एमजे अकबर प्रख्यात पत्रकार रहे हैं और मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रवक्ता हैं। लेखक और विभिन्न मामलों के विशेषज्ञ के तौर पर इनकी एक अलग शख्सियत रही है। 'सियासत की बात' कार्यक्रम में उन्होंने ज़ी मीडिया के एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस) वासिंद्र मिश्र के साथ खास बातचीत में कई मुद्दों से जुड़े सवालों के जवाब बेबाकी से दिए। पेश है इसके प्रमुख अंश:-
वासिंद्र मिश्र : नमस्कार...आज के इस कार्यक्रम में आपका स्वागत है। सियासत की बात में आज हमारे साथ हैं एमजे अकबर साहब। एमजे अकबर साहब भारत में पाकिस्तान के मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। अकबर साहब प्रख्यात पत्रकार रहे हैं। वर्तमान में बीजेपी के प्रवक्ता हैं इनकी अपनी अलग एक शख्सियत रही है। एक पत्रकार के रूप में एक लेखक के रूप में और एक विशेषज्ञ के रूप में, आज हम अकबर साहब से जानने की कोशिश करेंगे कि इस समय पाकिस्तान के जो हालात है, जिस तरह पाकिस्तान में आज आंतरिक संकट गहराता जा रहा है उसके पीछे के कारण क्या हैं और इनकी नज़र में इनके समाधान क्या हो सकते हैं। एमजे साहब आपका बहुत-बहुत स्वागत है। सबसे पहले ये बताइए कि आज के जो हालात हैं इस वक्त उसके पीछे के क्या कारण है।
एमजे अकबर : जी, बहुत-बहुत शुक्रिया। देखिए सबसे बड़ी जो बात है वो ये है कि पाकिस्तान की जो सरकार है वो एक सरकार नहीं है। जहां तक अफगानिस्तान पॉलिसी की बात करें तो जहां तक सुरक्षा की बात है तो ना पहला कदम और ना आखिरी कदम पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ले सकते है। हमारे जैसी संविधान में पीएम से ऊपर कोई नहीं लेकिन पाकिस्तान में ऐसा कोई नहीं। पाकिस्तान प्रधानमंत्री पर एक बड़ा साया हर वक्त रहता है किसी भी प्रधानमंत्री पर। वो साया है आर्मी का, आर्मी जो है वहां की सिक्युरिटी और नेशलिज्म को हिंदुस्तान और कश्मीर के साथ ऐसी जुड़ी है कि डीप स्टेट इसको कहते हैं। ये डीप स्टेट साइकोलॉजिकल स्पेस हिंदुस्तान के लिए समजौते के लिए कभी नहीं देती क्योंकि डीप स्टेट देने से पाकिस्तान की अपनी अहमियत खतम हो जाएगी तो जब जब आप देखिएगा कि एक अमन का माहौल बनाने की कोशिश की है। मैं कहता हूंकि नरेंद्र मोदी ने आते ही पहला सिग्नल दिया कि लड़ाई के बहुत साल बीत गए और अब दोनों मुल्क गरीबी के लिए लड़े। मोदी ने यही नेपाल को यही संदेश दिया लेकिन जब से शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही जो मैसेज दिया, उसके बाद से पाकिस्तान की तरफ से ये जो डीप स्टेट है अपनी कार्रवाई शुरू कर दी। अभी तो ये पीक पर पहुंचा है लेकिन सीज़फायर उल्लघंन के साथ शुरु हुई और हमारे जवान शहीद हुए।
वासिंद्र मिश्र : पाकिस्तना और भारत के एक साथ आज़ाद होने के बावजूद पाकिस्तान के जो आंतरिक हालात हैं। क्या कारण है कि भारत में लोकतंत्र मजबूत होती गई। इंदिरा गांधी को भी डेमोक्रेसी के आगे झुकना पड़ा तो पाकिस्तान में उस तरह के हालात क्यो नहीं बन पाए और आर्मी का अभी भी बोलबाला है। प्रधानमंत्री पर तो इसके क्या कारण हैं और जैसा की आप बता रहे थे कि पीएम पर आर्मी का साया रहता है तो आपकी नजर में हम इसके लिए कौन कौन से कारण जिम्मेदार मानें कि पाकिस्तान में डेमोक्रेसी इतनी मजबूत क्यों नहीं हो पाई जो जितनी की इंडिया में है?
