नई दिल्लीः साल के शुरुआत का दूसरा महीना, यानी फरवरी 2019. देश में हल्की-फुल्की गुलाबी सर्दी पड़ रही थी और यहां का यूथ रजाई में ही दुबका हुआ या तो हैपी वैलेंटाइन वाले मेसेज फॉरवर्ड कर रहा था या फिर किसी से बड़ी देर से बातें कर रहा था. क्योंकि डेटा अनलिमिटेड था और वॉयस कॉलिंग फ्री थी. मेहरबानी थी मुकेश अंबानी के जियो की, वही मुकेश जो अंबानी परिवार के बड़े चश्मो-चिराग हैं. देश के धनी-मानी शख्सियत में सबसे ऊपर हैं और चोटी के उद्योगपति के तौर पर पहचान बना चुके हैं. लेकिन अंबानी परिवार में एक छोटा भाई भी तो है. वह कहां थे ? तो इसका जवाब है कि फरवरी 2019 में छोटे भाई यानी अनिल अंबानी सुप्रीम कोर्ट में खड़े थे. और अदालत उन्हें अवमानना का दोषी मान रही थी.
क्या हुआ था उस दिन, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिखाई सख्ती
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी को स्वीडन की टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन को 4 हफ्ते में 453 करोड़ रुपये चुकाने का आदेश दिया था. साथ ही सख्त लहजे में कहा था कि अगर तय वक्त में एरिक्सन को पैसा नहीं दिया गया तो अनिल अंबानी को तीन महीने के लिए जेल में डाल दिया जाएगा.
यानी रिलायंस कम्युनिकेशंस के चेयरमैन अनिल अंबानी के जेल जाने की नौबत आ गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी को अदालत की अवमानना का दोषी माना था. अनिल अंबानी की कंपनी को एरिक्सन को 550 करोड़ रुपये चुकाने थे.
...तो इस आदेश पर अनिल अंबानी क्या बोले
इस सख्त आदेश के बाद अनिल अंबानी को उनका पक्ष रखने का मौका दिया गया. अनिल अंबानी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस जियो के साथ प्रॉपर्टी की बिक्री का उसका सौदा कारगर नहीं रहा है. इस पर कंपनी दिवालिया की कार्यवाही कर रही है. कंपनी की रकम पर उनका नियंत्रण नहीं है.
एरिक्सन के बकाए के भुगतान के लिए कई सारे प्रयास किए गए, लेकिन रकम नहीं चुकता हो सकी. बात यह थी कि असल में जियो के साथ उनका सौदा नहीं हो पाया था. यह पूरा क्या मामला था, अभी आगे पढ़ेंगे, लेकिन 10 महीने पहले बोले गए, दिवालिया शब्द पर जोर दीजिए.. अंबानी और दिवालिया ? बहुत सारे प्रश्न तैर जाते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही कि आखिर जिस सीढ़ी से मुकेश अंबानी सफलता की ओर चढ़े, अनिल अंबानी नीचे कैसे उतर आए...
भाषाई मर्यादा के टूटे दरवाजे से राजनीति में आई थीं स्वाति, विवादों से गहरा नाता
डायरेक्टर पद से दिया इस्तीफा
शनिवार नवंबर 16, 2019 को अनिल अंबानी ने अपनी मुख्य कंपनी रिलायंस कम्यूनिकेशंस के डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया. 2008 में अनिल अंबानी विश्व के छठे सबसे अमीर शख्स थे, लेकिन ऐसी नौबत आ गई कि लगातार घाटे की वजह से उन्हें रिलायंस कम्यूनिकेशंस का यह महत्वपूर्ण पद छोड़ना पड़ा.
इस बड़ी कंपनी को टेलिकॉम की दुनिया में क्रांति लाने के लिए याद किया जाता है, लेकिन अब सिर्फ इसे याद ही किया जा सकेगा, क्योंकि कंपनी दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही है. आरकॉम पर करीब 36 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. अनिल अंबानी के सामने कर्ज चुकाने के लिए अपनी संपत्तियों को बेचने की नौबत है.
Reliance Communications Limited: Anil Dhirubhai Ambani along with four other directors, Chhaya Virani, Ryna Karani, Manjari Kacker & Suresh Rangachar, have tendered their resignation from the post. pic.twitter.com/TxQG31taz4
— ANI (@ANI) November 16, 2019
खुली थीं संभावनाएं, फिर भी पिछड़े
धीरूभाई अंबानी का रिलायंस ग्रुप 28000 करोड़ का था. 2005 में जब इसका बंटवारा हुआ तो मुकेश और अनिल के हिस्से इसका आधा-आधा भाग आया. अनिल के हिस्से तब टेलिकॉम सेक्टर आया था. यह सेक्टर मुनाफे कमाने की असीम संभावनाओं के साथ घिरा था. इसी के साथ अनिल अंबानी के लिए भी संभावनाएं खुली थीं, क्योंकि बंटवारे में तय हुआ कि अगले 10 साल तक मुकेश अंबानी टेलिकॉम इंडस्ट्री में दखल नहीं देंगे. विशेषज्ञ इस पर अपनी टिप्पणी रखते हुए कहते हैं कि अनिल अंबानी ने तब CDMA तकनीक का चुनाव किया.
