एमपी का इतिहास: जनता ने जिसे वोट दिया, छप्पर फाड़कर दिया

मध्य प्रदेश में 25 नवंबर को हुए मतदान के बाद एक बार फिर दोनों प्रमुख दलों भाजपा एवं कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने तथा किसी दल को अकेले की दम पर सरकार बनाने लायक सीटे मिल पाने के कयास भले ही लगाए जा रहे हों। लेकिन मप्र का इतिहास इस बात का गवाह है कि राज्य की जनता ने जिस दल को दिया है उसे छप्पर फाड़कर ही दिया है और सत्ता पाने वाले किसी भी दल को सरकार बनाने के लिये तीसरे दल का सहारा नहीं लेना पड़ा है।

भोपाल : मध्य प्रदेश में 25 नवंबर को हुए मतदान के बाद एक बार फिर दोनों प्रमुख दलों भाजपा एवं कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने तथा किसी दल को अकेले की दम पर सरकार बनाने लायक सीटे मिल पाने के कयास भले ही लगाए जा रहे हों। लेकिन मप्र का इतिहास इस बात का गवाह है कि राज्य की जनता ने जिस दल को दिया है उसे छप्पर फाड़कर ही दिया है और सत्ता पाने वाले किसी भी दल को सरकार बनाने के लिये तीसरे दल का सहारा नहीं लेना पड़ा है।
मध्य प्रदेश में हमेशा से दो ही दलों के बीच टक्कर रही है और यहां चुनाव के बाद कभी भी मिली जुली सरकार का इतिहास नहीं रहा है। यहां की जनता ने जिस दल को भी बहुमत दिया है उसे कभी भी किसी दूसरे दल के सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ी है। प्रदेश में जहां भाजपा द्वारा चुनाव में विजय प्राप्त कर लगातार तीसरी बार सरकार बनाये जाने का दावा किया जा रहा है। वहीं, कांग्रेस ने भी भाजपा की हैट्रिक रोकने के लिये जीतोड कोशिश की है। पूर्व में जहां भाजपा के पक्ष में मैदान साफ नजर आ रहा था लेकिन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपे जाने के बाद दोनों ही दलों के बीच स्थिति बराबरी पर आ गई लगती है और फिलहाल कोई दावे से नहीं कह सकता है कि सरकार उसकी ही बनेगी।
चार दिसंबर को चार राज्यों के ‘एक्जिट पोल’ में भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने का दावा किया गया हो। लेकिन अंदरुनी सच यही है कि भाजपा को भी भारी पैमाने पर हुए भीतरघात और सत्तारुढ विधायक विरोधी लहर के चलते इस पर पूर्ण विश्वास नहीं है और वह भी तीसरी बार सरकार बनाने को लेकर आशंकित है।
मध्य प्रदेश के पिछले सात चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले तो उससे पता चलता है कि प्रदेश में जनता ने किसी एक ही दल पर विश्वास किया और उसे सरकार चलाने की पूरी आजादी दी है। हालांकि ऐसे भी उदाहरण है कि एक या दो बार किसी दल को बहुमत देने के बाद वह दल जनता की नजर से उतर गया और जनता ने उसे अपने अंजाम तक पहुंचाकर दूसरे दल को बहुमत दे दिया। वर्ष 1980 में जनता दल की सरकार का पतन होने के बाद जब चुनाव हुए तो वर्ष 1977 में पर्याप्त बहुमत देकर जनता पार्टी को सरकार में लाने वाली जनता ने चुनाव में उसे बुरी तरह पटकनी देकर एक बार फिर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत दिया। 1980 के विधानसभा चुनाव जनता ने कांग्रेस को 246 सीटों पर विजय दिलाई वहीं जनता पार्टी और उसके घटक दल मात्र 60 सीटों पर सिमटकर रह गए थे। (एजेंसी)

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