एमजे अकबर : पाकिस्तानी के वजूद में एक बहुत बड़ी कमी है बहुत बड़ी समस्या है..पाकिस्तान क्यूं बना ये आज तक पाकिस्तान में डिबेट है..खत्म नहीं हो पाई..उन्होने मजहब के नाम पर मुल्क बनाया लोगों के नाम पर नहीं..पाकिस्तान सेन्सुअली हमारी जैसी डेमोक्रेसी है तो पाकिस्तान की टेंडेंसी थियोक्रेसी की ओर बढ़ती जा रही है और थियोक्रेसी मे डेमोक्रेसी सिकुड़ती (श्रिंक) करती जाती है। जिससे डेमोक्रेसी कम होती जाती है जो हर दशक कम होती जा रही है क्योंकि पाकिस्तान के जो दुविधा है, जो आंतरिक विरोधाभास हैं। उसका जवाब पाकिस्तानियों के पास है। शायद हमारे पास है कि आपके पास मुस्लिम मेजोरिटी मुल्क है जो बन गया जो बन गया, उसे कोई ना बदलना चाहता है और ना बदल सकता है लेकिन आप अपने आप को सेकुलर डेमोक्रेसी डिक्लेयर कर लो बांग्लादेश तो बना पाकिस्तानी लेकिन बांग्लादेश अपने आप को सेकुलर डेमोक्रेसी की और ले जा रहा है तो मैं तो कहूंगा की बांग्लादेश का भविष्य पाकिस्तान से ज्यादा अच्छा है।
वासिंद्र मिश्र : अभी आपने कहा कि पाकिस्तान धीरे धीरे थियोक्रेटिक स्टेट की ओर बढ़ रहा है। बाकी दुनिया के जो विकसित मुल्क हैं, चाहे अमेरिका हों, फ्रांस हों, इंग्लैंड हों वो भी पाकिस्तान को अपनी अपनी सुविधा के अनुसार पाकिस्तान को कई विशेषणों से संबोधित करते है। जब उनके सुविधा के अनुसार पाकिस्तान की पॉलिसी नहीं बनती तो क्या हम माने की इस समय जो वहां आंदोलन चल रहा है उसके पीछे भी कहीं ना कहीं उन फंडामेंटल या कहें अलगाववादी या आतंकवादी ताकतों का समर्थन और हाथ है जो की इमरान खान या वहां मौलवी को आगे करके अपना एजेंडा बढ़ाना चाह रहे हैं नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ?
एमजे अकबर : ये मौलवी दरअसल पाकिस्तान में नहीं रहते। ये पाकिस्तान में बीच-बीच में कूद के आते हैं और कनाडा में रहते हैं लेकिन पाकिस्तान की जो इंटरनल डायनॉमिक्स है तो इसके बारे में तो एक बहुत लंबी चर्चा हो जाएगी। लेकिन पाकिस्तान में अभी के जो हालात हैं कि जो चुनाव हुए भी जिसमें नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री करार दिया गया...उस इलेक्शन की सच्चाई को या कहें कि क्रेडिबिलिटी को अभी इमरान मानने को तैयार नहीं हैं..वो समझते हैं कि उनसे इलेक्शन छीना गया है..वो हारे नहीं हैं..तो जब तक उनके दिमाग में ये बात रहेगी तो तब तक वहां उनकी गरज सड़क पर उतरेगी।
वासिंद्र मिश्र : नहीं, लेकिन लगता यही रहा है कि..अगर हम भारत से देखें..तो लगता यही रहा है कि कहीं ना कहीं तहरीक ए इन्साफ जो इमरान की पार्टी है। उसको तालिबान और बाकी उस तरीके की फंडामेंटल ताकतों का समर्थन हासिल है और इमरान की तरफ से कभी भी खुले रुप से बहुत ही दो टूक शब्दों में ना तो तालिबान की आलोचना की गई जो तालिबान ने स्वात घाटी में किया या अफगानिस्तान में जो तालिबान ने किया उसकी आलोचना की गई तो लगता यही है कि ये इमरान खान या जो मौलवी साहब हैं, ये लोग उन्हीं ताकतों की मदद से एक बार पाकिस्तान की सरकार पर कब्जा करना चाहते हैं?
