Garuda Purana: मृत्यु के बाद क्यों जरूरी माना गया है पिंडदान, जानें ये कारण
किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसका पिंडदान (Pind Daan) करना अनिवार्य माना गया है. ऐसा न करने पर उस व्यक्ति की आत्मा को कष्ट भोगना पड़ता है.
नई दिल्ली: भारतीय संस्कारों में किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसका पिंडदान (Pind Daan) करना अनिवार्य माना गया है. माना जाता है कि ऐसा करने पर मरने (Death) वाले व्यक्ति की आत्मा भूलोक पर भटकती रहती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती.
व्यक्ति के मरने पर पिंडदान है जरूरी
गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में मरने वाले व्यक्ति के लिए दस दिनों तक पिंडदान (Pind Daan) जरूरी बताया गया है. माना जाता है कि जिस व्यक्ति के परिजन पिंड दान नहीं करते, ऐसे लोगों की आत्मा को यमदूत 13वें दिन घसीटते हुए यमलोक तक ले जाते हैं. ऐसा व्यक्ति प्रेत बनकर इधर उधर भटकता रहता है.
13 दिनों तक परिजनों के बीच रहती है आत्मा
गरुड़ पुराण (Garuda Purana) के मुताबिक मृत व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के बीच ही रहती है. इस अवधि में वह फिर से शरीर में प्रवेश कर जाना चाहती है, लेकिन शरीर का अंतिम संस्कार हो जाने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाती. इस दौरान आत्मा भूख- प्यास से तड़पती रहती है और रोती है.
पिंडदान करने से आत्मा को मिलता है भोजन
इस बीच परिजन 10 दिनों तक आत्मा को पिंडदान (Pind Daan) करते हैं. जिससे उसका सूक्ष्म शरीर बनता है. पहले दिन के पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है.
ये भी पढ़ें- Palmistry: ऐसे Thumb वालों पर कभी न करें भरोसा, जीवन में कभी भी दे सकते हैं धोखा
13वें दिन यमलोक प्रस्थान कर जाती है आत्मा
पिंडदान से उत्पन्न हुआ यह सूक्ष्म शरीर एक अंगूठे के बराबर के आकार का होता है. इस पिंडदान (Pind Daan) से आत्मा को बल प्राप्त होता है, जो उसे यमलोक तक की यात्रा करने में सक्षम बनाता है. यही सूक्ष्म शरीर 13 दिनों बाद फिर से यमलोक की यात्रा को तय करता है. अपने भूलोक पर किए गए कर्मों के आधार पर वह यमलोक में शुभ-अशुभ फल को भोगता है.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)
LIVE TV