Importance of Aarti: आरती की हिंदू धर्म में बहुत महिमा बतायी गयी है. माना जाता है कि हम जो भी पूजन-अर्चन, धार्मिक पुस्तक का पाठ अथवा मंत्र जाप आदि करते हैं, उसके बाद आरती करना अति आवश्यक है, किंतु जो लोग आरती नहीं करते हैं या कर पाते हैं वह आरती और धूप समर्पण में शामिल हो जाएं तो भी वह अपनी कई पीढ़ियों का भला कर देते हैं. विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति धूप आरती को देखता है, वह अपनी कई पीढ़ियों का उद्धार करता है. 


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कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी उद्देश्य को समक्ष रखकर नित्य दीप अर्चन करता है, उसे सफलता मिलने से कोई रोक नहीं सकता है अर्थात उसे हर हाल में सफलता मिलती है. सफलता पाने के लिए दीपक के सामने इस श्लोक को पढ़ना चाहिए.


दीपो ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ⁠। 


दीपो हरतु मे पापं सांध्यदीप! नमोऽस्तु ते ⁠।⁠। 


शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखसम्पदम् ⁠। 


शत्रुबुद्धिविनाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ⁠।⁠। 


अर्थात दीपक के प्रकाश को नमस्कार है, जो सर्वोच्च ब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है. दीपक का प्रकाश श्री विष्णु जी का प्रतिनिधित्व करता है. दीपक की ज्योति से मेरे पाप दूर हो जाएं, इस दीपक की ज्योति को मेरा नमस्कार है. शुभ स्वास्थ्य और समृद्धि लाने वाले दीपक के प्रकाश को नमस्कार, जो शत्रु भावों का नाश करती है, इस दीपक के प्रकाश को मेरा नमस्कार है. 


ओंकार की आकृति 


यूं तो जिस देवता की आरती कर रहे हों, उसके मंत्र के अक्षरों के अनुरूप दीपक से आकृति को बनाना चाहिए. यदि ऐसा संभव न हो तो ओंकार की आकृति भी बनायी जा सकती है. ओंकार सभी मंत्रों का बीज मंत्र है. इस प्रकार की आरती में भगवान का गुण कीर्तन, मंत्र साधना दोनों का ही मिश्रण होने से सोने पे सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है.


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