एमजे अकबर : देखिए, उनकी ताकत से तो कब्जा नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनकी जो ताकत है वो डेमोक्रेसी की ताकत नहीं है। जमीन की ताकत नहीं है, उनकी ताकत जो है वो गोली की ताकत है और गोली की ताकत से आप सरकार या निजाम नहीं बदल सकते। पाकिस्तान को सिर्फ आर्मी बदल सकती है..और आर्मी अभी भी जो है उन ताकतों के साथ ऑफिशिएली जुड़ी है। आर्मी का इन ताकतों के साथ जो रिलेशिनशिप है वो कभी कभी आर्मी उन ताकतों के खिलाफ खड़ी हो जाती है लेकिन उसके साथ साथ मैं क्या कहूं कि शायद लफ्ज अच्छा ना लगे लेकिन ये कुछ दोगलापन्ती होती है आर्मी की तरफ से जो कभी सामने खड़ी हो जाती है जहां वो देखती है कि उसके इंट्रेस्ट के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। बहुत ज्यादा इन्हीं ताकतों का इस्तेमाल करती है हिंदुस्तान के खिलाफ। नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि ये प्रॉक्सी वार है, ये प्रॉक्सी वार पाकिस्तान के यहां नहीं...खुद नहीं कर सकती है तो इन ताकतों का इस्तेमाल करती है हमारे खिलाफ..वो ये समझती है कि ये लोग यूनिफार्म में नहीं आए तो डिनायल वे में..ये कोई नई बात नहीं 1947 में जब पाकिस्तान ने जंग छेड़ा था तो 14 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद पाकिस्तान ने 6 हफ्तों के भीतर जो पहला निर्णय लिया था..वो निर्णय हिंदुस्तान के खिलाफ जंग का था।
वासिंद्र मिश्र : एमजे साहब, हम जो बात कर रहे थे कि आर्मी के हाथों में सही मायने में असली कमान है और ये इन सारी एलीमेंट्स को अपनी सुविधा और वक्त के मद्देनजर अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। इस समय भी कमोबेश यही स्थिति बनती नजर आती है तो आपको नहीं लगता कि मोदी सरकार को नवाज शरीफ के साथ हमदर्दी दिखानी चाहिए जबकि इतना स्ट्रॉन्ग पोश्चरिंग, पोलिटिकली मोटिवेटेड पोश्चिरिंग दिखाना चाहिए क्योंकि जब बातचीत करने की कोशिश हुई थी मोदी सरकार की तरफ से तभी पता था कि पाकिस्तान को भी पता था, भारत सरकार को भी पता था और उन लोगों को भी पता था जो कि चाहते हैं कि भारत पाकिस्तान के बीच अमन चैन कायम रहे और ये भी पता था कि ज्यों ज्यों संवाद आगे बढ़ेगा भारत की ओर से त्यो त्यों उधर से प्रतिवाद और विरोध सामने आएगा। आपको नहीं लग रहा कि थोड़ी जल्दबाजी हो गई?
