भ्रष्‍टाचार, घोटाला, अवैध खनन का मुद्दा छाया, उलझन में मतदाता

वैसे तो हर चुनाव में सभी राजनीतिक दलों को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रहती है और चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पार्टी के बेहतर परिणाम का दावा भी करते हैं। देश में आम चुनाव की आहट के बीच कर्नाटक में हो रहे इस विधानसभा चुनाव में इस बार राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं।

वैसे तो हर चुनाव में सभी राजनीतिक दलों को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रहती है और चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पार्टी के बेहतर परिणाम का दावा भी करते हैं। देश में आम चुनाव की आहट के बीच कर्नाटक में हो रहे इस विधानसभा चुनाव में इस बार राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं। आम जनता के हित एवं कल्‍याण की बातें तो अब बेमानी सरीखी लगती है। सिर्फ चुनाव प्रचार के दौरान ही राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में इन बातों का जिक्र होता है, पर बाद में इसे पूरी तरह भूला दिया जाता है।
राज्‍य में अभी तक ऐसी कोई सरकार नहीं आई है, जो पूरी तरह चुनौतियों पर काबू पाने का दावा कर सके। इस बार चुनाव में जिन मुद्दों पर खासा जोर रहेगा, उनमें भ्रष्‍टाचार, अवैध खनन, महंगाई आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा मामूली चर्चा पाने वाले अन्य मुद्दों में बिजली, पानी और बेरोजगारी भी है। सांप्रदायिक सदभाव की कमी तथा अल्‍पसंख्‍यकों में असुरक्षा का अभाव भी इस बार जोर शोर से उछाला जा रहा है। रायचूर, बेल्‍लारी, गुलबर्ग तथा बीदर जैसे अल्‍पसंख्‍यक आबादी वाले इलाकों में विकास कार्य की कमी को लेकर नाखुशी जताई जा रही है।
इस बार के चुनाव में मतदाता उलझन में हैं कि आखिर किसको किस आधार पर मत दें, क्योंकि सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे को `सबसे भ्रष्ट` बताने में जुटी हुई हैं। आरोप प्रत्‍यारोप के इस दौर में भ्रष्‍टाचार, घोटाला, महंगाई के अलावा और जरूरी बात पर नेताओं ने चुप्‍पी साध रखी है। मतलब साफ है कि वे इसी मुदों पर अपनी बैतरनी पार लगाने की ठान चुके हैं। चुनाव प्रचार में सत्तारूढ़ बीजेपी, मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस के राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ-साथ राज्य स्तर के अपेक्षाकृत छोटे राजनीतिक दलों के नेता भी जनता से भ्रष्टमुक्त शासन देने और बेहतर प्रशासन प्रदान करने का वादा कर रहे हैं। हैरत तो उस समय होती है जब भाजपा के पूर्व नेता एक-दूसरे पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। गौर हो कि बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्‍टाचार के मामले दर्ज हैं।
विरोधी दलों को पिछले पांच वर्षों में बीजेपी शासन के दौरान भ्रष्टाचार की घटना को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना होगा। कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। वहीं, बीजेपी ने भी कांग्रेस पर भ्रष्‍टाचार को लेकर ही पलटवार किया। मनमोहन सिंह, राहुल गांधी ने भी इसी मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की है।
सूबे में अवैध खनन का मुद्दा भी इस बार जोर शोर से उछला है। बीजेपी नेता जी. जर्नादन रेड्डी, जी. करुणाकर रेड्डी और जी. सोमशेखर रेड्डी का अवैध खनन के कारोबार पर एक समय निर्विवाद आधिपत्‍य था। अवैध खनन के मामले में जर्नादन रेड्डी फिलहाल हैदराबाद की जेल में बंद हैं। रेड्डी बंधुओं का पतन होने के बावजूद खनन व्‍यवसायियों का किला अभी ढहा नहीं है। बेल्‍लारी में कभी रेड्डी बंधुओं की तूती बोलती थी, लेकिन अब वे उतने प्रभावशाली नहीं रहे।
हैरतअंगेज यह भी है कि महंगाई का मुद्दा खास तवज्जो नहीं पा सका है। कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र को ही गंभीरता से नहीं लेता दिख रहा और कोई भी नेता न तो अपने दल के घोषणापत्र का उल्लेख कर रहा है और न ही कोई उसमें किए गए वादों को दोहरा रहा है।
बीएस येदियुरप्‍पा के भारतीय जनता पार्टी से अलग होने के बाद पार्टी के समक्ष कई मुश्किलें खड़ी हो गई है। सूबाई राजनीति में लिंगायत समुदाय के वर्चस्‍व के मद्देनजर येदियुरप्‍पा के पार्टी छोड़ने का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। क्‍योंकि इस समुदाय की अनदेखी नहीं की जा सकती है। आज बीजेपी के कई विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं। उनमें से कई कर्नाटक जनता पक्ष में शामिल हुए हैं। इस पार्टी की स्थापना भाजपा के पूर्व दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा ने पिछले साल दिसंबर में की थी।
भाजपा को सत्ता विरोधी रुझान का भी सामना करना पड़ रहा है और इसकी एक तस्वीर हाल में संपन्न शहरी स्थानीय निकायों के लिए हुए चुनावों में दिखी और पार्टी तीसरे स्थान पर रही। वहीं, बीजेपी के अंदर तकरार से पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा। भले ही बीजेपी यह दावा करे कि उसके सामने कई चुनौतियां थीं और उस पर काबू पा लिया है। पर सच्‍चाई वास्‍तविकता से कोसों दूर है। यूं कहें कि इस चुनाव में बीजेपी की नई टीम की असली परीक्षा होगी।
विकास के एजेंडे पर मुख्‍य जोर देकर सभी राजनीतिक दल यह दावा कर सकने की स्थिति में नहीं हैं कि वे चुनौतियों की परवाह किए बिना मुद्दों पर अपनी स्थिति कायम किए हुए हैं। वहीं, निकाय चुनावों में पहले नंबर पर रही कांग्रेस को उम्मीद है कि विधानसभा चुनावों में भी उसे वैसी ही कामयाबी मिलेगी।
वहीं, जनता दल सेक्यूलर के प्रदेश अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी का मानना है कि इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी के पास कोई मुद्दा नहीं है, जिसे लेकर वह जनता के बीच उतर सकती है। घोटालों और भ्रष्‍टाचार से घिरी कांग्रेस पार्टी वोटरों पर कोई प्रभाव छोड़ने में नाकाम रही है।
राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी के कुशासन के बारे में जनता पूरी तरह जानती है और वे उनका विश्वास जीतने में नाकामयाब रहे हैं। कुमारस्वामी का दावा है कि येदयुरप्पा के कार्यकाल के दौरान राज्य पर कर्ज का बोझ 50 हजार करोड़ से बढकर 1.16 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। ऐसे में सूबे की अर्थव्‍यवस्‍था चौपट हो गई है और जनता इन पर किस आधार पर यकीन करे।
इस चुनाव में जगदीश शेट्टर को चुनावों के लिए बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। ऐसे में बीजेपी कांग्रेस को कितना टक्कर दे पाती है, यह तो नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन यदि बीजेपी अकेले दम पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो उसके लिए यह एक बार फिर से सपने के साकार होने जैसा होगा।

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