Sayyid Brothers Death: मुगल सल्तनत के राजाओं को चुनने में बड़ी भूमिका इन दो भाइयों ने निभाई थी. यह दो भाई मुगल सिंहासन पर जिसको चाहते उसको बैठाते थे. स्कूल के दिनों में हमने मुगल सल्तनत के बारे में काफी कुछ पढ़ा है लेकिन बहुत कम किताबों में इन दोनों भाइयों का जिक्र मिलता है जिन्हें सैय्यद बंधु के नाम से जानते हैं.
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Sayyid Brothers why were they called kingmakers: ज्यादातर इतिहास की किताबों में हमेशा सिर्फ राजाओं के बारे में बताया जाता है लेकिन कभी भी किंग मेकर (Kingmakers) का जिक्र नहीं किया जाता है. आपको बता दें कि किंग मेकर शब्द उनके लिए इस्तेमाल किया जाता हैं जो किसी को राजा बनाने में सबसे बड़ा रोल अदा करते हैं. भारतीय इतिहास (Indian History) के ऐसे ही दो किंगमेकर्स की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जिन्होंने मुगल सल्तनत के राजाओं को चुनने में बड़ी भूमिका निभाई थी. यह दो भाई मुगल सिंहासन पर जिसको चाहते उसको बैठाते थे. स्कूल के दिनों में हमने मुगल सल्तनत के बारे में काफी कुछ पढ़ा है. बहुत कम किताबों में दो भाइयों का जिक्र मिलता है जिन्हें सैय्यद बंधु के नाम से जानते हैं. ये सैय्यद बंधु जिसको चाहते थे उसे हिंदुस्तान का बादशाह बना देते थे.
कौन थे सैय्यद बंधु?
आपको बता दें कि सैय्यद हसन अली खान (Syed Hasan Ali Khan) और सैय्यद हुसैन अली खान (Syed Hussain Ali Khan) दो भाई थे जिनका कद मुगल सल्तनत में औरंगजेब (Aurangzeb) की मौत के बाद काफी बढ़ गया था. यह साल 1707 का था जिसके बाद इन दो भाईयों ने अघोषित तौर पर शासन किया. सैनिक वर्ग (Military Class) से ताल्लुक रखने वाले इन दोनों भाइयों को अच्छे से पता था कि दुश्मन से कैसे निपटना है. औरंगजेब में जब मराठों का खौफ (the fear of the Marathas) बढ़ने लगा था तब मराठों के विस्तार को रोकने के लिए औरंगजेब ने 1798 में इन्हीं सैय्यद बंधुओं को खानदेश का सूबेदार बनाया था. सैय्यद बंधुओं का प्रभाव आप इस तरह से समझ सकते हैं कि हुसैन अली खान औरंगजेब के शासनकाल के दौरान अजमेर, रणथंबोर और हिंडोन-बायना का प्रभारी भी रह चुका था. धीरे-धीरे दूसरे भाई का भी प्रभाव मुगल शासन काल में काफी बढ़ा.
ऐसे करते थे शासन को कंट्रोल
साल 1712 में जब बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हुई, उसके बाद मुगल सल्तनत के अगले उत्तराधिकारी जहांदार शाह (Successor Jahandar Shah) को मरवा कर इन सैय्यद बंधुओं ने जहांदार के भतीजे फर्रुखसियर को बादशाह (Emperor Farrukhsiyar) बनाया था. आगे चलकर इन दोनों भाइयों ने फर्रुखसियर को भी मौत के घाट उतरवा दिया था और साल 1719 में उसके चेचरे भाई रफी उद-दराजत (Rafi ud-Darajat) को अगला शासक बनाया. एक बीमारी के कारण रफी की मौत के बाद इन सैय्यद बंधुओं ने साल 1720 में मुगल शहजादे मुहम्मद शाह सिंहासन पर बैठाया. भाइयों के प्रभाव को कम करने में सबसे बड़ा रोल निजाम-उल-मुल्क ने निभाया जिसने 9 अक्टूबर, 1720 को सैय्यद हुसैन अली खान को मौत की नींद सुला दिया और दूसरे भाई को जंग में हरा कर कैद कर लिया.
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