मांझी-तेजप्रताप की मुलाकात पर सियासत, शिवानंद बोले-लालू को गरियाने वाले नहीं समझ पाएंगे रहस्य
Bihar News: तेजप्रताप यादव ने यहां तक कह दिया कि एनडीए में जिनका मन डोल रहा वो महागठबंधन में आ जाएं हमारा दरवाजा खुला है.
Patna: तेजप्रताप यादव की एक पहल ने शनिवार को सियासत के गलियारे में हलचल मचा दी. दरअसल, तेजप्रताप यादव जीतन राम मांझी के घर पर उनसे मिलने पहुंच गए. मुलाकात से पहले तेजप्रताप यादव ने यहां तक कह दिया कि एनडीए में जिनका मन डोल रहा वो महागठबंधन में आ जाएं हमारा दरवाजा खुला है.
तेजप्रताप ने ये ऑफर जेडीयू समेत एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों को दिया है. तेजप्रताप यादव के इस बयान के बाद सियासी फेरबदल की संभावना तेज होती दिख रही थी लेकिन तेजप्रताप यादव की ये कोशिश पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी को नहीं जंची.
मांझी से मुलाकात के ठीक बाद शिवानंद तिवारी ने एक प्रेस रिलीज जारी किया. प्रेस रिलीज भले ही लालू प्रसाद के जन्मदिन की शुभकामना को लेकर था लेकिन इस शुभकामना के बीच शिवानंद तिवारी ने जेडीयू की सियासी हकीकत को भी बेपर्दा करने की कोशिश की.
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उन्होंने जेडीयू की तरफ से लालू प्रसाद को लेकर कहे जाने वाले आपत्तिजनक शब्दों का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार के सुशासन पर भी सवाल खड़े किए. अपने प्रेस रिलीज में शिवानंद तिवारी ने लिखा है कि बीच के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो भाजपा गठबंधन वाली नीतीश सरकार बिहार में अपने चौथे कार्यकाल में है. शासन में लगातार बने रहने कि यह एक लंबी अवधि है.
इसके आगे उन्होंने कहा कि जदयू के लोग सुशासन तथा विकास की भारी दावेदारी भले ही करते हैं. लेकिन इसके बावजूद सरकार के लोगों में आत्मविश्वास की कमी दिखाई देती है.
राजद नेता ने कहा कि इनके नेताओं के रोजाना बयान को ही देखा जाए. लालू यादव को लेकर घीसा-पीटा रेकॉर्ड बजाने के अलावा इनके पास बोलने के लिए दूसरा कोई मसला नहीं है. बार-बार भ्रष्टाचार, नाजायज संपत्ति, होटवार जेल, इन्हीं बातों को तोता की तरह रोज रटते हैं.
शिवानंद तिवारी ने कहा कि मुझे गंभीर संदेह है कि इन बयानों को लोग पढ़ते भी होंगे. इनमें कौन सी बात है जो बिहार की जनता से छिपी हुई है. हम जानना चाहेंगे कि सारे आरोपों के बावजूद क्या वजह है कि लालू की शारीरिक अनुपस्थिति के बावजूद तेजस्वी के नेतृत्व में उनका दल बिहार में सरकार बनाते बनाते रह गया.
वरिष्ठ राजद नेता तिवारी ने यह भी पूछा कि सुशासन और विकास की दावेदारी पर गंभीर संकट क्यों उपस्थित हो गया था? लालू जी को रोज गरियाने वाले लोग इस रहस्य को समझ नहीं पाएंगे. भविष्य में बिहार की राजनीति और समाज का इतिहास जरूर लिखा जाएगा. निश्चित रूप से उसमें एक अध्याय होगा. उसका शीर्षक होगा, लालू के पहले का बिहार और लालू के बाद का बिहार.
तिवारी के अनुसार, सदियों से सामंती समाज के जकड़न में फंसे बिहार को लालू यादव ने उस जकड़न से मुक्त कराया है.लालू यादव के पहले जो चुनाव होते थे, पुराने लोगों को उसका स्मरण होगा.
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उन्होंने कहा कि लालू यादव के सत्ता में आने से पहले वोट मांगने वाले वोटर के दरवाजे पर नहीं जाते थे. गांव के रसूखदार और जमीन जायदाद वाले तथाकथित मानिंद लोगों के दरवाजे पर बैठकी लगती थी. दिव्य भोजन होता था. आश्वासन मिल जाता था. जाइए यहां से निश्चिंत रहिए. वोट के दिन कमजोर और वंचित लोग मतदान केंद्रों की तरफ टुकुर-टुकुर देखते रहते थे.
राजद नेता ने कहा कि लालू यादव ने इस सामंती परंपरा को तोड़ दिया जो तुम्हारे बाप को प्रणाम करे, उसी को तुम प्रणाम करो. कमजोर लोगों को हीनता की बोध से मुक्त कराया. समाज का लोकतांत्रिकरण किया. चुनाव लड़ने वालों को अब वोट मांगने के लिए मुशहर के दरवाजे पर भी जाना पड़ता है. वहां भी वोट के लिए हाथ जोड़ना पड़ता है. उनकी भी दो बात सुननी पड़ती है.
अब सवाल ये उठ रहे हैं कि अगर जेडीयू से आरजेडी को इतनी परेशानी है तब क्या सिर्फ जीतन राम मांझी की बदौलत महागठबंधन की सरकार बनाएंगे तेजप्रताप?