India First Hyderogen Train : अगले महीने से देश में एक ऐसी ट्रेन दौड़ने वाली है जो न तो डीजल से चलेगी और न ही उसे चलने के लिए बिजली की जरूरत है. ‘पानी’ से चलने वाली इस ट्रेन को जल्द ही पटरी पर दौड़ाने की तैयारी है. जानिए इस ट्रेन का रूट, रफ्तार और खास बातें...
India First Hyderogen Train: भाप इंजन से लेकर कोयले की धुंआ छोड़ने वाली छुक-छुक रेलगाड़ी ने समय के साथ न केवल अपनी रफ्तार वबढ़ाई बल्कि अपना पूरा मेकओवर कर दिया. आज भारतीय रेल की ट्रेनें डीजल और बिजली के साथ दौड़ रही है. वंदे भारत, शताब्दी, तेजस जैसी लग्जरी ट्रेनें पटरियों पर दौड़ रही है तो वहीं बुलेट ट्रेन का काम रॉकेट की रफ्तार से चल रहा है. इन सबके बीच अगले महीने से देश में एक ऐसी ट्रेन दौड़ने वाली है जो न तो डीजल से चलेगी और न ही उसे चलने के लिए बिजली की जरूरत है. ‘पानी’ से चलने वाली इस ट्रेन का इंतजार बस खत्म होने वाला है.
देश की पहली बार ऐसी ट्रेन चलने वाली है, जो पानी की मदद के दौड़ेगी. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस खास ट्रेन का रूट भी तय हो गया. प्रोटोटाइप ट्रेन को दिसंबर 2024 में चलाने की तैयारी है. हम बात कर रहे हैं भारत में अगले महीने से चलने वाली हाइड्रोजन ट्रेन की. इस ट्रेन का रूट, दूरी, रफ्तार सब तय है. दिसंबार 2024 में इसके ट्रायल रन की तैयारियां चल रही है. यह ट्रेन हाइड्रोजन ईंधन से चलेगी, इसके लिए हर घंटे ट्रेन को 40000 लीटर पानी की जरूरत होगी. इसके लिए वाटर स्टोरेज बनाए जाएंगे.
'पानी' से चलने वाली हाइड्रोजन ट्रेन के हाइड्रोजन फ्यूल सेल और इंफ्रास्ट्रक्चर का टेस्ट सफल रहा है. सेल के डिजाइन और हाइड्रोजन प्लांट अप्रूव हो चुके हैं. देशभर में 35 हाइड्रोजन ट्रेनें चलाने की तैयारी है. रेलवे के पीआरओ दिलीप कुमार की माने तो एक हाइड्रोजन ट्रेन की लागत 80 करोड़ के आसपास है.
लोगों को सुनकर हैरानी हो रही है कि आखिरी पानी से ट्रेन कैसे दौड़ेगी. आइए समझते हैं कि इसका पूरा साइंस क्या है. दरअसल भारतीय रेलवे ने साल 2030 तक खुद को 'नेट जीरो कार्बन एमिटर' बनाने का लक्ष्य रखा है, इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए रेलवे ने हाइड्रोजन ट्रेन चलाने का फैसला किया है. माना जा रहा है कि साल 2024-25 में यह ट्रेन शुरू हो सकती है. रेलवे अलग-अलग रूट पर 35 हाइड्रोजन ट्रेन चलाने की तैयारी में है. हाइड्रोजन ट्रेन हाइड्रोजन फ्यूल से चलती है. इस ट्रेन में डीजल इंजन के बजाए हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स होते हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन या पर्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन नहीं करती हैं. इन ट्रेनों के चलने से प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है.
हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स की मदद से इस ट्रेन में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को बदलकर बिजली पैदा की जाती है. इसी बिजली का इस्तेमाल ट्रेन को चलाने में किया जाता है. हाईड्रोजन गैस से चलने वाले इंजन धुएं की बजाय भाप और पानी छोड़ेगा. इस ट्रेन में डीजल इंजन की तुलना में 60 फीसदी कम शोर होगी, इसकी रफ्तार और यात्रियों को ले जाने की क्षमता भी डीजल ट्रेन के बराबर होगी.
माना जा रहा है कि देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन 90 किलोमीटर के हरियाणा के जींद-सोनीपत रूट पर चलेगी. इसके अलावा दार्जिंलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे, कालका शिमला रेलवे, माथेरान रेलवे, कांगड़ा घाटी, बिलमोरा वाघई और मारवाड़-देवगढ़ मदारिया रूटों पर भी इस ट्रेन को चलाया जा सकता है. माना जा रहा है कि इस ट्रेन की रफ्तार 140 किमी/घंटे की होगी. एक बार में यह ट्रेन 1000 किमी तक दौड़ सकती है.
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