परमाणु अप्रसार संधि मसले पर बोले पीएम नरेंद्र मोदी-भारतीय समाज के डीएनए में है शांति के लिए प्रतिबद्धता

परमाणु अप्रसार संधि पर भारत के हस्ताक्षर न करने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्याप्त चिंता को दूर करने की कोशिश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि शांति और अहिंसा के लिए देश की प्रतिबद्धता ‘भारतीय समाज के डीएनए’ में रची बसी है जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि या प्रक्रियाओं से बहुत ऊपर है।

परमाणु अप्रसार संधि मसले पर बोले पीएम नरेंद्र मोदी-भारतीय समाज के डीएनए में है शांति के लिए प्रतिबद्धता

टोक्‍यो : परमाणु अप्रसार संधि पर भारत के हस्ताक्षर न करने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्याप्त चिंता को दूर करने की कोशिश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि शांति और अहिंसा के लिए देश की प्रतिबद्धता ‘भारतीय समाज के डीएनए’ में रची बसी है जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि या प्रक्रियाओं से बहुत ऊपर है। साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी ने महिला सशक्तीकरण पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा उनके लिए आवश्यक है।

मोदी ने यहां सैक्रेड हार्ट यूनिवर्सिटी में एक छात्र के प्रश्न के जवाब में कहा कि भारत भगवान बुद्ध की धरती है। बुद्ध शांति के लिए जिये और हमेशा शांति का पैगाम दिया तथा यह संदेश भारत में गहराई तक व्याप्त है। संवाद के दौरान उनसे पूछा गया था कि परमाणु अप्रसार संधि पर अपना रुख बदले बिना भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास कैसे हासिल करेगा। परमाणु हथियार रखने के बावजूद भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर चुका है।

जापान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां परमाणु बम गिराया गया था। फिलहाल जापान की यात्रा पर यहां आए मोदी ने इस अवसर का उपयोग करते हुए तोक्यो के साथ असैन्य परमाणु करार करने के प्रयासों के बीच इस मुद्दे पर अपना यह संदेश दिया। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है क्योंकि वह इसे खामीयुक्त मानता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अहिंसा के लिए भारत की पूर्ण प्रतिबद्धता है और यह भारतीय समाज के डीएनए में रची बसी है तथा यह किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि से बहुत ऊपर है। उनका संदर्भ भारत के, परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार की ओर था। मोदी ने संधियों से ऊपर उठने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में, कुछ प्रक्रियाएं होती हैं। लेकिन समाज की प्रतिबद्धता सबसे ऊपर है। अपनी बात पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे समाज के साथ अहिंसा के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए भारत ने इस तरह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया कि पूरी दुनिया आश्चर्यचकित रह गई। उन्होंने कहा कि हजारों साल से भारत की आस्था सूत्र वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) में रही है। जब हम पूरी दुनिया को एक परिवार मानते हैं तो हम ऐसा कुछ करने की कैसे सोच सकते हैं जिससे किसी को नुकसान हो।

भारत ने हाल ही में आईएईए के साथ हस्ताक्षरित ‘सुरक्षा करार पर अतिरिक्त प्रोटोकॉल’ (एडीशनल प्रोटोकॉल ऑन सैफेगार्डस एग्रीमेंट) की अभिपुष्टि की है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से पूछा गया था कि क्या भारत परमाणु निगरानी एजेंसी के निरीक्षकों को भारत के असैन्य परमाणु संयंत्रों की आसानी से निगरानी की अनुमति देगा। संवाद सत्र के दौरान, एक अन्य छात्र ने मोदी से पूछा कि चीन के ‘विस्तारवादी’ प्रयासों के बावजूद एशिया में शांति कैसे रह सकती है। इस पर मोदी ने कहा कि ऐसा लगता है कि आप चीन से परेशान हैं। हालांकि छात्रों को संबोधित कर रहे मोदी की राय थी कि छात्र पत्रकारों की तरह सवाल पूछ रहे थे।

