बर्फ पिघलने से धरती के वजूद पर संकट

पृथ्वी के खत्म होने का खतरा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और इसके लिए जलवायु परिवर्तन पूरी तरह से जिम्मेदार है।

लंदन: पृथ्वी के खत्म होने का खतरा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और इसके लिए जलवायु परिवर्तन पूरी तरह से जिम्मेदार है। एक शोध में पता चला है कि अंटार्कटिका में धरती की सतह के नीचे स्थित प्रावर सतह पर स्थित बर्फ से भी अधिक तेजी से पिघल रहा है। न्यूकैस्टल यूनिवर्सिटी के जियोफिजिकल जियोडेसी के प्रोफेसर पीटर क्लार्क ने बताया कि अंटार्कटिका में पृथ्वी के अंदर इतनी तेजी से हो रहे इस बदलाव अभूतपूर्व हैं। जो बात सबसे ज्यादा रोचक है, वह यह है कि हम सतह पर बर्फ के पिघलने का प्रभाव पृथ्वी के अंदर 400 किलोमीटर नीचे स्थित चट्टानों पर पड़ रहा है। अंटार्कटिका की सतह प्रभावहीन भूखंड के रूप में नजर आ रही है।
नए अध्ययन में यह बताया गया है कि उत्तरी अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर पृथ्वी की सतह ऊपर की तरफ तेजी से क्यों गति कर रही है। अंतर्राष्ट्रीय शोध दल ने जीपीएस डाटा इकट्ठे किए हैं, जिसके अनुसार इस क्षेत्र का भूखंड 15 मिलीमीटर प्रतिवर्ष के हिसाब से ऊपर की ओर गति कर रहा है।
इसका मतलब यह है कि यह आसानी से अपनी जगह से हट सकता है और तेजी से अपने मीलों ऊपर की सतह पर बिजली को आकर्षित कर सकता है। यही नहीं, इससे पृथ्वी की सतह के आकार में भारी परिवर्तन आ सकता है। साल 1995 से उत्तरी अंटार्कटिक प्रायद्वीप में स्थित कई हिमखंड पिघल गए और इससे पृथ्वी की सतह पर भारी मात्रा में बर्फ का पानी आने लगा, जिससे धरती की ठोस सतह जलमग्न हो गई।
पृथ्वी की सतह पर दिख रहे बदलाव की वजह उत्तरी अंटार्कटिक प्रायद्वीप में पृथ्वी की सतह के नीचे मैंटर में हो रहे बदलाव हैं। जर्नल अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंस लेटर्स में प्रकाशित शोध के अनुसार, यदि ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं और उनका भार निश्चित क्षेत्र के ऊपर से घटता है, तो पृथ्वी के नीचे मौजूद मैंटल सतह को ऊपर की तरफ धकेलेंगे। (एजेंसी)

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