एशियाई विकास बैंक ने वृद्धि दर अनुमान को घटाया

एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने वैश्विक मांग में गिरावट और भारत में मानूसन में देरी की वजह से कृषि पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का हवाला देकर चालू वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान सात प्रतिशत से घटा कर 5.6 प्रतिशत कर दिया है।

नई दिल्ली : एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने वैश्विक मांग में गिरावट और भारत में मानूसन में देरी की वजह से कृषि पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का हवाला देकर चालू वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान सात प्रतिशत से घटा कर 5.6 प्रतिशत कर दिया है।
हालांकि बैंक ने बुधवार को जारी अपनी ‘एशियाई विकास परिदृश्य 2012’ शीषर्क रपट के अद्यतन संस्करण में कहा है कि भारत आर्थिक नीतियों में सुधार को गति देकर तथा निवेश का वातावरण सुधार कर वृद्धि दर में गिरावट के सिलसिले को पलट सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 2011 के 7.2 प्रतिशत के मुकाबले 2012 में 6.1 प्रतिशत और 2013-14 में 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। एडीबी ने कहा कि वैश्विक आर्थिक सुस्ती के साथ इस क्षेत्र के दो दिग्गजों चीन और भारत में गिरावट की वजह से पहले के अनुमान को नरम करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2011-12 की 6.5 प्रतिशत से घटकर चालू वित्त वर्ष में 5.6 प्रतिशत रह जाएगी। इससे पहले बैंक ने देश की आर्थिक वृद्धि दर 2012-13 में सात प्रतिशत रहने की बात कही थी। वहीं 2013-14 में इसे 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
एडीबी ने कहा कि वैश्विक मांग में कमी और मानसून में देरी की वजह से भारत में कृषि गतिविधियां नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई हैं। एशियाई विकास बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री चांगयोंग री ने कहा कि भारत के वातावरण में सुधार और सुधार को गति प्रदान कर इस प्रवृति को उलट सकता है। मानसून में देरी और कृषिगत आपूर्ति श्रृंखला में कमजोरी के साथ-साथ उर्वरक और सिंचाई लागत में बढ़ोतरी से कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर प्रभावित होने और खाद्यान कीमतों पर दबाव बने रहने की आशंका है।
बैंक ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान औद्योगिक उत्पादन के नरम बने रहने की संभावना है वहीं विकसित देशों में कम मांग से निर्यात भी प्रभावित होगा। री ने कहा कि उच्च मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के वास्ते कड़ी मौद्रिक नीति और उच्च राजकोषीय घाटे की वजह से वृद्धि के लिए प्रोत्साहन देने की गुंजाइश कम बची है। उनका मानना है कि विश्वास बहाल कर और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरु कर अर्थव्यवस्था को गति दी जा सकती है। (एजेंसी)

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