पांच कदम उठा कर भारत बन सकता है नया ग्लोबल सप्लाई सेन्टर

धन्यवाद, कोरोना! भारत को दे दिया बड़ा व्यावसायिक अवसर. चीन ने अपनेआप को दुनिया का सबसे बड़ा सप्लाई चेन का केंद्र बनाया हुआ था किन्तु वैश्विक षड्यंत्रकारी चीन से यह औद्योगिक उपलब्धि अब छिनने वाली है और वैश्विक उद्योग के आकाश पर एक नया अवसर बन कर उभर रहा है भारत..  

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : May 29, 2020, 11:05 AM IST
    • स्टेप नंबर वन: भूमि अधिग्रहण तथा श्रमिक क़ानून
    • स्टेप नंबर दो: टैक्स और सड़क की राह ठीक करनी होगी
    • स्टेप नंबर तीन: बिजली की लागत और माल-ढुलाई भाड़ा
    • स्टेप नंबर चार: ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजिनेस के सुधार
    • स्टेप नंबर पांच: विदेश नीति में सुधार
पांच कदम उठा कर भारत बन सकता है नया ग्लोबल सप्लाई सेन्टर

नई दिल्ली.  चीनी वायरस ने चीन का सबसे बड़ा नुकसान व्यापार क्षेत्र में किया है. जितने उसके उद्योग-धंधे चौपट हुए उससे अधिक उसकी वैश्विक छवि चौपट हुई है. और इस स्थिति ने भारत को वैश्विक व्यावसायिक विकल्प के रूप में तैयार किया है. चीन के स्थान पर अब  भारत बन सकता है दुनिया का सबसे बड़ा सप्लाई चेन का केंद्र यदि वह इन चार बाधाओं से पार पा ले.

 

भारत का बड़ा बाजार है बड़ा अवसर

दुनिया की कंपनियों के लिए और खासकर चीन से बाहर आ रही विदेशी कंपनियों के लिए विशाल देश भारत का बाजार एक बड़ा व्यावसायिक अवसर है. दुनिया की बड़ी कंपनियों की आर्थिक स्थिति भी कोरोना के कारण खस्ताहाल हुई हैं. ऐसे में उनको ऐसा बड़ा बाजार चाहिए जहां मांग बहुत हो. दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि कोरोना महामारी ने भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन का बड़ा केंद्र बनने का अवसर दिया है. अब इस अवसर को हाँथ से न जाने देने के लिए भारत सरकार को इस मार्ग की सभी बाधाओं को दूर करना होगा.

चीन की सप्लाई चेन टूटी है

चीनी वायरस ने दुनिया के उद्योग-धंधे तो ठप कराये ही चीन की भी औद्योगिक दुर्गति कर दी है जिसके कारण दुनिया के लिए चीन की सप्लाई चेन टूटी है. अब दुनिया के देशों को सोचना पड़ रहा है कि  आवश्यक सामानों के लिए एक देश पर निर्भर होना ठीक नहीं. ऐसे में भारत दुनिया का दूसरा बड़ा विकल्प बन कर उभरा है.  अब कंपनियां चीन से निकल कर भारत में अपना बेस शिफ्ट कर सकती हैं. 

 

स्टेप नंबर वन: भूमि अधिग्रहण तथा श्रमिक क़ानून

विशेषज्ञों द्वारा चार बड़ी बाधाएं चिन्हित की गई हैं जो कि विदेशी कंपनियों को भारत में अपना बेस शिफ्ट करने में बाधा बन सकती हैं. इनमें बाधा नंबर वन है भूमि अधिग्रहण तथा श्रमिक क़ानून की कठिनाइयां. इन दोनों ही क्षेत्रों में सुधार आवश्यक है ताकि विदेशी कंपनियों को आसानी से भूमि उपलब्ध हो सके और उन्हें सुविधपूर्ण ढंग से श्रमिक भी उपलब्ध हो सकें.

स्टेप नंबर दो: टैक्स और सड़क की राह ठीक करनी होगी 

विदेशी कंपनियों के दृष्टिकोण से भारत को अपने टैक्सों में उसी तरह सुधार करना होगा जिस तरह उसे देश की सड़कों का स्तर सुधारना होगा.  देश की सड़कें, पोर्ट, हवाई और रेल नेटवर्क में अत्याधुनिक परिवर्तन करने होंगे ताकि इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर हो सके. इससे विदेशी कंपनियों को आपूर्ति श्रृंखला मजबूत करने में सहायता मिलेगी और उनकी लागत और समय दोनों में बचत हो सकेगी.

 

स्टेप नंबर तीन: बिजली की लागत और माल-ढुलाई भाड़ा

बिजली की लागत और माल-ढुलाई भाड़ा दोनों ही विदेशी कंपनियों के लिए चीन के मुकाबले महंगा है. सरकार को न केवल औद्योगिक बिजली की दर कम करनी होगी बल्कि साथ ही बिजली की अबाध आपूर्ति भी सुनिश्चित करनी होगी. भारत में लाजिस्टिक्स यानी माल ढुलाई की लागत चीन और दुनिया के कुछ औद्योगिक देशों की तुलना में अधिक जिसे कम करने के रास्ते ढूंढना आवश्यक है.

स्टेप नंबर चार: ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजिनेस के सुधार

ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजिनेस किसी भी देश के बिजिनेस करने की सरलता को कहा जाता है. यद्यपि भारत  ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर जारी सूची में भारत उन 20 देशों की सूची में सम्मिलित हो गया है जिन्होंने बिजिनेस करने की दिशा में सरलता के विषयों पर ध्यान दिया है. व्यापार-व्यवसाय प्रारम्भ करना,  दिवालियेपन से बचना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन, निर्माण-उत्पादन के नियमों में सुधार आदि विषयों पर भारत ने कार्य किया है. फिलहाल भारत सरकार ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजीनेस की सूची में टॉप 50 में स्थान बनाने का लक्ष्य लेकर बढ़ रही है.

 

स्टेप नंबर पांच: विदेश नीति में सुधार

भारत की विदेश नीति उत्तम है. भारत व्यावहारिक रूप से अहिंसावादी तो है ही विश्व-मित्र भी है जिसने कोरोना-काल में दुनिया के देशों की मदद की है. किन्तु व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत को अपनी विदेश नीति में और आगे बढ़ कर कार्य करना होगा. चीन, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को छोड़ कर शेष विश्व के देशों से मेल-जोल बढ़ाना होगा और फिर शनैः शनैः व्यावसायिक संबंध निर्मित करने होंगे. जिन देशों से भारत के व्यावसायिक संबंध हैं उनसे व्यावसायिक मैत्री पुष्ट करनी होगी और आयात से अधिक निर्यात की दिशा में सोचना होगा.

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