई। हां, महंगाई से निपटने के लिए 500 करोड़ का एक फंड जरूर विकसित किया गया है, लेकिन इसका कोई रोडमैप नहीं बताया गया है। बजट यह भाव तो दर्शाता है कि कीमतों पर काबू पाया जाएगा पर व्यावहारिक स्तर पर वित्तीय मजबूती का उतना भरोसा नहीं मिलता। निवेशकों को आकर्षित करने को ही मोदी सरकार ने सभी तरह की बीमारियों की एक दवा मान लिया है। सरकार बनते ही जमाखोर इतने सक्रिय हो गए हैं कि आलू, प्याज और टमाटर ने आम आदमी को अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और लोग यह कहने से परहेज नहीं कर रहे कि 'अच्छे दिन' के जाल में हम बुरे फंसे हैं।

दरअसल महंगाई आम जनता के लिए सबसे बड़ा मुद्दा होता है और यह तब तक नहीं सुलझ सकता जब तक कि आमदनी और खर्च के बीच की जो खाई है, जो असंतुलन है उसको पाट नहीं दिया जाता। बजट इस बात का ब्ल्यू प्रिंट होता है कि सरकार कैसे पैसा कमाएगी और कैसे यह पैसा खर्च करेगी। आंकड़ों में अगर बात करें तो केंद्र सरकार एक साल में करीब 12 से 13 लाख करोड़ रुपए कमाती है। अब आपको तय करना होगा कि हमें खर्च 12-13 करोड़ ही करना है, कुछ कम खर्च करके बुरे दिनों के लिए बचत करना है या फिर अधिक खर्च कर महंगाई समेत तमाम समस्याओं को जस का तस बने रहने देना है। क्योंकि अगर आप कमाई से अधिक खर्च करेंगे तो एक तो करेंसी की प्रिंटिंग करनी पड़ेगी या फिर कर्ज लेने पड़ेंगे। नई करेंसी बाजार में लाने पर मुद्रास्फीति बढ़ेगी जिससे महंगाई बढ़ेगी और दूसरा अगर कर्ज लेते हैं तो उसके ब्याज का भार देश को सहना पड़ेगा जिसका दुष्परिणाम महंगाई के रूप में ही सामने आएगा।

गौर करें तो नई सरकार के सामने पहले बजट में मूल रूप से तीन समस्याओं से पार पाना था। कीमतों को काबू में रखना, मुद्रा विनिमय की दर को अनुकूल रखना और आर्थिक वृद्धि की राह पर आगे बढ़ना। अगर महंगाई की बात करें तो यह मूल रूप से खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में समाहित है। दुनिया में कहीं भी कृषि दर 10 फीसदी की दर से नहीं बढ़ती। यदि हम छह फीसदी की रफ्तार से पैदावार बढ़ाते हैं तो मुश्किलात बनी रहेंगी। आप जितना इसपर ध्यान देंगे, खाद्यान्नों में महंगाई के मामले में लंबी अवधि की स्थिरता को लेकर आपकी स्थिति उतनी बेहतर होगी। दूसरी बात यह समझना जरूरी होगा कि ऊर्जा का संबंध भी महंगाई से है। बजट में कोयला महंगा किया गया है। कोयला महंगा करने का मतलब सीधे-सीधे महंगाई बढ़ने से है। बिजली महंगी हो जाएगी, रेल यात्री किराया और रेलवे मालभाड़ा बढ़ जाएगा।

बजट में कुछ ऐसे मदों पर धन आवंटित किये गए हैं जिससे बचा जा सकता था। मसलन सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए 200 करोड़ दिया जाना। हफ्ता 10 दिन पहले यानी 2 जुलाई को गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने भी अपने पहले बजट में 500 करोड़ का प्रावधान इस मद में किया है। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में भी 200 करो़ड़ रुपये इस मद दिए जा चुके हैं। अब यह मूर्ति केंद्र राज्य सहयोग से बनकर तैयार होगी, जबकि नरेंद्र मोदी ने इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से पूरा करने की बात कहते आ रहे थे। इस तरह से ऐसे कई मदों में कई सौ करोड़ रुपए का वारा-न्यारा किया गया है।

बहरहाल, 50 दिन पुरानी सरकार बहुत बचकर काम कर रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार तुरंत में किसी तरह का जोखिम लेने से बच रही है। इस साल के अंत में चार राज्यों महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव को ध्यान में रखते हुए लोगों को जो कड़वे घूंट (सब्सिडी खत्म करने की तैयारी) पिलाने की तैयारी थी उसे चुनाव तक टाल दिया गया है, लेकिन बजट का ढांचा कुछ इस तरह से बनाया गया है कि वित्त वर्ष के बीच में जब चाहें रेल किराया बढ़ा दें, माल भाड़ा बढ़ा दें, रसोई गैस सिलेंडर की कीमत बढ़ा दें। आम आदमी को इसका बोझ सहना ही पड़ेगा। आलू, प्याज और टमाटर जमाखोरों की गिरफ्त में है। जमाखोरों पर सरकार की पैनी नजर है। जरूरत पड़ने पर सरकारी तंत्र इसपर नकेल कसकर आम आदमी को राहत दे सकती है लेकिन इसका टाइमलाइन सरकार अपने हिसाब से ही तय करेगी।

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