नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में केंद्र सरकार के संशोधन को बरकरार रखा है. एससी-एसटी संशोधन कानून के मुताबिक शिकायत मिलने के बाद तुरंत एफआईआर दर्ज होगी और गिरफ्तारी होगी. 20 मार्च 2018 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.
Supreme Court upholds the constitutional validity of SC/ST (Prevention of Atrocities) Amendment Act, 2018 that ruled out any provision for anticipatory bail for a person accused of atrocities against SC/STs. pic.twitter.com/C2LMBwZiO8
— ANI (@ANI) February 10, 2020
इसके बाद संसद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था. इसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट को लेकर दाखिल याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
एससी/एसटी पर अत्याचार करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत देने के लिए कोई प्रावधान न होने के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी. इससे पहले एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक तौर पर अपना फैसला बदला था.
विरोध के बाद केंग्र सरकार लाई थी, एससी/एसटी संशोधन बिल
देशभर में एससी/एसटी एक्ट पर भारी विरोध और प्रदर्शनों को देखते हुए 2 अप्रैल के भारत बंद के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका दाखिल की थी. सरकार ने कानून को पहले के स्वरूप में लाने के लिए एससी-एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया. अगस्त 2018 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून तौर पर प्रभावी हो गया.
संशोधित कानून में यह बातें हैं खास
संशोधित कानून के जरिए एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18ए जोड़ी गई है. इस धारा के अनुसार, इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है. केंद्र की तरफ से लाए गए इस बिल के बाद सवर्णों की ओर से भारत बंद का ऐलान किया गया था. इसके बाद केंद्र की मोदी सरकार सवर्णों को नौकरी में दस फीसदी आरक्षण का कानून संसद में लेकर आई थी.
देशभर में हुए थे प्रदर्शन
एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से साल 2018 में दिए गए फैसले के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था. इस बंद का कई राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन भी किया था और इस दौरान कई राज्यों में भारी हिंसा हुई थी और चौदह लोगों की मौत हो गई थी. इस प्रदर्शन का सबसे ज्यादा असर एमपी, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हुआ था. एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के जरिए शिकायत मिलने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ा गया था.
कोर्ट में दायर याचिका में इस संशोधन को अवैध करार देने की मांग की गई थी, क्योंकि, मार्च 2018 में कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाला फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि कानून के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों के मद्देनजर शिकायतों की शुरुआती जांच के बाद ही पुलिस को कोई कदम उठाना चाहिए.
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