संजीव कुमार दुबे
नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के 100 दिन पूरे हो रहे हैं। मोदी सरकार ने अपने इस कार्यकाल के दौरान विदेश नीति पर खूब ध्यान दिया और इस बात की पूरी कोशिश की कि हर छोटे-बड़े मुल्क से उसके रिश्ते बेहतर हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की शुरूआत एक नए कूटनीतिक अंदाज से हुई। उन्होंने एक नई पहल की जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार हुआ। उनके शपथग्रहण समारोह में सार्क देशों और मारीशस के शासनाध्यक्ष शामिल हुए। सबसे ज्यादा ध्यान खींचा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने। इसे संबंधों के एक नए युग की शुरुआत का संकेत माना गया।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मोदी के न्यौते पर भारत आना पड़ा। हालांकि नवाज की भारत यात्रा का कोई कूटनीतिक लाभ तो नहीं हुआ लेकिन ऐसा कर मोदी सरकार ने वार्ता की गेंद पाकिस्तान के पाले में डाल दी। ऐसा लगने लगा कि भारत पाक की सचिव वार्ता से दोनों देशों के रिश्ते को मजबूती मिल सकती है। लेकिन दिल्ली के पाकिस्तानी उच्चायोग में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को बुलाए जाने पर विरोध जताते हुए विदेश सचिव स्तर की प्रस्तावित वार्ता को रद्द कर दिया। भारत के मुताबिक ये उसके अंदरूनी मामलों में साफ दखल है। पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए ये नई लक्ष्मण रेखा शासन के शीर्ष से खींची गई। पाकिस्तान के साथ रिश्तों की गाड़ी पटरी पर आने से पहले ही उतर गई। सरहद पर जारी गोलेबारी में तमाम उम्मीदें खाक हो गई हैं। बाहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने साफ किया है कि विदेश नीति में पड़ोसियों को प्राथमिकता दी जाएगी। हालांकि मोदी ने यह जरूर कह दिया कि हम पाकिस्तान से निराश हुए क्योंकि उसने बातचीत का मजाक बनाया। उन्होंने यह भी संदेश दिया कि वह पाकिस्तान से साथ बेहतर रिश्ते चाहते हैं।
पाकिस्तान भारत के साथ रिश्तों को बेहतर करने पर कभी गंभीर नहीं रहा लेकिन मोदी ने नेपाल जैसे छोटे मुल्क के साथ भी रिश्ते बेहतर करने के लिए गंभीरता बरती। बीते 17 साल में नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो द्विपक्षीय वार्ता के लिए काठमांडू गए। नेपाल की संसद में उनके भाषण को गौर से सुना गया। बतौर पीएम मोदी की विदेश यात्रा को लेकर जब विदेश मंत्रालय की तरफ से सूची तैयार की गई थी, तो उसमें भूटान का नाम सबसे ऊपर था। उस वक्त मोदी की विदेश यात्रा को लेकर चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में भूटान को दी गई अहमियत पर चर्चा जोरदार हुई। लेकिन अपनी यात्रा के दूसरे और आखिरी दिन मोदी ने भूटान की संसद के संयुक्त अधिवेशन को हिंदी में संबोधित कर इतिहास बना डाला। साथ ही पीएम मोदी की ये यात्रा इतिहास के पन्नों में भी दर्ज हो गई, क्योंकि ये पहला मौका था जब, किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने दूसरे देश की सांसद को हिंदी में संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान न सिर्फ दोनों देशो के बीच मजबूत रिश्तों का हवाला दिया, बल्कि दोनों देशों के सांस्कृतिक विरासत का जिक्र करते हुए आपसी सहयोग और बढ़ाने पर भी जोर दिया। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए पड़ोसी देश भूटान को अहमियत दी।
प्रधानमंत्री मोदी का ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने के लिए ब्राजील जाना और सौ अरब डॉलर के ब्रिक्स बैंक की स्थापना का फैसला भी एक अहम कदम रहा। दूसरी तरफ चीन भी नई सरकार से रिश्ते बनाने को उत्सुक है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन ने अपने विदेशमंत्री को विशेष दूत बतौर भारत भेजा। चीन के राष्ट्रपति भी सितंबर में भारत का दौरा करेंगे। मोदी इस महीने के आखिर में जापान का दौरा करेंगे। यह दौरा भारत के लिए अहम होगा क्योंकि जापान की तकनीक के वह कायल है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा से दोनों देशों के अच्छे संबंध और मजबूत होंगे तथा पारस्परिक व्यापार सहयोग और आर्थिक आदान-प्रदान बढ़ेगा। क्योंकि भारत और जापान के संबंध हमेशा से बहुत अच्छे रहे हैं और ये समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, मोदी की इस यात्रा से इन ‘स्वस्थ्य संबंधों’ में में और मजबूती आएगी। जानकारों के मुताबिक मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के वाणिज्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण यादगार यात्रा होगी। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि मोदी कारोबार को महत्व देने वाले नेता है, उनकी इस यात्रा से भारत जापान संबंध और मजबूत होगा और व्यापार एवं कारोबार में सहयोग के नये क्षितिज खुलेंगे। मोदी की जापान यात्रा बहुराष्ट्रीय कंपनियों विशेष तौर पर जापानी कंपनियों के लिए निवेश अनुकूल रखने की बेहतर बुनियाद साबित हो सकती है।
उनकी यह यात्रा सामरिक और वैश्विक सहयोगों को नए स्तर पर ले जाए जाने की आकांक्षाओं के बीच हो रही है । मोदी की चार दिवसीय यात्रा के दौरान रक्षा, असैन्य परमाणु, ढ़ांचागत विकास और ‘रेयर अर्थ मिनरल्स’ के अलावा व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना आदि मुख्य प्राथमिकताएं होंगी । इस यात्रा पर मोदी जापानी प्रधानमंत्री शिजों एबे से विस्तृतत वार्ता करगें और अन्य नेताओं से भी मिलकर सामरिक तथा वैश्विक साझेदारी को आगे ले जाने के तरीकों पर बातचीत करेंगे। प्रधानमंत्री की इस यात्रा के दौरान रखा एवं असैन्य परमाणु संबंधी कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावनाएं हैं ।
हालांकि आज की तारीख में कारोबार और निवेश के लिहाज से रूस बहुत महत्वपूर्ण नहीं रह गया है, लेकिन वह आज भी भारत का प्रमुख शस्त्र आपूर्तिकर्ता देश है और मोदी इस रिश्ते में बदलाव नहीं करना चाहेंगे। जबकि चीन को आमतौर पर भारत का प्रमुख भू-सामरिक विरोधी माना जाता है। आज चीन, भारत का मुख्य कारोबारी सहयोगी भी है इसलिए सभी कुछ सुरक्षा और युद्ध के लिहाज से ही नहीं सोचा जा सकता है। लेकिन जब चीन की बात आती है तो हमें सोचना होगा कि आर्थिक और सैन्य दृष्टि से भारत कमजोर है और मोदी कितने ही बड़े राष्ट्रवादी क्यों ना हों और उन्होंने दूसरे दलों के नेताओं की इस बात को लेकर कितनी ही आलोचना की हो कि वे चीन के दुस्साहस को अनदेखा कर रहे हैं, लेकिन खुद मोदी भी पेइचिंग से लड़ाई मोल लेना नहीं चाहेंगे। चीन को एक वैश्विक शक्ति उसकी आर्थिक ताकत के कारण माना जाता है और इस कारण से मोदी चाहेंगे कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं पिछले 100 दिनों में नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति का मर्म समझा है और विदेश नीति के मोर्चे पर वह बेहद कामयाब रहे हैं।