आज आषाढ़ महीने की अमावस्या है. पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए यह दिन बहुत अहम होता है. आज पितरों के लिए दीपक जरूर जलाना चाहिए.
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Amavasya 2024: आषाढ़ अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और गरीब-जरूरतमंदों के लिए दान करने का बड़ा महत्व है. यदि नदी में स्नान करना संभव ना हो तो घर पर ही नहाने के पानी में पवित्र नदियों का जल मिलाकर स्नान करें. अमावस्या के दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि किए जाते हैं. साथ ही आषाढ़ अमावस्या के दिन पितरों के लिए दीपक भी जलाया जाता है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. लेकिन दीपक जलाने का पूरा फायदा मिले इसके लिए जरूरी है कि दीपक जलाने के नियमों का पालन किया जाए और सही समय पर दीपक जलाएं. आइए जानते हैं कि पितरों के लिए दीपक जलाने के नियम क्या हैं.
पितरों के लिए क्यों जलाते हैं दीपक?
हिंदू धर्म में मान्यता है कि अमावस्या के दिन पितर दिन में पृथ्वी लोक पर आ जाते हैं, लेकिन जब वे पृथ्वी से लौट रहे होते हैं तो उस समय शाम होती है और चारों ओर अंधेरा छा जाता है. चूंकि अमावस्या होने के कारण चांद की रोशनी भी नहीं रहती है. ऐसे में पितरों को पितृ लोक वापस लौटने में कोई परेशानी न हो, इसलिए अमावस्या की रात को पितरों के लिए दीपक जलाया जाता है. इस प्रयास से पितृ प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. पितरों का आशीर्वाद परिवार में खुशहाली लाता है, वंशवृद्धि देता है. घर के लोग खूब तरक्की करते हैं. साथ ही घर के दोष, दुख-दर्द दूर होते हैं.
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अमावस्या पर पितरों के लिए दीपक जलाने का सही समय
अमावस्या के दिन जब सूर्यास्त हो जाए और रात का अंधेरा घिरने लगे तो उस समय पितरों के लिए दीपक जलाना चाहिए. चूंकि साल की अलग-अलग अमावस्या पर सूर्यास्त का समय अलग-अलग होता है, लिहाजा उसके अनुसार दीपक जलाएं. आज आषाढ़ अमावस्या के दिन सूर्यास्त शाम को 07:23 बजे होगा. लिहाजा इसके बाद पितरों के लिए दीपक जलाएं.
पितरों के लिए दीपक जलाने का नियम
- ध्यान रहे कि दीपक जलाने के लिए मिट्टी के दीए का ही उपयोग करें लेकिन देख लें कि दीपक गंदा ना हो. दीपक हमेशा साफ रहे, बेहतर है कि दिन में ही दीपक अच्छी तरह धोकर रख लें.
- पितरों के लिए तेल का ही दीपक जलाना चाहिए. इसके लिए सरसों या तिल के तेल का दीपक जलाना बेहतर होता है. वही दीपक में बाती के लिए रुई का इस्तेमाल करें.
- पितरों के लिए जलाया गया दीपक घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में रखें. यह दिशा पितरों के लिए समर्पित है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)