चांद पर नहीं है ज्यादा पानी

चंद्रमा की चट्टान के नमूनों का अध्ययन करने वाले एक शोध दल ने चांद पर बहुत सा पानी होने की वर्षो की अवधारणा को पलट दिया है।

वाशिंगटन: चंद्रमा की चट्टान के नमूनों का अध्ययन करने वाले एक शोध दल ने चांद पर बहुत सा पानी होने की वर्षो की अवधारणा को पलट दिया है। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजेलिस के पृथ्वी, ग्रह और अंतरिक्ष विभाग के जेरेमी बॉयस के नेतृत्व में हुए शोध में पाया गया कि चंद्रमा की बहुत सी चट्टानों के नमूनों में आसामान्य रूप से पाए गए हाइड्रोजनयुक्त एपेटाइट क्रिस्टल, जलयुक्त वातावरण में नहीं बने हैं।
गौरतलब है कि खनिज एपेटाइट, चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाने में प्रयोग किया गया सबसे व्यापक तरीका है। बॉयस ने बताया कि हमारे नए परिणाम दर्शाते हैं कि चंद्रमा के द्रुतपुंज (मेग्मा) में उतना ज्यादा पानी नहीं है, जितना हमारा मानना है। चार दशकों से वैज्ञानिकों का मानना था कि चंद्रमा लगभग पूरी तरह जल रहित है।
हालांकि 2010 में चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों में मिले हाइड्रोजन के एपेटाइट से पूर्व में इसके जलमय होने का संकेत मिला था।
शुरुआती समय में चंद्रमा के मेग्मा की शीतलन निकायों के एपेटाइट का क्रिस्टलीकरण का सही अनुमान लगाने के लिए बॉयस और उनके साथियों ने एक कंप्यूटर मॉडल बनाया। बॉयस के मुताबिक, चंद्रमा के एपेटाइट में पानी की सामग्री अधिक मात्रा, क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया में एक मोड़ का परिणाम है, न कि जलयुक्त वातावरण का।
उन्होंने बताया कि पिघली चट्टान ठंडी होती है, तो एपेटाइट हाइड्रोजन अणुओं को शामिल करके इसका क्रिस्टल ढांचा बना सकता है। बॉयस ने कहा कि शुरुआत में बने एपेटाइट में बहुत ज्यादा फ्लोरीन थी। बाद में फ्लोरीन और क्लोरीन खत्म होने पर मेग्मा के शीतलन निकाय ने हाइड्रोजयुक्त एपेटाइट बनाना शुरू कर दिया। यहां तक कि चंद्रमा के अधिकतर नमूने बहुत शुष्क हैं।
बॉयस ने कहा कि हम 40 साल से मान रहे हैं कि चंद्रमा शुष्क है और अब हमारे पास कुछ सबूत हैं चंद्रमा का पुराना शुष्क मॉडल एकदम सही नहीं था। `साइंस` जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया कि चंद्रमा की चट्टानें पृथ्वी के जैसी नम थी, इसका निर्धारण करने के लिए हमें सबूत के हर हिस्से को सावधानी से देखने की जरूरत है। (एजेंसी)

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