एमजे अकबर : जी बिल्कुल नहीं..देखिए कहीं ना कहीं हिन्दुस्तान को हमारी सरकार को एक डिसीजन लेना था क्योंकि कितने वर्षों से आपने जो अभी तर्क दिए हैं। कब से यही तर्क सुनते सुनते एक कान नहीं दोनों कान पक गए..अब कितने लास्ट चाहिए आपको यकीन करने के लिए कि यो दोगलापन्ती और नहीं चलेगी। हम जो है बार बार जो है अमन का हाथ बढ़ाते हैं..और बार-बार उधर से आर्टेरी की आवाज आती है..तो ये कब तक चलेगा..जब पीएम लेह गए थे..तो उन्होने साफ कहा था कि प्रॉक्सी वार बंद होना चाहिए..वो आवाज हिंदुस्तान भर तक तो गूंज गई लेकिन क्या पाकिस्तान में वो आवाज़ नहीं गई..क्यों नहीं सुनतो हो। एक तो जेश्चर करना चाहिए था..जब नवाज शरीफ यहां आए थे..तब उन्होने ये जो है समझ गए थे कि ये सरकार जो है...इस सरकार के साथ जैसे मनमोहन सिंह सरकार के साथ आप जो है लॉलीपॉप खिला के निकल जाते थे और बंबई भी करते थे। और बात भी चलती थी, मैं तो हैरान हूं कि इस बात का किसी का एसाब नहीं है कि बंबई के बाद जब पहली बार मनमोहन सिंह और पाक पीएम की मुलाकात हुई शर्मल शेख में तो हिंदुस्तान झुका 2009 में आखिर क्यों? जब दुनिया हमारे साथ है, जब सच्चाई हमारे साथ थी...इंसाफ हमारे साथ था तो हम क्यूं झुके और सब यहीं से बोला गया था कि साब अगर आप वहां पर बहुत कड़ाई करेंगे तो सिविलयन गवर्नमेंट का क्या होगा..उस वक्त आसिफ जरदारी का क्या होगा..देखिए..हिंदुस्तान की जिम्मेदीरी नहीं है कि वो आसिफ जरदारी की, नवाज शरीफ को बचाए..ये आप खुद देखिए..पाकिस्तान की सरकार को कभी ना कभी समझना पड़ेगा कि अपनी नियत साफ करके आए दिल्ली।
वासिंद्र मिश्र : लेकिन इस तरह की घटनाएं तो कारगिल के वक्त भी हुई थी..जब अटल जी ने वहां यही नवाज शरीफ के साथ दोस्ती की शुरुआत की कोशिश की थी..तब भी कारगिल युद्ध में मिला था भारत को..तो ऐसा नहीं की शर्म अल शेख में सिर्फ मनमोहन सिंह सरकार ही झुकी थी..अटल जी की सरकार ने भी कमोबेश वही काम किया था कारगिल वार के वक्त पाकिस्तान के साथ?
एमजे अकबर : अटल जी ने तो जितना हाथ बढ़ाया था..जितनी गले लगाने की कोशिश की थी और उनके तो दिल से बात निकली थी..उतना शायद कम ही लोग किए होंगे..लेकिन उनको भी जब ठुकरा दिया..तो उससे भी हम कुछ ना समझें।
वासिंद्र मिश्र : एक और बात अभी तक की जो लर्निंग रही है भारत की अगर हम डिप्लोमेसी की बात करें..या इंडोपाक रिश्तों की तो..दोनों मुल्कों की जो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं..यहां बीजेपी और कांग्रेस हैं..और वहां जो भी सत्तारुढ़ या विपक्षी पार्टियां हैं..जब पाकिस्तान मं सत्ता में रहते हैं तो एंटी इंडिया उनकी पोश्चरिंग होती है..और यहां जो पार्टी विपक्ष में रहती है तो एंटी पाकिस्तान उनकी पोश्चरिंग रहती है..लेकिन जब सत्ता में आती हैं..तो पाकिस्तान की ओर दोस्ती का पैगाम बढ़ाती हैं..क्या दोनों मुल्को के जो सियासतदां हैं..ये भी भरपूर राजनीति करते हैं..कुर्सी के लिए सत्ता के लिए...महज ऊपर से दिखाया जाता है दोनों मुल्कों में अमन कायम करने के लिए और दोनों मुल्कों में भाई चारा बनाने के लिए?