उस समय का यह अदूरदर्शी चयन था. रिलायंस इन्फोकॉम की शुरुआत 2002 में हुई थी. उनके प्रतिस्पर्धी कंपनियों में थीं एयरटेल, हच (जो बाद में वोडाफोन बनी) जिन्होंने GSM तकनीक को चुना. यह दौर भारत में 4G की शुरुआती नींव रखने वाला था. CDMA तब 2G-3G नेटवरर्क पर ही सपोर्ट करता था. भारी निवेश के बाद भी अनिल इसमें पिछड़ते चले गए.
चौतरफा हाथ आजमाना भी पड़ा भारी
अनिल अंबानी ने साल 2005 में ऐडलैब्स और 2008 में ड्रीमवर्क्स के साथ करार किया. ड्रीमवर्क्स के साथ उनका करार 1.2 अरब डॉलर का था. फिर उन्होंने इन्फ्रॉस्ट्रक्चर के बिजनेस में भी हाथ डाल दिया. हालांकि इंटरटेनमेंट और इन्फ्रॉस्ट्रक्चर में अनिल अंबानी को खासी बढ़त नहीं मिली और 2014 आते-आते उनकी पॉ़वर इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियां बड़े कर्ज में डूब गईं. यहीं से शुरु हुआ कर्ज चुकाने के लिए कंपनियों को बेचने का दौर, लेकिन कई कंपनियां घाटे में होने और बिजनेस कुछ खास न हो पाने के कारण कंपनियों को बेचना भी काम नहीं आया. एक साथ कई जगह हाथ आजमाना नुकसान दे गया.
अदालत के इस फैसले की अवमानना से नप गए रैनबैक्सी प्रोमोटर सिंह बंधु
2014 से बढ़ी अनिल अंबानी की मुश्किलें
अनिल अंबानी की मुश्किलें 2014 में बढ़ने लगीं और एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2018 में ग्रुप पर कुल 1.72 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था. दोनों भाइयों में बंटवारे के बाद अनिल अंबानी के अधीन वाली रिलायंस ग्रुप कंपनीज का मार्केट कैप मार्च 2008 में 2 लाख 36 हजार 354 करोड़ था. फरवरी 2019 में घटकर यह 24 हजार 922 करोड़ पर पहुंच गया.
जून में तो ग्रुप की छह कंपनियों का मार्केट कैप 6,196 करोड़ पर पहुंच गया था. उस दौरान कहा गया था कि अनिल अंबानी अब अबरपतियों की लिस्ट से बाहर हो गए हैं और उनकी निजी संपत्ति एक अरब डॉलर के नीचे पहुंच गई है. दूसरी तरफ अक्टूबर में मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का मार्केट कैप 9 लाख करोड़ के पार पहुंच गया था. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 51.40 अरब डॉलर है.
जियो की आंधी सब उड़ा ले गई
अनिल अंबानी तो 2014 से ही वित्तीय संकट में घिरे थे. उन्हें उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. इसी के साथ 2016 में उस शर्त को 10 साल पूरे हो गए जिसके तहत मुकेश अंबानी अब तक टेलिकॉम सेक्टर से बाहर थे. मुकेश अंबानी पूरे दमखम के साथ इस सेक्टर में आए और साथ में जियो की आंधी ले आए.
एयरटेल, वोडाफोन जैसी बड़ी टेलिकॉम कंपनियां तो एकाएक घाटे में जाने लगीं. अनिल अंबानी के बिजनस के लिए भी यह बड़ा झटका था. बीते कुछ सालों में अनिल अंबानी को बिग सिनेमा, रिलायंस बिग ब्रॉडकास्टिंग और बिग मैजिक जैसी कंपनियों को बेचना पड़ा है.
साफ हवा के बाद अब दिल्ली को शुद्ध पानी भी नसीब नहीं
फरवरी 2019 में यह मामला था सुप्रीम कोर्ट में
शुरुआत में जिस एरिक्सन मामले की बात हुई है वह कुछ यूं था. आरकॉम ने एरिक्सन से 2013 में एक समझौता किया था. समझौते के मुताबिक एरिक्सन को रिलायंस के मोबाइल फोन टावर, फिक्स्ड टेलीफोन लाइन, ब्रॉडबैंड, वायरलेस वॉयस और डेटा आदि काम संभालने थे. समझौता 7 साल के लिए हुआ. लेकिन इसी बीच आरकॉम घाटे में आ गई. मई, 2018 में शनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल ने एरिक्सन की आरकॉम के खिलाफ दायर तीन दिवालिया याचिकाएं मंजूर कर लीं.
एरिक्सन ने आरोप लगाया कि आरकॉम ने उससे काम करा लिया और उसके 1100 करोड़ रुपये नहीं दे रही है. इस पर आरकॉम ने भी एरिक्सन के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्राइब्यूनल में अपील की. ऑरकॉम ने दिवालिया प्रक्रिया का विरोध किया. कहा कि उसकी रिलायंस जियो और ब्रुकफील्ड के साथ असेट्स बेचने की बात चल रही है. वह पैसे चुका देगी. इस पर दोनों कंपनियों के बीच सेटलमेंट हो गया. आरकॉम ने एरिक्सन को 550 करोड़ रुपये देने का वादा किया, लेकिन यह रकम अनिल अंबानी 30 सितंबर 2018 तक नहीं चुका सके थे. इस पर एरिक्सन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. हालांकि तब तो मुकेश अंबानी ने बड़े भाई बनकर कर्ज अदा किया और अनिल को बचा लिया था. आज फिर अनिल मुश्किल में हैं और उसी जगह खड़े हैं, जहां से उनकी शुरुआत हुई थी.
एमनेस्टी इंटरनेशनल पर छापे क्यों पड़े, क्या कहता है FCRA, जानिए सरल भाषा में