नई दिल्ली : भारत का सबसे बड़ा विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य अपने सभी परीक्षण पूरे करने के बाद आज भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो गया है। गोवा के तट पर अरब सागर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पल के गवाह बने। 14 हजार करोड़ की लागत से बना आईएनएस विक्रमादित्य मूल रूप से सोवियत नाम एडमिनर गोर्शकोव था।
भारत और रूस के बीच इस विमान वाहक पोत के लिए साल 2004 में समझौता हुआ था। हालांकि आईएनएस विक्रमादित्य के 2008 में ही भारत को सौंपने की संभावना थी, लेकिन बाद में डिलिवरी का समय बदलकर 2012 कर दिया गया, लेकिन इसके ब्वॉयल में आई तकनीकी खामी की वजह से इसे 2014 में सौंपा गया है।
8 दिसंबर 2009 को खबर आयी कि 2.2 बिलियन डॉलर पर सहमति के साथ गोर्शकोव की कीमत पर भारत और रूस के बीच का गतिरोध समाप्त हो गया है। मॉस्को ने विमान वाहक के लिए 2.9 बिलियन डॉलर की मांग की थी, जो 2004 में दोनों पक्षों के बीच हुई मूल सहमति से लगभग तीन गुना अधिक थी। दूसरी ओर नई दिल्ली चाहती थी कि कीमत 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जाय। तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री पुतिन की भारत यात्रा के एक दिन पहले दोनों सरकारों ने एडमिरल गोर्शकोव की कीमत को अंतिम रूप देते हुए 2.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तय किया।
आईएनएस विक्रमादित्य की क्या है खूबियां
भारतीय नौसेना पोत विक्रमादित्य या आईएनएस विक्रमादित्य भारतीय नौसेना का एक युद्धपोत है। यह भारतीय नौसेना पोत विराट के बाद दूसरा वायुयान वाहक पोत है। विक्रमादित्य 45300 टन भार वाला, 284 मीटर लम्बा और 60 मीटर ऊंचा युद्धपोत है।
- रूस से 2.3 अरब डॉलर यानी करीब करीब 14 हजार करोड़ में खरीदा गया है आईएनएस विक्रमादित्य।
- रूस से खरीदे जाने से पहले यह सोवियत संघ और रूसी फेडेरशन की नौसेनाओं में 'बाकू' और 'एडमिरल गोर्शकोव' के नामों से अपनी सेवा दे चुका है। सोवियत नौसेना में यह 1987 में शामिल किया गया था और उसे 1996 में सेवा से हटा लिया गया, क्योंकि उसका खर्च सोवियत संघ के विघटन के बाद बहुत अधिक माना गया।
- करीब 284 मीटर लंबा यह युद्धपोत इतना चौड़ा है कि फुटबॉल के तीन मैदान बनाए जा सकते हैं।
- आईएनएस विक्रमादित्य की लंबाई 284 मीटर है। करीब 20 मंजिला ऊंचे इस एयरक्राफ्ट करियर में कुल 22 डेक हैं। इस पर 1600 से ज्यादा कर्मी तैनात रहते हैं और इस तरह यह एक तैरता हुआ शहर जैसा है।
- इस युद्धपोत पर तैनात 30 युद्धक विमान और छह पनडुब्बी-नाशक व टोही हेलिकॉप्टर लगभग 500 किलोमीटर का सुरक्षा कवच तैयार करते हैं।
- इस पर हर महीने करीब एक लाख अंडों, 20000 लीटर दूध तथा 16 टन चावल की खपत हो जाती है।
- कपड़े धोने की मशीनों से लेकर चपाती और इडली मेकर तक सारी सुविधाएं मौजूद हैं। यह आर्कटिक जैसे बर्फीले इलाके में भी सक्रिय रह सकेगा।
- एक बार समुद्र में जाने के बाद यह 45 दिनों तक बिना किसी जरूरत के पानी के अंदर चहलकदमी कर सकता है।
- बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए 18 मेगावॉट बिजली की सप्लाई करने वाले जेनरेटर हैं। समुद्र के पानी को साफ कर प्रतिदिन 400 टन पीने लायक पानी बनाने वाला आस्मोसिस प्लांट भी इसमें लगा है।