एमजे अकबर : देखिए आगे पीछे क्या होता है..क्या नहीं होता है वो अपनी जगह है,.लेकिन मैं आपकों इतना बता दूं कि नरेंद्र मोदी जी की सरकार कभी विपक्ष को सुनकर अपनी पॉलिसी नहीं बनाती..वो पॉलिसी बनाती है सच्चाई को देखकर जिससे बात करनी है उनकी नीयत देखकर और ये भी सोचती है कि इस बात करने से बात क्या आगे बढ़ेगी..अमन की बात अमन के माहौल में ही होती है..आप अगर अमन के माहौल को आर्टिलरी फायर से बर्बाद करते हैं..और फिर सोचें ये बात आगे चलेगी या इसमें कोई दम रहेगा...तो ऐसे बात करने से मतलब क्या है..कभी ना कभी किसी ना किसी को तो पाकिस्तान को सिग्नल देना पड़ेगा..कि भई अब बिजनेस ऐज यूजअल अब नहीं चलने वाला..अब जो है आप जरुर आइए टेबल पर..लेकिन, ईमान साफ करके आईये..ये जो आपकी हर वक्त की जो नीति है कि जुबान से आप मीठी बात बोलेंगे और हाथ में आपके बंदूक रहेगी तो ये अब नहीं होने वाला।
वासिंद्र मिश्र : आपको क्या लगता है कि..अगर हम आजादी से लेकर अब तक दोनों मुल्कों के बीच की बात करें..तो कि अब तक का सबसे बेहतर जो कार्यकाल रहा है कौन रहा है आपकी नजर में..जिसमें दोनों मुल्कों के बीच आपसी भाई चारे का जो रिश्ता कायम रहा है जो सबसे बेहतर काल रहा है वो कौन रहा है आपकी नज़र में..आपको क्या लगता है?
एमजे अकबर : दो ऐसे फेज आए थे..लेकिन मैं ये साफ कर दूं कि जब जब हिंदुस्तान ने प्रयास किया..कोशिश की क्योंकि हिंदुस्तान को ना तो कभी वॉर में भरोसा रहा है और ना ही वॉर कभी हिंदुस्तान की पॉलिसी रही है, तो तब तब पाकिस्तान ने शुरू से ही जंग का इस्तेमाल किया..इस मसले पर..अगर 47 मे पाकिस्तान जंग नहीं करता तो उसी वक्त वार्ता हो जाती। उसी वक्त बातचीत हो जाती। मैं समझता हूं कि ये मसला एक साल के अंदर उसी वक्त खत्म हो जाता..क्योंकि कश्मीर को इंडिपेंडेंस देने का तो कोई सवाल था ही नहीं..क्योंकि वो जो इंडिपेंडेंस एक्ट था..उसमें कोई प्रोवीजन नहीं था..तो ये कभी मुद्दा बनता ही नहीं और उसी वक्त सब हो जाता जैसे भी होता..लेकिन जब जंग का इस्तेमाल किया तो जो बात आप अमन से सुलझा सकते हैं..वो जंग से नहीं सुलझा सकते..ये तीन जंग हो गए..हर जंग को पाकिस्तान ने शुरू किया..और नतीजा आपके सामने है..जंग के चलते पाकिस्तान टूट गया..एक आजादी की लड़ाई पाकिस्तान ने छेड़ दी या छिड़वा दी समझिए जो हो और बांग्लादेश बन गया..तो अभी अगर दो फेज मैं देखता हूं ऐतिहासिक रुप से तो एक तो जनरल जिया उल और मोरार जी के बीच में संबंध जो है काफी अच्छे होने गए थे..