चीन के साइंटिस्ट ने बंदर पर किया ऐसा हैरान कर देने वाला एक्सपेरिमेंट, इंसान सोच भी नहीं सकता!
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चीन के साइंटिस्ट ने बंदर पर किया ऐसा हैरान कर देने वाला एक्सपेरिमेंट, इंसान सोच भी नहीं सकता!

Chinese Scientist: वैज्ञानिकों का कहना है कि बंदर का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह दिखाता है कि काइमेरा बंदर बनाना संभव है. वे काइमेरा बंदरों का उपयोग चिकित्सा अनुसंधान और प्रजातियों के संरक्षण के लिए करने की उम्मीद करते हैं.

चीन के साइंटिस्ट ने बंदर पर किया ऐसा हैरान कर देने वाला एक्सपेरिमेंट, इंसान सोच भी नहीं सकता!

Trending: चीन के साइंस्टिस्ट ने बंदर पर हैरान कर देने वाला प्रयोग किया है. चीन के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा बंदर बनाया है जिसमें हरी आंखें और चमकती उंगलियां हैं. यह बंदर एक काइमेरा है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो अलग-अलग डीएनए सेट हैं. बंदर को बनाने के लिए, वैज्ञानिकों ने एक सामान्य बंदर के अंडे में एक जीन-संशोधित बंदर के शुक्राणु को इंजेक्ट किया. बंदर 10 दिनों तक जीवित रहा, जिसके बाद उसे इच्छामृत्यु दे दी गई. वैज्ञानिकों का कहना है कि बंदर का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह दिखाता है कि काइमेरा बंदर बनाना संभव है. वे काइमेरा बंदरों का उपयोग चिकित्सा अनुसंधान और प्रजातियों के संरक्षण के लिए करने की उम्मीद करते हैं.

चीन ने आखिर कैसे तैयार किया अनोखा बंदर

चीनी वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला स्टेम सेल वाला काइमेरिक बंदर बनाया है. यह बंदर एक लंबी पूंछ वाले मकाक है. काइमेरिक जीव दो अलग-अलग जीनोम वाले जीव होते हैं. इस मामले में, बंदर के शरीर के कुछ हिस्से एक जीनोम से बने थे, जबकि अन्य हिस्से दूसरे जीनोम से बने थे. वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने एक ही प्रजाति के दो बंदरों के निषेचित अंडों को लिया. इन अंडों में से एक को जीन संशोधन से गुजारा गया था. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह उपलब्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाती है कि स्टेम सेल का उपयोग काइमेरिक जानवर बनाने के लिए किया जा सकता है.

वजह जाकर हर कोई रह गया दंग

चीनी वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है जो न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के अध्ययन में क्रांति ला सकती है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसा बंदर बनाया है जिसमें उसके मस्तिष्क में स्टेम कोशिकाओं का बड़ा योगदान है. न्यूरोजेनरेटिव रोग वे रोग हैं जो तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं. इनमें अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग और एमएस शामिल हैं. इन रोगों के लिए प्रभावी उपचार विकसित करना एक चुनौती है क्योंकि वैज्ञानिकों को यह समझने में कठिनाई होती है कि वे कैसे काम करते हैं.

वैज्ञानिकों ने फिर कही ऐसी बात

इन वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का उपयोग प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई लुप्तप्राय प्रजाति है, तो वैज्ञानिक उस प्रजाति के डीएनए को एक अन्य प्रजाति के डीएनए के साथ मिला सकते हैं. यह एक ऐसा बंदर पैदा कर सकता है जिसमें लुप्तप्राय प्रजाति के डीएनए का हिस्सा हो. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बंदर को प्रजनन के माध्यम से लुप्तप्राय प्रजाति के जानवरों का उत्पादन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एक संभावित तरीका है जिससे लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाया जा सकता है. हालांकि, इस तकनीक से जुड़े कई मुद्दे हैं.

वैज्ञानिकों ने कहा कि दान की गई स्टेम कोशिकाओं की उपस्थिति न्यूनतम 21 प्रतिशत से लेकर 92 प्रतिशत तक थी. साइंस अलर्ट के अनुसार, सबसे अधिक प्रतिशत मस्तिष्क के ऊतकों में देखा गया। काइमेरिक चूहे पहली बार 1960 के दशक में बनाए गए थे और आमतौर पर बायोमेडिकल अनुसंधान में उपयोग किए जाते थे.

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