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Manipur Sword Statue: कहानी उन तलवारों की, जिसके आगे नतमस्तक होकर राहुल गांधी ने शुरू की यात्रा

Bharat Jodo Nyay Yatra Rahul Gandhi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मणिपुर से अपनी यात्रा पार्ट-2 शुरू कर दी है. इस बार वह बस में भी सफर कर रहे हैं. पर क्या आपने यात्रा से पहले राहुल गांधी की वो तस्वीर देखी, जिसमें वह तलवार की तरह दिखने वाले ऊंचे स्मारक के सामने सिर झुकाए खड़े हैं.

मणिपुरियों के वीरता की कहानी

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मणिपुरियों के वीरता की कहानी

हां, सच में यह तलवार जैसा दिखने वाला स्टैच्यू है. यह बात जानकर आपकी उत्सुकता और बढ़ जाएगी कि इसे दुनिया की सबसे ऊंची तलवार की मूर्ति या कहें स्मारक होने का गौरव हासिल है. ये तलवारें किसकी हैं? ये निशानियां किसकी हैं? वास्तव में इन तीन तलवारों के पीछे मणिपुर का गौरवशाली इतिहास है, जिस पर वहां का हर बाशिंदा गर्व करता है. 

हर समुदाय के इतिहास में कम से कम एक चैप्टर जरूर ऐसा होता है जो उनके नैतिक मूल्यों, देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ध्वनि को जागृत रखता है. निश्चित रूप से ऐसे पन्नों में नायकों के नाम बड़े अक्षरों में लिखे जाते हैं और भविष्य उनके गीत गाता है. ऐसा ही एक चैप्टर मणिपुरी समुदाय के लोगों का इन तलवारों से जुड़ा है. हां, वो पन्ना है अंग्रेजों और मणिपुर के लोगों के बीच लड़ी भयानक लड़ाई का. ये तलवारें 1891 में मणिपुरी समुदाय की वीरता और देशभक्ति की कहानी कह रही हैं.

तलवारों की धार से सहम गए अंग्रेज

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तलवारों की धार से सहम गए अंग्रेज

तब अंग्रेजों के लिए कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होता. 1891 तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ें काफी गहरी हो चुकी थीं. ऐसा लग रहा था कि धरती पर उनसे टक्कर लेने का सामर्थ्य किसी के पास नहीं है. ऐसे में मणिपुर जैसे छोटे से किंगडम का बरतानिया हुकूमत से लड़ने का मतलब हार के अलावा कुछ और नहीं था. हार का अनुमान होने के बावजूद मणिपुर के बहादुर योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी. वे आखिरी सांस तक आत्मसमर्पण के लिए राजी नहीं हुए. ऐसे वीर नायकों की तेज तलवारों ने अंग्रेजी फौज के छक्के छुड़ा दिए. 

उन्हीं वीर बलिदानी नायकों को समर्पित हैं तीन तलवारें. एंग्लो-मणिपुर युद्ध लड़ने वाले अपने वीर पूर्वजों को याद करते हुए मणिपुरी हर साल 23 अप्रैल को खोंगजोम दिवस मनाते हैं. यह सशस्त्र संघर्ष मणिपुर रियासत और ब्रिटिश साम्राज्य के बीच लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी. मणिपुर युद्ध हार गया था लेकिन खोंगजोम की लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे भीषण लड़ाइयों में से एक मानी गई.

उस वीरता को नमन करने गए राहुल

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उस वीरता को नमन करने गए राहुल

युद्ध के नायक पाओना ब्रजबासी ने अंग्रेजों की सेवा करने के बजाय मौत को चुना था. ऐसे कई योद्धाओं के नाम मणिपुर के बच्चे-बच्चे को याद हैं. राहुल गांधी ने थौबल जिले में स्थित युद्ध स्मारक जाकर मणिपुर के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए उन वीरों को नमन किया. इसके बाद यात्रा शुरू की. वैसे भी, वहां से यात्रा शुरू करने के अपने सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. 

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