होने के ऑप्शन भी थे..लेकिन मोरार जी की सरकार नहीं चली..मोरार जी पहले गुजराती प्रधानमंत्री थे..और दूसरा मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी ..लेकिन दोनों बार जनरल जिया ने मोरार जी देसाई को धोखा दिया..क्योंकि बात तो करते रहे क्रिकेट कि लेकिन असल खेल क्या था पंजाब को बर्बाद करना और हुआ। पंजाब में जो आग छेड़ी जनरल जिया ने जो मूवमेंट हुआ कितनी बर्बादी हुई..उनका तो था कि वो कश्मीर से लेकर नीचे पंजाब तक फैलाना चाहते थे..और फिर जब अटल जी ने कोशिश की तो आप जानते हैं कि आगरा में क्या हुआ..आगरा में जब हाथ मिलाने का वक्त आ गया था..जब बारीकी के ऊपर मतलब जब दस्तखत करने के लिए कलम उठा लिए गए थे..और कुछ था कि बस आप कर दो..और आप अजमेर शरीफ चले जाइए और पाकिस्तान वापस चले जाइए और खुशी का ऐलान कीजिए कि...एक नया माहौल हम कायम कर रहे हैं तो उस वक्त पाकिस्तान जो है किस चीज पे नहीं माना याद है आपको, नहीं माना कि पाकिस्तान ने ये नहीं कहा। ये कहने की हिम्मत नहीं कर सका कि वो पाकिस्तान से आतंकवाद खत्म कर देगा। जब आतंवाद पाकिस्तान की नीति है और वो उस नीति को जो है छोड़ देते हैं तो वहां जो है उनकी नौकरी चली जाती है इस्लामाबाद में और इसी का नतीजा है..आप कहिए हिंदुस्तान की सरकार ये मान ले की आतंकवाद को वो बर्दाश्त कर ले..कोई सरकार ये भला बर्दाश्त कर सकती है और मोदी की सरकार तो सोच भी नहीं सकती है ऐसी बात।
वासिंद्र मिश्र : अकबर साहब, अभी आपकी बात से 2 चीज निकलकर सामने आ रही है..संयोग ही कहिए कि..मोरार जी देसाई की जब सरकार थी..तो उस वक्त भी जनसंघ उस सरकार का हिस्सा था और जनता पार्टी की सरकार थी..और संयोग से मोरार जी देसाई गुजराती प्रधानमंत्री थे..जिस पर आप जोर दे रहे थे..और दूसरा प्रयास अब जो शुरू हुआ था प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी की तरफ से तो..इसमें मे भी अब बीजेपी की सरकार है..और गुजरात के एक व्यक्ति ही देश के प्रधानमंत्री हैं..तो क्या ये मानें कि बीजेपी या आरएसएस समर्थित संगठन है..जो जब सत्ता में होती है तो उसकी कोशिश होती है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते कायम किए जाएं और जब कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार होती है भारत में तो..वो लीग सर्विस ज्यादा करती है..रिश्ता सुधारने का काम कम करती है...ग्राउड लेवल पर?