चीन के संदर्भ में पूछे गए सवाल का सीधा जवाब सावधानीपूर्वक टालते हुए मोदी ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इसी तरह, जापान भी एक लोकतांत्रिक देश है। अगर भारत और जापान मिल कर शांति और सकारात्मक बातों के बारे में सोचें तो हम दुनिया को लोकतंत्र की ताकत का अहसास करा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमें दूसरों के बजाय अपना ध्यान प्रगति और विकास पर केंद्रित करना चाहिए। अगर हम अपनी स्थिति पर ध्यान देंगे तो हमारी स्थिति अच्छी होगी। मोदी ने एक काल्पनिक कहानी सुनाई, कल्पना कीजिये, कमरे में पूरी तरह अंधेरा है। इस अंधेरे को दूर करने के लिए एक व्यक्ति झा़ड़ू लेकर कमरे में जाता है लेकिन वह गिर जाएगा। दूसरा व्यक्ति तलवार लेकर अंधेरा दूर करने अंदर जाता है। वह भी गिर जाएगा। एक अन्य व्यक्ति कंबल ले कर अंधेरा दूर करने के लिए अंदर जाता है किंतु वह भी गिर जाएगा। तब एक चतुर आदमी छोटा सा दीपक लेकर अंदर जाता है और फिर अंधेरा दूर हो जाता है। शांति, समृद्धि और लोकतंत्र का दीपक कभी भी अंधेरे से नहीं डरेगा।

ऐसा लग रहा था जैसे यूनिवर्सिटी में बोल रहे मोदी कोई प्रोफेसर हों। उन्होंने जापानी छात्रों को प्रकृति के संदर्भ में भारतीय लोकाचार के बारे में भी बताया। छात्रों ने उनसे पूछा था कि तेजी से विकास कर रहा भारत उर्जा के स्रोतों की दिशा में आगे बढ़ते हुए पारिस्थितिकी का संरक्षण कैसे करेगा। मोदी ने कहा कि भारत ऐसा देश है जहां लोग प्रकृति से प्यार और संवाद करते हैं। इस संबंध में उन्होंने कहा कि पृथ्वी को मां की तरह सम्मान दिया जाता है, चंद्रमा को ‘मामा’ माना जाता है, सूर्य तथा हिमालय को दादा की तरह, नदियों को मां की तरह माना जाता है और वृक्षों को ईश्वर की तरह पूजा जाता है।

मोदी ने कहा कि मैं आपको अपनी कहानी बताता हूं। मैं बेहद निर्धन परिवार से हूं। मेरे चाचा ने एक बार लकड़ी का कारोबार शुरू किया था। मेरी मां पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन उन्होंने उनसे (चाचा से) कहा कि पेड़ों को काटना अपराध है और इससे रूपये कमाने के बजाय परिवार भूखा रहना पसंद करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रकृति के साथ अगर ऐसा व्यवहार किया जाता है तब तो भारतीय लोग पर्यावरण को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचा सकते। जलवायु परिवर्तन की शब्दावली (टर्मिनोलॉजी) के बारे में मोदी ने सवाल किया कि क्या यह सही है। उन्होंने कहा कि क्या यह जलवायु परिवर्तन है या आदतों में बदलाव है। हमारी आदतें बदल गई हैं और हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं।

मोदी ने छात्रों को जलवायु पर लिखी ‘कन्वीनिएन्ट एक्शन’ किताब पढ़ने का सुझाव दिया। इससे पहले उन्होंने लड़कियों की एक गोष्ठी में भारत में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें विभिन्न रूपों में देवी की तरह पूजा जाता है।

Zee News App: पाएँ हिंदी में ताज़ा समाचार, देश-दुनिया की खबरें, फिल्म, बिज़नेस अपडेट्स, खेल की दुनिया की हलचल, देखें लाइव न्यूज़ और धर्म-कर्म से जुड़ी खबरें, आदि.अभी डाउनलोड करें ज़ी न्यूज़ ऐप.