Jai Shri Ram Katha: इस तरह भगवान श्री राम ने त्यागे थे प्राण, पढ़ें उनकी मृत्यु से जुड़ी कथा
Jai Shri Ram Katha: भगवान श्री राम (Shri Ram) की मृत्यु या बैकुंठ धाम (Baikunth Dham) जाने को लेकर अलग-अलग वर्णन मिलते हैं. भगवान श्री राम की मृत्यु के बारे में कुछ कथाएं बेहद प्रचलित हैं, जिनके बारे में हर राम भक्त को जरूर पता होना चाहिए.
नई दिल्ली. Jai Shri Ram Katha: भगवान श्री राम (Shri Ram) हिंदुओं के आराध्य माने जाते हैं. भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग (Treta Yug) में हुआ था. प्रभु श्री राम ने अयोध्या (Ayodhya) के राजा दशरथ के घर जन्म लिया था. आज उसी अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर (Ram Mandir) का निर्माण कार्य आरंभ हो चुका है. प्रभु श्री राम के भक्त (Ram Bhakt) उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जब उनका भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा.
एक अनुमान के मुताबिक, राम मंदिर के निर्माण कार्य में 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि प्रभु श्री राम का मंदिर कितना भव्य बनने वाला है.
भगवान श्री राम के जन्म और मृत्यु से जुड़ी बातें
माना जाता है कि प्रभु श्री राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व में हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में जन्म लिया था ताकि लंकापति रावण के अत्याचार को समाप्त कर सकें. कहा जाता है कि जिसने धरती पर जन्म लिया है, उसकी एक दिन मृत्यु भी निश्चित होती है. ऐसा ही कुछ भगवान श्री राम के साथ भी हुआ था क्योंकि प्रभु राम ने मनुष्य के रूप में धरती पर जन्म लिया था.
भगवान श्री राम की मृत्यु या बैकुंठ धाम (Baikunth Dham) जाने को लेकर अलग-अलग वर्णन मिलते हैं. भगवान श्री राम की मृत्यु के बारे में कुछ कथाएं (Jai Shri Ram Katha) इस प्रकार हैं.
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भगवान श्री राम ने सरयू में ली समाधि
पहली कथा के अनुसार, भगवान श्री राम ने माता सीता (Sita) को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए कहा था. इसके बाद माता सीता ने परीक्षा को पूर्ण कर अपनी पवित्रता सिद्ध कर दी थी. इसके पश्चात माता सीता ने पुत्र लव और कुश को भगवान श्री राम को सौंप दिया और खुद धरती में समा गईं. सीता के दूर जाने से भगवान श्री राम दुखी हो गए और यमराज की सहमति से उन्होंने सरयू नदी (Sarayu River) के गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली थी.
लक्ष्मण के वियोग में श्री राम ने ली जल समाधि
दूसरी कथा के अनुसार, एक बार यमदेव ने संत का रूप धारण कर अयोध्या में प्रवेश किया. संत का रूप धारण किए यमदेव ने भगवान श्री राम से कहा कि हमारे बीच गुप्त वार्ता होगी. यमराज ने श्री राम के सामने शर्त रखी कि अगर हमारी वार्ता के दौरान कोई कक्ष में आता है तो द्वारपाल को मृत्यु दंड मिलेगा. भगवान राम ने यमराज को वचन दे दिया और लक्ष्मण (Lakshman) को द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया.
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इसके बाद यमदेव अपने असली रूप में आ गए और उन्होंने प्रभु श्री राम से कहा कि आपका धरती पर जीवन पूर्ण हो चुका है. इतने में ऋषि दुर्वासा (Rishi Durvasa) वहां पहुंचते हैं और भगवान श्री राम से मिलने की हठ करने लगते हैं. लक्ष्मण उनको अंदर जाने से रोकते हैं तो ऋषि दुर्वासा श्री राम को श्राप देने की बात कहने लगते हैं.
ऋषि दुर्वासा की बात सुनकर लक्ष्मण दुविधा में पड़ जाते हैं. वे सोचने लग जाते हैं कि ऋषि दुर्वासा को अंदर जाने देने पर मृत्यु दंड मिलेगा और न जाने देने पर भगवान श्री राम को श्राप मिल जाएगा. लक्ष्मण ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना ऋषि दुर्वासा को कक्ष में जाने की अनुमति दे दी.
भगवान श्री राम और यमराज की वार्ता भंग हो जाती है. भगवान राम सोच में पड़ जाते हैं कि अब उन्हें अपना वचन निभाने के लिए लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ेगा. भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को राज्य निकाला दे दिया. लक्ष्मण ने अपने भाई राम का वचन पूरा करने के लिए सरयू नदी में जल समाधि ले ली. लक्ष्मण के सल समाधि लेने पर भगवान राम बहुत दुखी हो गए और उन्होंने भी जल समाधि लेने का निर्णय कर लिया.
जिस समय भगवान राम ने जल समाधि ली, उस समय हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, भरत, शत्रुघ्न आदि वहां उपस्थित थे.
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