एमजे अकबर : नहीं हम ऐसा तो नहीं कहेंगे क्योंकि अभी हम राजनीतिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य लेना चाहते हैं..लेकिन, कांग्रेस सरकार जो सबसे बड़ी कमजोरी थी..खासकर इस दशक की जो नई सरकार बनी थी..अगर आप पिछली सरकार की बात करे..मसलन इंदिरा जी या और कोई तो बात अलग हो जाएगी..लेकिन अटल जी की सरकार के बाद जब मनमोहन सिह को 10 साल दिए गए..10 साल कम नहीं होते...उसमें जो सबसे बड़ी खामी थी वो ये थी की मनमोहन सिंह की सरकार पाकिस्तान के साथ कभी भी सख्ती से पेश नहीं आ पाई ..चाहे जो भी प्रॉब्लम रही हो..और हमेशा झुक-झुककर बात करती थी..और जब आप एक देश जिसकी नीति में आतंकवाद लिखा हुआ है..जो आपके सामने बंबई मे इतना बड़ा इतना दर्दनाक आतंक करत है..और आप झुक जाते हो..तो आपको एक तमाचे के सिवा और कुछ नहीं मिलता।
वासिंद्र मिश्र : एमजे साहब हम चर्चा कर रहे थे कि मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ उतनी सख्ती नही दिखाई जितनी की दिखाई जानी चाहिए थी..खासतौर से तब जब उन्हें पता था कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रमोट करता है। क्या इसके पीछे का कारण अमेरिका है क्योंकि जब भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ता है तब और जब जब भारत पाकिसातना एक डॉयलॉग की टेबल पर आते हैं तब अमेरिका का कहीं ना कहीं उसमें रोल होता है कहीं प्रत्यक्ष होता है कहीं अप्रत्यक्ष रुप से जो पिछले 10 साल जो मनमोहन सिंह की ढिलाई रही। क्या उसके पीछ अमेरिका था या नरेंद्र मोदी की तरफ जो हाथ बढ़ाया गया, इसके पीछे भी कहीं ना कहीं विकसित देशों का रोल था, खासतौर पर अमेरिका का?
एमजे अकबर : दुख इस बात का होता है कि 2008 के आंतक के बाद ये जो नीति थी कांग्रेस सरकार की। ये नीति नहीं बदली, जिस नीति के पीछे राहुल सोनिया की नीति या कहें कि सबकी नीति थीं..तो ये 2009 होने के बावजूद ये जो हुआ ना..तो एक सदमा नहीं लेकिन हमारी पॉलिसी को बहुत बड़ा धक्का लगा...लेकिन जो आपका सवाल है अमेरिका के रोल पर..तो अमेरिका एक इंटरनेशनल सुपरपॉवर है..वो जानता है कि भारत और पाकिस्तान दोनो के पास न्यूक्लियर पावर है..वो समझता है कि दोनों मुल्कों में अगर तनाव एक हद से बाहर निकल जाता है..तो वो बहुत बड़ा खतरा है। हो सकता है, मै समझता हूं कि कभी होगा..अल्ला ना करे कभी हो ऐसा लेकिन, नेचुरली जब आप पॉलिसी प्लानिंग करते हैं या सोचते हैं तो कहीं ना कहीं एक फैक्टर तो रहता ही है लेकिन, जहां तक नरेंद्र मोदी की सरकार की बात है तो ये डिसीजन उन्होंने पहले दिन ली थी..शपथ से पहले ही दावत दी थी..उस वक्त अमेरिका शायद नरेंद्र मोदी जी से कोई बात..या कहे कोई रिश्ता ही नहीं था...क्योंकि उस वक्त मोदी जी ऑफिस में नहीं बैठते थे..ये जो सरकार ने डिसीजन लिया..उस वक्त जो हाथ बढ़ाया वो एक ड्रैमेटिक कदम आगे बढ़ाया वो सिर्फ नरेंद्र मोदी जी के दिमाग से बात निकली ती..किसी किस्म का किसी से कोई दबाव नहीं था..लेकिन जिस दिल और दिमाग ने जो ऐतिहासिक मौका दिया था पाकिस्तान को दोस्ती का..वो अब समझ गया है वो अपने देश की सुरक्षा जो हो वो हमारी पहली जिम्मेदारी है..आपके साथ हम बात जरूर करेंगे...लेकिन, बात जो है वो हम लड़ाई के माहौल में नहीं करेंगे..उसमे नहीं करेंगे जब आपको कहा गया है..बहुत कम सरकारें हैं..जो ऑफिशिएली कहती है् कि आप इनसे मत मिलिए..लेकिन ये जो कहने के बावजूद जो अलगवादियों से बात जारी रखती है और एक तरफ से हिंदुस्तान को जो टेस्ट किया कि देखें..आप भी मनमोहन सिंह की तरह झुकते हैं कि नहीं..तो ये जो मैं समझता हूं कि पाकिस्तान ने नरेंद्र मोदी जी को बड़ा अंडरएस्टीमेट किया है।
वासिंद्र मिश्र : मोदी जी अपने चुनावी भाषणों में कहा करते थे..कि देश नहीं झुकने देंगे..तो आपको लगता है कि ये निर्णय लिया है मोदी जी ने..कि वो अपने उसी चुनावी भाषण के तहत है?
