Chinese Army: इस खास दवा के लिए भारत में घुसपैठ करने की फिराक में रहती है चीनी सेना, सोने से भी ज्यादा है कीमत
Advertisement
trendingNow11502610

Chinese Army: इस खास दवा के लिए भारत में घुसपैठ करने की फिराक में रहती है चीनी सेना, सोने से भी ज्यादा है कीमत

China: भारतीय क्षेत्र में चीन के घुसपैठ को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई जो चौंकाने वाली है. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी सेना ऐसी हरकत क्यों करती है. 
 

Chinese Army: इस खास दवा के लिए भारत में घुसपैठ करने की फिराक में रहती है चीनी सेना, सोने से भी ज्यादा है कीमत

Chinese Army: चीन की सेना वास्तविक नियत्रंण रेखा (LAC) को पार करके भारतीय क्षेत्र में दाखिल होने की कोशिश करती रही है. हाल ही में उसने अरुणाचल प्रदेश में ऐसा किया था, जिसके बाद भारतीय जांबाजों के साथ उनकी झड़प हो गई थी. इस बीच, भारतीय क्षेत्र में चीन के घुसपैठ को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई जो चौंकाने वाली है. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी सेना ऐसी हरकत क्यों करती है. 

रिपोर्ट में क्या गया?

इंडो-पैसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस (आईपीसीएससी) ने कहा है कि भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के कई प्रयास कॉर्डिसेप्स इकट्ठा करने के लिए थे. बता दें कि कॉर्डिसेप्स चीन में एक महंगी हर्बल दवा है. चीनी सैनिकों पर फंगस की तलाश में अवैध रूप से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने का आरोप लगाया गया है , जिसे कैटरपिलर फंगस या हिमालयन गोल्ड के रूप में भी जाना जाता है. कॉर्डिसेप्स को चीन में सोने से महंगा बताया जाता है.

मुख्य रूप से भारतीय हिमालय में और दक्षिण-पश्चिमी चीन में किंघई-तिब्बती पठार की ऊंचाई पर पाए जाने वाले कॉर्डिसेप्स की कीमत 2022 में वैश्विक स्तर पर 1,072.50 मिलियन डॉलर आंकी गई है. चीन कॉर्डिसेप्स का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. 

पिछले दो वर्षों में चीन के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र किंघई में कॉर्डिसेप्स की फसल कम हुई है. IPCSC के अनुसार, उसी समय कॉर्डिसेप्स की मांग पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है, क्योंकि एक उभरता हुआ चीनी मध्य वर्ग वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के बावजूद किडनी विकारों से लेकर नपुंसकता तक सब कुछ ठीक करना चाहता है. 

विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च मांग और सीमित संसाधनों के कारण कवक की अत्यधिक कटाई हुई है. IPCSC के अनुसार, ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि एक साल पहले के 43,500 किलोग्राम से उत्पादन 2018 में गिरकर 41,200 किलोग्राम हो गया, जो कि 5.2 प्रतिशत की गिरावट है. यह 2010 और 2011 के लिए प्रांतीय मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए गए 150,000 किलोग्राम का एक अंश है. 

हाल के वर्षों में, किंघई में चीनी कॉर्डिसेप्स कंपनियां स्थानीय लोगों को लाखों युआन का भुगतान कर रही हैं ताकि कॉर्डिसेप्स की कटाई के लिए पूरे पहाड़ों को बंद कर दिया जा सके. सर्वे से पता चलता है कि कॉर्डिसेप्स की वार्षिक फसल में गिरावट आई है.  IPCSC के अनुसार, हिमालय के कुछ शहर जीविकोपार्जन के लिए इस फंगस को इकट्ठा करने और बेचने पर निर्भर हैं. वास्तव में, विशेषज्ञों का कहना है कि तिब्बती पठार और हिमालय में घरेलू आय का 80 प्रतिशत तक कैटरपिलर फंगस बेचने से आ सकता है.

पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की ज़रूरत नहीं. 

 

Trending news