नई दिल्ली: हिंदू पंचांग (Panchang) के अनुसार, हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है लेकिन महाशिवरात्रि (Mahashivratri) साल में सिर्फ एक बार आती है जो फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है. इस बार यह तिथि 11 मार्च गुरुवार को है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान भगवान शिव (Lord Shiva) की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने वालों सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है. इस बार की महाशिवरात्रि कई मायनों में खास है क्योंकि इस दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं. 


महाशिवरात्रि पर बन रहे कई शुभ योग


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11 मार्च गुरुवार को महाशिवरात्रि कई शुभ संयोगों में आ रही है. 
- इस दिन मकर राशि (Capricorn) में एक साथ 4 बड़े ग्रह होंगे- शनि, गुरु, बुध और चंद्रमा
- हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन विशेष फलकारी धनिष्ठा नक्षत्र होगा (Dhanishtha Nakshatra)
- पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन सुबह 9.25 तक महान कल्याणकारी शिव योग (Shiv Yoga) है. ऐसी मान्यता है कि इस योग में किया गया हर शुभ कार्य सफल होता है
- पंचांग के अनुसार शिव योग के बाद सिद्ध योग (Siddha Yoga) शुरू हो जाएगा. इस योग में भी कोई कार्य शुरू करके कार्यसिद्धि प्राप्त की जा सकती है.
- इसके अलावा इस दिन आंशिक काल सर्प योग (Kaal Sarp Yoga) भी रहेगा. ऐसे अवसर पर जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इसकी शांति के लिए पूजा-पाठ करवा सकते हैं.


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इन विशेष संयोगों की वजह से महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होगा. शिव की आराधना से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होगी. इस दिन रुद्राभिषेक करना शुभदायक होगा. इन दुर्लभ योगों में भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से सभी तरह के दोष और कष्टों से मुक्ति मिलेगी. 


महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त


महाशिवरात्रि तिथि- 11 मार्च 2021, गुरुवार 
चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 11 मार्च 2021 को दोपहर 2.39 बजे से 
चतुर्थी तिथि समाप्त- 12 मार्च 2021 को दोपहर 3.02 बजे तक
महाशिवरात्रि पारण का समय- 12 मार्च की सुबह 6.34 से दोपहर 3.02 तक
निशिता काल पूजा समय- 11 मार्च को रात में 12:06 बजे से 12:54 बजे तक, अवधि- 48 मिनट


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शिवलिंग की पूजा का महत्व


शिवलिंग (Shivling) भगवान शिव का प्रतीक है. शिव का अर्थ है- कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन. सृजनहार के रूप में लिंग की पूजा होती है. संस्कृत में लिंग का अर्थ है प्रतीक. भगवान शिव अनंत काल के प्रतीक हैं. मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग को ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है. शिव जी को महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ के नामों से भी जाना जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया था, इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है.


- ज्योतिर्विद मदन गुप्ता सपाटू


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