एमजे अकबर : मोदी जी जो बात कहते हैं वो मैं आपको बता दूं कि उनकी जुबान पर जो बातें आती हैं वो महज राजनीति के लिए नहीं आती हैं..यकीन से आती हैं।
वासिंद्र मिश्र : मोदी जी के जो राजनीतिक आलोचक हैं..उनका ये कहना है कि..मोदी जी ने जो दोस्ती का हाथ बढ़ाया था पाकिस्तान के साथ..वो उनका बहुत ही कैलकुलेटेड माइंड था..उनके ऊपर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए आरोप लगते रहे हैं कि वो संप्रदाय विशेष के खिलाफ उनका जो नजरिया है..वो बड़ा तंग रहा है..तंग नजरिए से वो देखते रहे हैं एक संप्रदाय विशेष के लोगों को। तो उस इमेज से बाहर निकलने के लिए उन्होंने पाकिस्तान के साथ ऊपरी तौर पर दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया था..और उनको पता था कि ये दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलने वाली..इसमे कितनी सच्चाई है?
एमजे अकबर : देखिए, इसमें सच्चाई नहीं है..आप तो बड़ा छुपा के बोल रहे थे। मैं थोड़ा खुल के बता रहा हूं..हिंदुस्तान के मुसलमान को खुश करने के लिए पाकिस्तान से रिश्ते का कोई लेन-देन नहीं..आप अभी भी हिंदुस्तान के मुसलमान को हिंदुस्तानी नहीं समझते क्या? आप कभी कहते हैं कि हिंदुस्तान के हिंदु को खुश रखने के लिए नेपाल से रिश्ते अच्छे रखने चाहिए..तो कभी नजरिया बदलिए..हिंदुस्तान का मुसलमान हिंदुस्तानी है..और जो एक हिंदुस्तानी का हक होता है..उसे क्या चाहिए उसे नौकरी चाहिए, शिक्षा चाहिए और रोजगार चाहिए..उसे अपने बच्चों के लिए नौकरी और रोजगार चाहिए..उसे आगे बढ़ना है..अगर उसकी प्लेट में 2 रोटी है तो वो तीन करना चाहता है। हमारे देश के मुसलमानों को खुदा के वास्ते पाकिस्तान से मत जोड़िए और ना ही मोदी जी जो आपने संप्रदाय की बात की तो ये तो बहुत छोटी बात है। हिंदू ये तय कर ले कि उसे मुसलमान के खिलाफ लड़ना है या गरीबी के खिलाफ लड़ना है और मुसलमान ये तय कर ले कि उन्हें हिंदू के खिलाफ लड़ना है या गरीबी के खिलाफ लड़ना है। चलो हम लोग मिल के आगे बढ़ें, हर वक्त मोदी जी का स्लोगन एक ही था। शुरू से लेकर आखिरी तक डिवलेपमेंट फॉर ऑल।
वासिंद्र मिश्र : बहुत-बहुत धन्यवाद एमजे साहब हमारे चैनल से बात करने के लिए।
एमजे अकबर : जी, धन्यवाद।